जब मजदूरों की नम आंखों ने अधिकारी को रुला दिया, तेलंगाना टू झारखंड ट्रेन की इनसाइड स्टोरी

     रात के एक बजे रह रहे थे, जब बसों में मजदूरों को लाया जा रहा था। वो तेलंगाना के लिंगमपल्ली और आसपास के क्षेत्रों में पिछले चालीस दिनों से फंसे थे। ट्रेन में बैठने से पहले उनके आंखों से छलक रहे आंसुओं ने स्टेशन पर मौजूद अधिकारियों की आंखों को भी नम कर दिया। एक प्रवासी बच्चे ने जब मेरे पैर छुए तो यकीन मानिए मैं अपने आंसूओं को रोक नहीं सका। मजदूरों की नम आंखें उनके घर जाने की खुशियों को बयां कर रही थीं। 'हिन्दुस्तान' को यह आंखों देखा हाल बताया इस पूरे अभियान के नोडल ऑफिसर रहे के रविंदर रेड्डी ने।



     टेलीफोनिक बातचीत में नोडल अधिकारी ने बताया कि कुल 1233 प्रवासियों को झारखंड के लिए रवाना किया गया है। इन मजदूरों की लिस्ट पहले से ही बनी हुई थी, क्योंकि इनमें से अधिकतर यहीं के लार्सन एंड टूब्रो कंपनी के प्रोजेक्ट में काम कर रहे थे। सभी को रात तीन बजे तक स्टेशन के बाहर एकत्र कर लिया गया था। झारखंड की स्थानीय भाषा में जोहार जोहार कहकर ये मजदूर हम लोगों का अभिवादन कर रहे थे। ट्रेन रवाना हुए सभी लोगों के लिए पर्याप्त पानी और खाने की व्यवस्था की गई थी।


हिंसा के आरोप में फंस सकते थे सभी - नोडल अधिकारी रविंदर रेड्डी ने कुछ चौंकाने वाली जानकारी दी। उन्होंने बताया कि स्थानीय कंपनी में जब काम बंद हो गया तो ये सभी बेरोजगार हो गए। ये घर जाने की जिद पर अड़ गए। पिछले दिनों बात इतनी बढ़ गई कि ये हिंसा पर उतारू हो गए। स्थानीय पुलिस पर हमला कर बैठे, गाड़ियां तोड़ दी। कंपनी को भी नुकसान पहुंचाया। सरकार के निर्देश पर मामले को शांत किया गया। किसी तरह का कोई मामला दर्ज नहीं हुआ। स्थानीय प्रशासन भी चाहता था कि कैसे भी इन्हें यहां से निकाला जाए ताकि भविष्य में कोई बड़ी घटना न हो।
 
बेहद गोपनीय था यह अभियान - रेड्डी ने बताया कि अभियान में गोपनीयता बरती गई थी। देश के दूसरे क्षेत्रों में खराब अनुभव को देखते हुए यह प्रक्रिया अपनाई थी, ताकि किसी तरह का पैनिक न हो। रात के समय ही मजदूरों को इसकी जानकारी मिली और उन्हें स्पेशल बसों के जरिए स्टेशन लाया गया।