28 नवंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद मथुरा दौरे पर थे. बांके बिहारी मंदिर के दर्शन करने गए थे. लेकिन राष्ट्रपति के दौरे को लेकर पुलिस प्रशासन के सामने अजीब ही समस्या खड़ी हुई थी. सवाल राष्ट्रपति की सुरक्षा का था और इसमें आड़े आ रहे थे बंदर. वैसे तो सुरक्षा बल की तैनाती तो चाक चौबंद थी. (फोटो - राष्ट्रपति की सुरक्षा में था ये लंगूर )
परन्तु यहां दर्शन को आने वाले श्रद्धालु बंदरों से खासे परेशान रहते हैं. बंदर यहां श्रद्धालुओं का चश्मा छीन लेते हैं, उनके हाथ में मौजूद खाने का सामान छीन लेते हैं. बंदरों की यही आदत पुलिस के लिए बड़ी मुश्किल बनी हुई थी.
तो लेनी पड़ी लंगूर की मदद - 28 नवंबर को राष्ट्रपति रामकृष्ण मिशन से वीआईपी पार्किंग तक तो गाड़ी से पहुंच गए. इसके बाद बांके बिहारी मंदिर तक करीब 250 से 300 मीटर की दूरी उन्हें पैदल तय करनी थी. गलियों से होते हुए राष्ट्रपति को मंदिर पहुंचना था. यहां घरों की छतों पर बंदरों का जमावड़ा रहता है. बंदरों से राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए जहां छतों पर डंडे लेकर पुलिस कर्मी तैनात थे, वहीं बंदरों को राष्ट्रपति के मार्ग से भगाने के लिए लंगूरों का भी इंतजाम किया गया था. पुलिस प्रशासन ने लंगूर किराए पर लेकर राष्ट्रपति को बंदरों की समस्या से बचाए रखा. ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि VVIP के दर्शन करने आने पर लंगूरों को सुरक्षा में रखा हो. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के भी एक दौरे में बंदरों की समस्या से निजात पाने के लिए लंगूर रखे गए थे.
लंगूर ही क्यों - लंगूरों से बंदर डरते हैं. जहां लंगूर होते हैं वहां से बंदर दूर ही रहना पसंद करते हैं. इसलिए पहाड़ों में भी कई जगह आधिकारिक रूप से लंगूर नियुक्त किए जाते हैं.