आर्थिक सुस्ती के बीच कच्चा तेल साबित सकता है मोदी का अच्छा दोस्त!

     दुनियाभर में कोरोना के प्रकोप के चलते तेल की मांग प्रभावित हो रही है, इसलिए ओपेक और सहयोगी देश उत्पादन में कटौती पर विचार कर रहे थे। लेकिन रूस ने उत्पादन कटौती से इनकार कर दिया। सऊदी ने इसके बाद दाम घटा दिए, जिसका भारत को काफी फायदा हो सकता है।



     आर्थिक सुस्ती झेल रहे भारत के लिए इस समय  कच्चा तेल एक 'अच्छा दोस्त' साबित हो सकता है। सउदी अरब की अगुवाई वाले ओपेक और रूस के बीच तीन सालों से चले आ रहे 'खास रिश्ते' में खटास आ गई है। तेल उत्पादन में कटौती के प्रस्ताव पर रूस के सहमत न होने के बाद सउदी अरब ने तेल के दाम में भारी कटौती कर दी। रूस ने उत्पादन में कटौती से इनकार कर दिया था, जिससे  सउदी अरब नाराज हो गया।

उत्पादन घटाने से रूस का इनकार -
दुनियाभर में कोरोना के प्रकोप के चलते तेल की मांग प्रभावित हो रही है, इसलिए ओपेक और सहयोगी देश उत्पादन में कटौती पर विचार कर रहे थे। लेकिन रूस ने उत्पादन कटौती से इनकार कर दिया और बाजार पर कब्जे की इस जंग में सउदी ने दाम घटाकर रूस से बदला लिया है। लेकिन तेल का सस्ता होना भारत के हित में है। ब्रेंट क्रूड के दाम 31 पर्सेंट से ज्यादा नीचे आ गए हैं और एक्सपर्ट्स का मानना है कि गिरावट और आएगी।

मोदी राज में तेल के भाव - साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी पहली बार पीएम बने थे, उस वक्त भारत को एक बैरल क्रूड के लिए 108 डॉलर खर्च करने पड़ते थे, लेकिन तीसरे ही साल यह लागत घटकर 48 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई। इसके बाद 2019-20 में कच्चे तेल का औसत खरीद मूल्य 64 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया।

जब सस्ता होता है तेल - जब तेल सस्ता होता है तो सरकार का इंपोर्ट बिल घट जाता है और सब्सिडी पर कम खर्च होता है। इससे बैलंस ऑफ पेमेंट्स की स्थिति में सुधार होता है। इसके अलावा, सस्ता तेल से कॉस्ट ऑफ लिविंग घटती है, ब्याज दरें घटती हैं, जिससे आम आदमी के पास खर्च योग्य पैसा बढ़ता है।