संस्‍कारों को सहेजना

"संस्‍कारों को सहेजना " के लेखक - अंबुज सक्सेना (NOIDA)


     हिन्दुओ के संस्कार तभी तक संरक्षित रह सकते हैं जब तक वो संयुक्त परिवारों मे रहते हैं, जैसे ही एकल परिवार में चले जाते हैं वैसे ही संस्कार भूलने लगते हैं. आप को या मुझे जो हिंदू संस्कार मिले हैं वो संयुक्त परिवार की बजह से मिले हैं. संयुक्त परिवारों मे हम लोगों के दादा-दादी, ताई-ताऊ आदि सुबह-सुबह ही कोई न कोई पूजा पाठ जरूर करते थे और हम बच्चे लोग अगर पूजा नहीं भी करते थे तब भी उनकी पूजा की आवाज़ जरूर हमारे कानो में आती थी और पूजा क्या है? ये कुछ कुछ सीखने लगते थे और प्रत्येक महीने कथा आदि भी होती थी. साल में एक बार रामायण का पाठ भी होता था.


(फोटो - अंबुज सक्सेना) 



     हर शुक्रवार को महिलाओ के द्वारा भजन कीर्तन होता था जिसमे छोटी-छोटी बच्चियो को भी ले जाया जाता था, किसी को दुर्गा, किसी को संतोषी माता का रूप देकर भजन, नाच-गाना होता था. जिससे सभी के मन में हिंदुत्व और आस्था जाग्रत रहती थी. उस समय घर में पूजा पाठ महिलाओ के द्वारा होता था जिससे बच्चो मे भी पूजा-पाठ और हमारे भगवान के बारे में जानने की उत्सुकता बनी रहती थी और पुरुष भी अपनी पत्नियों के द्वारा ही पूजा-पाठ की तरफ अग्रसर होते थे.


     पहले शादी जैसे समारोह होते थे, उनमे पूजा-पाठ का बड़ा महत्व होता था एवं कई प्रकार के पूजा पाठ होते थे और उसके बाद ही स्त्री-पुरुष का मिलन होता था लेकिन आज शादी आदि मे पूजा-पाठ होने से पहले ही स्त्री पुरुष हनीमून के लिए निकल जाते हैं.


     आज हम लोग एकल परिवार में आ गए हैं जिससे पूजा पाठ की स्थिति उलट हो चुकी है. मोहल्ले अब रहे नहीं। सारा कुछ फ्लैट सिस्टम में कन्वर्ट हो गया है. मंदिर के सामने से गुजरता हुआ व्यक्ति मंदिर को दूर से ही प्रणाम कर लेता है.  मंदिर के अंदर भी जाने की आवश्यकता नहीं समझता। एकल परिवार की बजह से कोई भी पूजा  नहीं करता है या नाम मात्र को ही पूजा करते हैं. सभी एक दूसरे पर अपनी जिम्मेदारी थोप देते हैं और पूजा-पाठ का मुख्य कार्य स्त्री का होता है लेकिन एकल परिवार में स्त्री भी पूजा पाठ न के बराबर करती है. हमारे फ्लैट सिस्टम की बजह से अब भजन कीर्तन भी नहीं होता।


     हमारी शिक्षा प्रणाली आज से 25 साल पहले हम लोगो को हमारे भगवान के बारे में पढ़ाया जाता था (मेरे समय में एक किताब आती थी. वो पढ़ाई जाती थी. मेरे पूर्वज इसमे भगवान और हमारे देवी-देवताओं महापुरूषों के बारे में जानकारी होती थी) आज के समय में किसी भी शिक्षा सिस्टम मे अब ऎसा नहीं है.


     इसलिए संयुक्त परिवारों मे वापस आएं, फ्लेट मे रहते हुए भी, फ्लेट सिस्टम की जगह मोहल्ला संस्कृति को अपनाए। बच्चों को चाहे किसी भी स्कूल में भेजें लेकिन उनको संस्‍कार, संस्कृति और हमारे पूर्वजो के मूल्यों को जरूर बताएं।