Written by Narendra Singh Babal
वो पुराने
हम पुराने
बात हुई कुछ नई-नई।
था वही वृक्ष बबल
कोपलें फूटी नई-नई।
जो अगर ग़ौर से
देखोगे पुराने रास्ते ,
कोई मंज़िल पहचान वाली
राह तकती होगी तुम्हारे वास्ते
इतना भी ग़रीब नहीं था
तिरे साथ रह के ,
अब देख आ के बबल
फ़कीर हो गया हूँ।
कहो अगर तो
सुबह-सुबह
रोज़ तुम्हें जगाएं ,
अपनी आभा की किरणें
तिरे दामन में दे जाएं ,
कहो अगर तो
सुबह-सुबह
गीत तुम्हें सुनाएं
अपनी चहचहाहट से
बबल रोज़ तुम्हें चहकाएँ !!! ... कहो अगर तो