"आज गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर प्रोफेसर हिम्मत सिंह जडेजा की कलम से यह कविता उन्हें ही समर्पित करते हुए प्रणाम" प्रोफेसर जडेजा वर्तमान में भी पूर्व की भांति सक्रिय हैं, लम्बे समय से "जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी" में स्कूल ऑफ मीडिया स्टडी में विभागाध्यक्ष हैं. पूर्व में रंगमंच, टीवी, फिल्म का अनुभव अब अपने शिष्यों से साझा कर, ज्ञान अर्पित कर नई जनरेशन को तैयार कर रहे हैं. आपके अमूल्य योगदान के लिए गुरु पूर्णिमा पर आपको सादर प्रणाम व् चरण स्पर्श।
✨✨- अब लौट भी चले -✨✨
घर कभी हमारा भी बनेगा
ये सोच कर शहर आए थे -2
हमारे सपनो की सोच
पिसकर रह गयी
नसीब में अपना नही
औरों का घर जो बनाना था ।
बसा दिए कई शहर इस सोच के साथ
की इन घरों में कोई खड़की
कभी हमारे लिए खुलेगी -2
और हमारे घायल अरमानो को देख
विशाल दरवाज़े की सोच बदलेगी ,
ये पथरीले जंगल भी शायद कभी बोलेंगे
लेकिन बस ऐसा हुआ नहीं
आओ अब फिर लौट चले
आओ अब फिर लौट चले ।
मैं जवान था
अब थक कर बूढ़ा हो चुका हूँ -2
लेकिन बस ..ऐसा हुआ नही
हाँ अब लौट भी चले ।
मैं अब जा रहा हूँ
यहाँ फिर कभी लौटूँगा नही -2
लेकिन...
ऐसा भी तो मैं कह नही सकता
गाँव की मजबूरी ही तो
शहरों तक हमें लाती है ,
ऐसे में कितने दिनों लोग
उन बुझे बुझे से घरों में रह सकते थे -2
हाँ ... मैं फिर शहर में आऊँगा -2
यह सब आज जो गये है
बड़ी मिन्नत के बाद लौटेंगे शहरों में,
लेकिन ...अपनी शर्तों पर
चार गुना मज़दूरी
घर की किश्त
मुनाफ़े में हिस्सा
चिकित्सा व राशन सुविधाएँ
और दिवाली बोनस ।
आऊँगा मैं फिर शहर
आऊँगा मैं फिर शहर
पर अब कुछ शर्तों पर
कुछ अपनी शर्तों पर ....
✨ -हिम्मत सिंह जडेजा की कलम से......