स्वामी विवेकानंद युवाओं के लिए आदर्श

      भारतीय युवाओं को अगर किसी ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है तो वो हैं स्वामी विवेकानंद। वह हर युवा के लिए आदर्श हैं। स्वामी विवेकानंद के जीवन के एक भी आदर्श को हम अपने जीवन में अगर उतार पाएं तो शायद ही हमें कभी हार का सामना करना पड़े। उनके जीवन से जुड़े अनेक प्रसंग हैं जो आज भी हमें प्रेरणा देते हैं। उनकी शिक्षाएं हमारा जीवन बदल सकती हैं।

     एक बार एक विदेशी महिला ने स्वामी विवेकानंद से विवाह करने का निवेदन किया। स्वामी जी ने कहा मैं संन्यासी हूं और आगे भी संन्यासी जीवन ही व्यतीत करूंगा। इस पर महिला ने कहा कि मैं आपके जैसा सुशील, तेजस्वी और गौरवशाली पुत्र चाहती हूं। इस पर स्वामी जी ने कहा कि क्यों न मैं आज और अभी से ही आपका पुत्र बन जाऊं और आप मेरी मां। आपको मेरे स्वरूप में मेरे जैसा पुत्र मिल जाएगा और मुझे मां। यह सुनकर महिला गदगद हो गई और बोली आप तो साक्षात ईश्वर हो, क्योंकि ऐसा सुझाव तो सिर्फ़ ईश्वर ही दे सकता है। स्वामी जी कहा करते थे कि कैसी भी समस्या सामने आए उसका डटकर सामना करो। ऐसा करने पर बहुत सी समस्याओं का समाधान हम अपने स्तर पर ही कर सकते हैं। 

     स्वामी विवेकानंद का व्यक्तिगत जीवन साधारण था, लेकिन जब वे किसी विषय पर गंभीरता से बात करते थे या फिर भाषण देते थे, तो लोग उनकी ओर आकर्षित हो जाया करते थे। बचपन में उन्हें नरेंद्र कहकर बुलाया जाता था। स्कूल के दिनों में एक रोज वह अपनी कक्षा के छात्रों से बात करने में मशगूल थे, लेकिन उनका ध्यान सामने पढ़ा रहे अध्यापक पर भी था। अध्यापक को महसूस हुआ कि बच्चे पढ़ने के बजाए बातें करने में व्यस्त हैं, तब उन्होंने बच्चों से सवाल पूछना शुरु कर दिया। सबसे पहले नरेंद्र से शुरुआत की गई। उनकी स्मरणशक्ति तीव्र थी और वे बीच-बीच में पढ़ाई पर गौर भी कर रहे थे। 

     इसीलिए नरेंद्र ने सभी सवालों का जवाब सही-सही दे दिया। यह देखकर अध्यापक ने उन्हें बैठने का निर्देश दिया और अन्य छात्रों से सवाल पूछने लगे। बाकी छात्रों का ध्यान बातों में होने की वजह से एक भी छात्र सवाल का सही सही उत्तर नहीं दे सका। अध्यापक ने सभी बच्चों को हाथ ऊपर कर खड़ा रहने का निर्देश दिया। इस पर नरेंद्र ने कहा, क्षमा करें गुरु जी! मेरी वजह से सभी छात्र दंड के पात्र बने हैं। सजा का हकदार मैं ही हूं। यह सुनकर अध्यापक भी हैरान रह गए।