- खट्टर की कंपनी कारनेशन ऑटो ने पीएनबी से लोन लिया था जो एनपीए हो गया
- पीएनबी ने खट्टर और कंपनी के खिलाफ धोखाधड़ी का केस दर्ज करवाया
- सीबीआई ने खट्टर के ठिकानों पर छापे की कार्रवाई भी की
- (File Photo - मारुति के पूर्व एमडी जगदीश खट्टर)
मारुति के पूर्व एमडी जगदीश खट्टर (77) के खिलाफ सीबीआई ने धोखाधड़ी का केस दर्ज किया है। सीबीआई अधिकारियों ने मंगलवार को यह जानकारी दी। एफआईआर के मुताबिक खट्टर और उनकी कंपनी कारनेशन ऑटो इंडिया पर 110 करोड़ रुपए के लोन घोटाले का आरोप है। सीबीआई ने खट्टर के ठिकानों और कारनेशन ऑटो के दफ्तरों पर सोमवार को छापे की कार्रवाई भी की थी।
खट्टर की कंपनी का लोन 2015 में एनपीए घोषित हुआ था - खट्टर 1993 से 2007 तक मारुति में रहे थे। 2007 में एमडी के पद से रिटायर हुए थे। इसके एक साल बाद उन्होंने कारनेशन की शुरुआत की। यह कंपनी कार एक्सेसरीज और पुरानी कारें बेचती थी। कारनेशन ने 2009 में पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) से 170 करोड़ रुपए का लोन लिया था। 2015 में लोन एनपीए घोषित हो गया। इससे पीएनबी को 110 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। इस मामले में पीएनबी ने आपराधिक षडयंत्र और धोखाधड़ी का केस दर्ज करवाया। आरोप हैं कि खट्टर और कारनेशन ने लोन के बदले जो एसेट्स गिरवी रखे थे, उन्हें धोखे से बेच दिया। पीएनबी के फॉरेंसिंक ऑडिट में इसका पता चला। एसेट्स बेचकर जो रकम मिली वह बैंक में जमा नहीं करवाई। इस तरह उन्होंने बैंक की राशि का दुरुपयोग किया।
तीन गारंटर कंपनियां भी आरोपी - पीएनबी ने खट्टर और कारनेशन के अलावा तीन गारंटर कंपनियों- खट्टर ऑटो इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, कारनेशनल रिएलिटी प्राइवेट लिमिटेड और कारनेशन इंश्योरेंस ब्रोकिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड को भी आरोपी बनाया है। हालांकि, शुरुआती जांच में गारंटर कंपनियों की प्रत्यक्ष भूमिका सामने नहीं आई। सीबीआई आगे की जांच के बाद इन कंपनियों की भूमिका तय करेगी।
कारनेशन को पिछले साल महिंद्रा फर्स्ट चॉइस ने खरीद लिया था - कारनेशन में अजीम प्रेमजी की निवेश फर्म प्रेमजी इन्वेस्ट ने भी पैसा लगाया था। कई बदलावों के बाद भी कारनेशन सफल नहीं हो पाई। 2017 में पीएनबी ने कंपनी के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू की थी। 2018 में कारनेशन ब्रांड और इसके कुछ एसेट्स को महिंद्रा ग्रुप की कार सर्विसिंग वर्कशॉप फर्म महिंद्रा फर्स्ट चॉइस ने खरीद लिया था। पूर्व आईएएस अफसर खट्टर 1999 में मारुति के एमडी बने थे, उस वक्त मारुति सरकारी कंपनी थी। 2002 में मारुति के निजीकरण के वक्त सुजुकी ने खट्टर को एमडी के पद पर ही रखा था। खट्टर ने मारुति को विदेशी कंपनियों से कॉम्पिटीशन में टिके रहने में मदद की थी।