पर्यावरण प्रेमी सुंदरलाल बहुगुणा को भी कोरोना ने नहीं छोड़ा

News from - Rakesh kumar      

     प्रकृति की पूजा करने वाले विश्व प्रख्यात पर्यावरण प्रेमी सुंदरलाल बहुगुणा को भी कोरोना ने नहीं छोड़ा। वे गत 12 दिनों से मौत संघर्ष कर रहे थे। बहुगुणा का देहावसान भारत के पर्यावरण आंदोलन के लिए अपूरणीय क्षति हैं।

(सुंदरलाल बहुगुणा)

     बहुगुणा ने पत्नी विमला नौटियाल के सहयोग से सिल्‍यारा में ही ‘पर्वतीय नवजीवन मंडल’ की स्थापना की. साल 1949 के बाद दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आंदोलन छेड़ा। साथ ही दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत रहे। उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा हॉस्टल की स्थापना भी की गई।      1971 में सुन्दरलाल बहुगुणा ने चिपको आंदोलन के दौरान 16 दिन तक अनशन किया। जिसके चलते वह विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए। पर्यावरण बचाओ के क्षेत्र में क्रांति लाने वाले बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने 1980 में पुरस्कार से सम्मानित किया। इसके साथ ही पर्यावरण को स्थाई सम्पति मानने वाला यह महापुरुष ‘पर्यावरण गांधी’ बन गया। अंतरराष्ट्रीय मान्यता के रूप में 1981में स्टाकहोम का वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार मिला। 2001 में पद्म विभूषण से सम्मानित। ऐसे महान पुरुष को सादर नमन।