हिंसा कायरता की निशानी लेकिन वीरता शौर्यता की - अजीत सिन्हा

     अहिंसा परमो धर्मः, धर्म हिंसा तथैव च अर्थात्‌ अहिंसा परम धर्म है लेकिन जब धर्म को बचाने के लिए हिंसा की जरूरत पडे तो अवश्य करें क्योंकि यह सनातन के मूल में है. यूं ही भय पैदा करने या आतंक का साम्राज्य स्थापित करने के लिए यदि कोई व्यक्ति या संगठन के लोग हिंसा करते हैं,तो यह कायरता के साथ-साथ पशुता की भी निशानी है लेकिन अपने राष्ट्र की आन-बान और शान को बचाने के लिए यदि कोई हिंसा करता है तो यह वीरता की श्रेणी में आती है अर्थात् आत्म रक्षार्थ या राष्ट्र रक्षार्थ की गई हिंसा, हिंसा नहीं कहलाती है और बदले के जवाब में की गई हिंसा भी कायरता और वीरता दोनों की श्रेणी में ही आती है.

     उसके पीछे छुपे भाव या कारण मह्त्वपूर्ण होते हैं लेकिन परमात्मा की नजर में हिंसा जायज नहीं है लेकिन आसुरी प्रवृतियों पर लगाम लगाने हेतु यदि हिंसा करनी पड़े तो अवश्य करनी चाहिए और इसके उदहारण शास्त्र में देवासुर संग्राम के रूप में दिखाई देते हैं. साथ में दुर्गा सप्तशती में वर्णित देवी और असुरों के बीच संग्राम स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं. इस आशय की विचार सत्य सनातन रक्षा सेना के राष्ट्रीय संयोजक और राष्ट्रीय सनातन वाहिनी के राष्ट्रीय महासचिव (धर्म प्रकोष्ठ) अजीत सिन्हा ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर राष्ट्र प्रहरी पत्रकारों के बीच प्रकट की।

(अजीत सिन्हा
     उन्होंने ने कहा कि वैश्विक स्तर पर अनेक देशों में फैल रही हिंसा आज दुनिया के सामने चुनौती से कम नहीं और ऐसी देखी जा रही है लोग छोटी - छोटी बातों पर भी हिंसक हो जाते हैं. जो कि बाद में बड़ी हिंसा का रूप ले लेती है, जो कि सही नहीं है. इसके प्रमाण जातिवाद, नस्लवाद, रंगभेद और धर्मवाद के नाम पर समय - समय पर होने वाली हिंसा में देखने को मिलते हैं जो कि मानवीय दृष्टिकोण से कदापि उचित नहीं। 
     एक कहावत है कि मरता क्या नहीं करता अर्थात्‌ जब बात अपनी जान बचाने की आ जाये, तो उस समय हिंसा करने से कदापि नहीं चुकनी चाहिए। क्योंकि आज दुनिया में वैश्विक इस्लामीकरण हेतु एक धर्म विशेष के लोग कहीं भी हिंसा करने से नहीं चूक रहे और उन्हें केवल शक्ति प्रदर्शन और भय का माहौल बनाने का एक मौका मिलना चाहिये। जो कि सर्वथा गलत है ऐसा अजीत सिन्हा ने कहा। जय हिंद!