CAA Protest: नागरिकता पर भय और भ्रम का धुआं फैलाना विपक्ष के लिए होगा घातक

      पिछले एक हफ्ते से नागरिकता कानून के खिलाफ विशुद्ध रूप से भ्रम फैलाकर अपनी राजनीतिक जमीन को गर्म करने की कोशिश कर रहे राजनीतिक दलों को तब बहुत पछताना पड़ेगा जब जनता उनके प्रभाव से हटकर इसकी सच्चाई समझेगी। पहले ही जमीन खो रहे इन दलों के लिए तब मुंह छिपाने के सिवाय कुछ नहीं बचेगा।


जनता को भड़काकर सियासी रोटी सेंकने की कोशिश - अब तक वह जिस तरह समाज में डर फैलाकर अपनी रोटी सेंकने की कोशिश कर रहे हैं वह संविधान के खिलाफ जनता को भड़काने के अलावा कुछ नहीं है। हर देश को हक है कि वह अपने नागरिकों के बारे में पूरी जानकारी रखे और यह मानवतावादी कर्तव्य है कि शरणार्थियों को नारकीय जीवन से हटाकर विकास की राह दे।





कानून के विरोध में सड़कों पर अराजकता का माहौल पैदा करने में विपक्षी दलों की अहम भूमिका - पिछले दिनों में जिस तरह सड़कों पर कुछ उपद्रवियों ने अराजकता का माहौल खड़ा किया उसमें कई लोगों की जानें चली गईं। कई राजनीतिक दल भी इसमें शामिल हैं और वह इस जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं। उनका यह तर्क कभी भी स्वीकार्य नहीं होगा कि वह हिंसा और सैकड़ों करोड़ की सार्वजनिक संपत्ति की बर्बादी के जिम्मेदार नहीं हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि कांग्रेस भी इन दलों के साथ खड़ी है।


दूसरों के कंधे पर सवार होकर आगे बढ़ने की रणनीति - यह सच है कि अपनी घटती जमीन को देखते हुए उसने दूसरों के कंधे पर सवार होकर आगे बढ़ने की रणनीति अपनाई है, लेकिन क्या कांग्रेस को इसका अहसास नहीं है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से पीडि़त होकर आए शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान है, वह राजनीति नहीं है। संविधान देश को इसका अधिकार देता है।


एनआरसी की मांग पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी की थी - यहां तक कि एनआरसी भी नागरिकों का एक रजिस्टर मात्र है जो हर किसी देश के पास होना ही चाहिए। यह हर देश का संवैधानिक अधिकार है और इसके खिलाफ खड़ा होना संविधान के खिलाफ है। खुद पूर्व प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह ने भी इसकी मांग की थी। दूसरे छोटे दलों की बात छोड़ भी दी जाए तो कांग्रेस के रणनीतिकार क्या यह नहीं समझ पा रहे हैं कि ऐसा कर वह अपना हाथ ही जला रहे हैं।


शाह और मोदी ने कहा- सीएए से किसी भी धर्म या जाति के लोगों की नागरिकता नहीं जाएगी - नागरिकता कानून को लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और अब खुद प्रधानमंत्री स्पष्ट कर चुके हैं कि इससे किसी भी धर्म या जाति के लोगों की नागरिकता नहीं जाएगी। यह नागरिकता देने का प्रावधान है, नागरिकता छीनने का नहीं है।


हर राज्य को केंद्र सरकार के संवैधानिक निर्णय को स्वीकार करना ही होगा - मामला सुप्रीम कोर्ट में भी है और संविधान कहता है कि हर राज्य को केंद्र सरकार के संवैधानिक निर्णय को स्वीकार करना ही होगा तो फिर कांग्रेस शासित राज्यों का एलान क्या उनकी विश्वसनीयता को खतरे में नहीं डालता है?


नागरिकता कानून कोई योजना नहीं है, केंद्रीय कानून है - कांग्रेस शासित राज्य क्या यह नहीं समझ रहे हैं कि नागरिकता कानून कोई योजना नहीं है, केंद्रीय कानून है। जब सुप्रीम कोर्ट इसे हरी झंडी दे देगा तो भी क्या कांग्रेस शासित राज्य इसे मानने से इनकार करेंगे? माना कि कांग्रेस को अपना जनाधार बढ़ाने की चिंता है, लेकिन इसका कोई उचित रास्ता ढूंढे, इस तरह छोटे दलों के बहकावे में आकर खुद के लिए मुश्किलें न खड़ी करे।


पीएम मोदी ने कहा- एनआरसी को लेकर अभी कोई फैसला नहीं हुआ - रविवार को दिल्ली के रामलीला मैदान में प्रधानमंत्री की ओर से स्पष्ट किया गया है कि एनआरसी को लेकर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है। असम की स्थिति कुछ और थी, वहां घुसपैठ का बहुत ज्यादा प्रभाव था। छह साल तक आंदोलन चले और तब राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में यह समझौता हुआ था कि 1971 यानी बांग्लादेश युद्ध से पहले भारत आए शरणार्थियों को नागरिकता दी जाएगी।


नया कानून मुस्लिमों के खिलाफ बताकर भय का वातावरण फैलाया जा रहा है - अब अगर पूरे देश के लिए एनआरसी का फैसला होता भी है तो वह 2003-04 से लागू होगा। फिर इसे मुस्लिमों के खिलाफ बताकर वे इंडिया गेट या राजघाट पर आंदोलन कर समाज में भय का वातावरण क्यों फैलाना चाहते हैं। इतिहास गवाह है जब कभी जनता भय के भ्रम से बाहर आती है तो गुस्सा अफवाह फैलाने वालों पर ही फूटता है।