सहगल से शादी की बात चलाने पर लता के पिता ने कही थी ये बात

     हिंदी सिनेमा जगत के ध्रुव तारे के तौर पर पहचाने जाने वाले कुंदन लाल सहगल की आज 116वीं  जयंती  है। 11 अप्रैल 1904 को जम्मू में पैदा हुए सहगल को सिनेमा का पहला सुपरस्टार माना जाता है। दो दशक के अपने करियर में उन्होंने 142 फिल्मी गीत और 43 गैर फिल्मी गीत गाए। साल 1932 में फिल्म 'मोहब्बत के आंसू' से डेब्यू करने वाले सहगल के लिए 'यहूदी की लड़की' उनके करियर की पहली हिट फिल्म और 'देवदास' पहली सुपरहिट फिल्म बनी। सहगल के जीवन की ये अनसुनी कहानियां -



भजन कीर्तन का गहरा असर - के एल सहगल के पिता जम्मू के राजा अमरचंद प्रताप सिंह के दरबार में काम किया करते थे। उनकी मां केसरीबाई कौर धार्मिक कार्यकलापों के साथ-साथ संगीत में भी काफी रूचि रखती थीं। सहगल अक्सर मां के साथ भजन, कीर्तन जैसे धार्मिक कार्यक्रमों में जाया करते थे और अपने शहर में हो रही रामलीला में भी भाग लेते थे। बचपन से ही सहगल का रुझान गीत-संगीत की तरफ बढ़ता चला गया। सहगल ने पहली बार 12 साल की उम्र में राजा अमरचंद प्रताप सिंह के दरबार में गाया था।


आवाज में बदलाव से हुए खामोश - 13 साल की उम्र में जब के एल सहगल की आवाज में थोड़ा बदलाव आने लगा तो वह काफी डर गए। यहां तक कि उन्होंने महीनों तक नहीं बोला।  इससे परेशान होकर परिवार वाले उन्हें संत के पास ले गए जिन्होंने सहगल को रियाज करने की सलाह दी। अगले कुछ सालों में ही सहगल, पंकज मलिक और पहाड़ी सान्याल जैसे संगीतकारों की तारीफ पाने लगे।


टाइपराइटर के सेल्समैन - सहगल ने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी। उन्होंने रेलवे में टाइमकीपर की नौकरी भी की थी। बाद में उन्होंने रेमिंगटन टाइपराइटिंग मशीन की कंपनी में सेल्समैन की नौकरी की। नौकरी के दौरान सहगल के लिए संगीत एक शौक से अधिक कुछ नहीं था। वह दोस्तों के बीच महफिलों में गाना गाते थे। धीरे-धीरे उन्हें शोहरत मिलने लगी और उन्हें गायकी के साथ-साथ अदाकारी के भी ऑफर आने लगे।


युगपुरुष का खिताब - साल 1932 से लेकर 1946 के सिनेमा के समय को 'सहगल युग' के तौर पर जाना जाता है। सहगल ने ‘जब दिल ही टूट गया’, ‘दिया जलाओ’, ‘चाह बर्बाद करेगी’, ख्याल, ठुमरी, चैती, दादरा, ‘बाबुल मोरा नैहर छूटो जाए’ और ‘गम दिए मुस्तकिल’ जैसे गाने गाए थे। के एल सहगल के बारे में यह बात भी कही जाती है कि सहगल का करियर जैसे-जैसे परवान चढ़ता गया वैसे-वैसे वह शराब के आगोश में आते गए।


दिलीप कुमार ने पढ़े कसीदे - के एल सहगल की काफी इज्जत करने वालों में दिलीप कुमार भी शामिल थे। एक बार उन्होंने के एल सहगल के बारे में कहा था, 'उस जमाने में फिल्मों में काम करने वाले लोगों को लोग इज्जत की नजरों से नहीं देखते थे। कुंदन लाल सहगल उन चुनिंदा हस्तियों में से हैं जिन्होंने इस कला को समाज के पटल पर स्थान दिलाया। जब कभी भी हिंदुस्तानी फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास को देखा जाएगा तो के एल सहगल का नाम उन चंद हस्तियों में पाया जाएगा जिन्होंने इस इंडस्ट्री को एक अलग मुकाम पर पहुंचाया।'


लता मंगेशकर करना चाहती थीं शादी - लता मंगेशकर बचपन से ही अपने पिता के साथ सहगल के गाने सुना करती थीं। वह उनकी ऐसी दीवानी थीं कि उनसे शादी करना चाहती थीं। उन्होंने एक बार इस बारे में बताया, 'जितना मुझे याद आता है, मैं हमेशा से के एल सहगल से मिलना चाहती थी। बच्चे के तौर पर मैं कहती थी, 'जब बड़ी हो जाऊंगी तो उनसे शादी करूंगी'। तब मेरे बाबा मुझे समझाते थे कि जब तुम शादी करने जितनी बड़ी हो जाओगी तब तक वह शादी की उम्र पार कर चुके होंगे।' लता मंगेशकर को इस बात का हमेशा अफसोस रहा कि वह जीवन में कभी सहगल से नहीं मिल पाईं।


रबीन्द्रनाथ टैगोर ने की तारीफ - के एल सहगल ने हिंदी से लेकर बंगाली और तमिल भाषा की फिल्मों में भी काम किया। हिंदी के साथ साथ बंगाली भाषीय सिनेमा में भी उन्हें काफी शोहरत मिली। साल 1937 में उनकी पहली बंगाली फिल्म ‘दीदी’ लोगों को काफी पंसद आई। कभी पंजाबी होने के कारण उन्हें बंगाली गाना गाने और एक्टिंग करने से मना कर दिया गया था लेकिन उन्होंने इसके बावजूद ऐसा मुकाम बनाया कि उनके बंगाली गायन को इस फिल्म में खूब पसंद किया गया। खुद रबीन्द्रनाथ टैगोर ने सहगल के तारीफ में कहा था, 'तुम्हारा गला कितना सुंदर है।


शराब की लत - कहा जाता है कि जैस-जैसे के एल सहगल को शोहरत मिलती गई वह शराब के आगोश में आते गए। उनकी इस लत की काफी चर्चा भी रही। कहा जाने लगा था कि वे बिना शराब के सेवन के गाना नहीं गाते हैं। सहगल ने अपनी आखिरी दो फिल्मों में बिना नशे के गाया। मगर शराब की लत इस कदर हावी हो चुकी थी कि बिना शराब के जीना संभव नहीं था।  


मुकेश को दिया हारमोनियम - मशहूर गायक मुकेश ने के एल सहगल को कॉपी करना शुरू कर दिया था। उनका गाना ‘दिल जलता है तो जलने दे’ सुपरहिट साबित हुआ। मुकेश ने इस गाने को इस खूबसूरती से गाया था कि आज भी कुछ लोग इसे सहगल का गाना ही समझ लेते हैं। सहगल ने जब ये गाना सुना तो उन्होंने मुकेश को खुश होकर अपना हारमोनियम दे दिया था।


जिंदगी में दिया सिर्फ एक इंटरव्यू - ऐसा माना जाता है कि सहगल ने अपने करियर में सिर्फ एक इंटरव्यू दिया था जो 24 जनवरी 1947 को बंबई से निकलने वाली साप्ताहिक युगांतर में छपा। यह इंटरव्यू युगांतर के चीफ एडिटर वामन वासुदेव ने लिया था। वह अपने दोस्त जी एन जोशी (मराठी सिंगर, रेडियो अधिकारी, सहगल के दोस्त) की मदद से सहगल का इंटरव्यू ले पाने में कामयाब हुए थे।