माया एक दिन अचानक से टूट जाती है

 From - Rupesh Singh

एक प्रेरक प्रसंग --

     एक बार नारद किसी गांव में गए और पहले घर के दरवाजे पर दस्तक दी। दरवाजा खुला और एक बहुत सुंदर युवती ने दरवाजा खोला। नारद ने उसकी ओर देखा तो उन्हें मानो बिजली का झटका लगा। वह पूरी तरह उस पर आसक्त हो गए। उन्होंने युवती के पिता से उसका हाथ मांगा। पिता तैयार हो गए। नारद ने युवती से विवाह कर लिया। 

     विवाह के बाद उन्हें अपने और अपनी पत्नी के लिए एक छोटा सा घर बनाया और जमीन जोतना शुरू कर दिया। फिर जैसा कि होता है, बच्चे हुए - एक, दो, तीन, चार, पांच। बच्चे बड़े हुए, उनकी शादियां हुईं और उनके भी बच्चे हुए। प्यारे-प्यारे नाती-पोते इधर-उधर दौड़ते रहते थे। सब कुछ बहुत बढ़िया चल रहा था।

     तभी, नदी ने अपनी धारा बदल ली और उसमें बाढ़ आ गई। बाढ़ में गांव बह गया। नारद अपनी पत्नी, बच्चों और छोटे-छोटे शिशुओं के साथ पेड़ पर चढ़कर बैठ गए। मगर बाढ़ का पानी बढ़ता रहा। प्यारे-प्यारे बच्चे पानी में बह गए। नारद फूट-फूट कर रोने लगे। फिर एक-एक करके उनके बच्चे, उनकी पत्नियां, सभी बह गए। वह अपनी प्रिय पत्नी को कसकर पकड़े रहे। मगर कुछ समय बाद, वह भी बह गई।

     फिर उन्हें अपने जीवन की चिंता होने लगी। निराश होकर, हर किसी को खोने के बाद, वह ज़ोर से चिल्लाए “कृष्णा!”

कृष्ण बोले, “मेरा पानी का गिलास कहां है?”

फिर नारद उठ बैठे और बोले, “मगर मुझे क्या हुआ था?” कृष्ण ने कहा, “यही माया है।”

     माया का मतलब है कि आप अपने मन में इतने सारे भ्रम बुन लेते हैं कि वे असली से भी अधिक वास्तविक लगने लगते हैं। जो आपके मन में, आपकी भावनाओं में घटित हो रहा है, वह वास्तविक से कहीं अधिक वास्तविक हो जाता है। यह सिनेमा, थियेटर की तरह है - वो रोशनी और ध्वनि का दो आयामी नाटक होता है। मगर आप जिन लोगों के साथ पच्चीस सालों से रह रहे हैं. उनसे अधिक सिनेमा के सितारों से प्यार करने लगते हैं। आपने असली जीवन में इन सितारों को देखा तक नहीं है, मगर वे जीवन से कहीं अधिक बड़े दिखते हैं।