ऐसी बहादुर थी 'नूर'- कोई भी नहीं किया खुलासा, 10 माह तक नाजियों की यातनऐं सहती रही

     दूसरे विश्‍व युद्ध में ब्रिटेन की तरफ से मित्र देशों की जासूसी करने वानी नूर इनायत खान को लंदन में उनके पूर्व पारिवारिक घर में स्मारक ‘ब्लू प्लाक’ से सम्मानित किया गया है। वे द्वितीय विश्वयुद्ध में पहली एशियन सीक्रेट एजेंट थी। ये हर भारतीय के लिए एक अदभुत पल था क्‍‍‍‍‍‍‍‍योंकि पहली बार ये सम्‍मान किसी भारतीय को मिला है। नूर का अर्थ होता है उजाला। वो सचमुत उस दौर में जब नाजियों के अत्‍याचार से आधी दुनिया सहमी हुई थी, नूर एक नए प्रकाश के तौर पर सामने आई थीं।


     नूर मास्‍को में पैदा हुई, ब्रिटेन में पली बढ़ीं और नाजियों के कब्‍जे वाले फ्रांस में अंतिम सांस ली। नूर अपने तीन उपनाम नोरा बेकर, मेडेलीन, जीन-मरी रेनिया के नाम से भी जानी जाती थीं। नूर इनायत खान भारत के पूर्व मैसूर राज्‍य के शासक टीपू सुल्‍तान की वंशज थीं।



     नूर का पूरा नाम नूर-उन-निसा इनायत खान था। उनका जन्‍म 1 जनवरी 1914 को मास्‍को में हुआ था। उनके पिता भारतीय और मां अमेरिकी थीं। उनके पिता हजरत इनायत खान टीपू सुल्तान के पड़पोते थे। उनको सूफीवाद को पश्चिमी देशों में पहुंचाने के लिए जाना जाता है। वे एक धार्मिक शिक्षक के तौर वो कई देशों में रहे, लेकिन उनका लंबा जीवन लंदन और पेरिस में बीता था। पिता की तरह नूर की भी रू‍चि धर्म और आस्‍था से थी। नूर को संगीत का भी शौक था इसलिए उन्‍होने वीणा बजानी सीखी थी। प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ने और नूर के जन्‍म के बाद उनका परिवार मॉस्को से लंदन आ गया था। यहां पर उनकी पढ़ाई शुरू हुई। इसके बाद 1920 में उनका परिवार पेरिस के सुरेसनेस में रहने लगा। 1927 में पिता के निधन के बाद पूरे घर की जिम्‍मेदारी उनके ही कंघों पर आ गई थी।


     नूर ने परिवार को संभालने के लिए संगीत का माध्‍यम बनाया। उन्‍होंने सूफी विचारधारा का प्रचार-प्रसार करने के लिए वीणा और पियानो को एक माध्‍यम बनाया। फ्रेंच रेडियो को भी अपना नियमित योगदान देती थीं। भगवान बौद्ध से प्रभावित होकर उन्‍होंने एक किताब ट्वेंटी जातका टेल्स लिखी जो 1939 में प्रकाशित हुई थी। द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ने के बाद 22 जून 1940 को वो अपने परिवार के साथ ब्रिटेन के फॉलमाउथ, कॉर्नवाल लौट आईं। इस युद्ध से उनको गहरा झटका भी लगा था और उन्‍होंने भारतीयों से मित्र राष्‍ट्रों का साथ देने की अपील भी की थी।