सऊदी अरब की सरकार ने पिछले कुछ सालों में महिलाओं पर सामाजिक प्रतिबंधों को कम किया है। ड्राइविंग लाइसेंस, पुरुष अभिभावक की मंजूरी के बिना यात्रा और पुरुषों के साथ दफ्तर में काम करने की छूट देकर रूढ़िवादी देश ने अपनी नई पहचान बनाई है।

इस सब के बावजूद अब भी महिलाएं खुद को आजाद महसूस नहीं कर पा रहीं और वजह है परिजनों की संकीर्ण सोच। ऐसे में सवाल खड़े होने लगे हैं कि सऊदी अरब 2030 तक श्रम बाजार में महिलाओं की हिस्सेदारी 30 फीसदी करने का लक्ष्य कैसे हासिल करेगा।
रगदा और रफा अबुज्जाह नाम की दो बहनों ने जब नौकरी करने की इच्छा जताई तो उनके पिता झल्ला उठे। रगदा कहती हैं, जब हम दोनों ने बताया कि हमें मदीना के एक कॉफी शॉप में नौकरी मिली है तो हमारे पिता ने कई सवाल खड़े कर दिए। पिता ने कहा, ‘लोग क्या कहेंगे? क्या तुम लोगों के सामने रहोगी? दफ्तर में काम करना तो ठीक है कि वहां तुम्हें कोई देख नहीं पाएगा लेकिन कॉफी शॉप में तो तुम्हें पुरुषों के साथ और पुरुषों के लिए भी काम करना होगा? आखिर ऐसा कैसे होगा?’ रगदा ने आगे कहा, ‘हमें मजबूरन वहां पर चेहरा ढक कर नौकरी करनी पड़ी।
लेकिन फिर हमने धीरे-धीरे इससे मुक्ति का रास्ता तलाशा और परिवार की मर्जी के बिना वहां काम करती रहीं। अब हमें यहां चेहरा ढकने की जरूरत नहीं पड़ती। यह बात अब हमारे घर वालों को भी पता है और वे अब भी हमसे नाराज हैं लेकिन हम अब आजादी महसूस करने लगे हैं।’ रगदा कहती हैं, ‘रूढ़िवाद धीरे-धीरे खत्म होगा और इसकी शुरुआत तो करनी ही होगी।’
इस सब के बावजूद अब भी महिलाएं खुद को आजाद महसूस नहीं कर पा रहीं और वजह है परिजनों की संकीर्ण सोच। ऐसे में सवाल खड़े होने लगे हैं कि सऊदी अरब 2030 तक श्रम बाजार में महिलाओं की हिस्सेदारी 30 फीसदी करने का लक्ष्य कैसे हासिल करेगा।
रगदा और रफा अबुज्जाह नाम की दो बहनों ने जब नौकरी करने की इच्छा जताई तो उनके पिता झल्ला उठे। रगदा कहती हैं, जब हम दोनों ने बताया कि हमें मदीना के एक कॉफी शॉप में नौकरी मिली है तो हमारे पिता ने कई सवाल खड़े कर दिए। पिता ने कहा, ‘लोग क्या कहेंगे? क्या तुम लोगों के सामने रहोगी? दफ्तर में काम करना तो ठीक है कि वहां तुम्हें कोई देख नहीं पाएगा लेकिन कॉफी शॉप में तो तुम्हें पुरुषों के साथ और पुरुषों के लिए भी काम करना होगा? आखिर ऐसा कैसे होगा?’ रगदा ने आगे कहा, ‘हमें मजबूरन वहां पर चेहरा ढक कर नौकरी करनी पड़ी।
लेकिन फिर हमने धीरे-धीरे इससे मुक्ति का रास्ता तलाशा और परिवार की मर्जी के बिना वहां काम करती रहीं। अब हमें यहां चेहरा ढकने की जरूरत नहीं पड़ती। यह बात अब हमारे घर वालों को भी पता है और वे अब भी हमसे नाराज हैं लेकिन हम अब आजादी महसूस करने लगे हैं।’ रगदा कहती हैं, ‘रूढ़िवाद धीरे-धीरे खत्म होगा और इसकी शुरुआत तो करनी ही होगी।’