राजस्थान सरकार को अल्पमत में लाने का दावा करने वाले सचिन पायलट के तेवर ठंडे पड़ गए हैं. पार्टी हाईकमान के साथ बातचीत के बाद सचिन की नाराजगी दूर हो गई है. जिसके बाद राजस्थान की कांग्रेस सरकार पर मंडरा रहा खतरा खत्म हो गया है. लंबा सफर तय कर चुके पायलट की घर वापसी पर कई तरह के सवाल भी खड़े हो रहे हैं. कहा ये भी जा रहा है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सियासी दांव के बाद पायलट विकल्पहीन हो गए थे.
सचिन पायलट 12 जुलाई को जब दिल्ली के पास मानेसर पहुंचे तो उनके पास कुल विधायकों की संख्या 25 थी. इनमें से तीन कांग्रेस विधायक किसी बहाने वहां से वापस जयपुर पहुंच गए. पायलट समेत उनके पास कुल 22 विधायक बचे जिनमें तीन निर्दलीय थे. पायलट की इस बगावत का गहलोत पर प्रभाव नहीं पड़ सका और उन्होंने 102 विधायकों के समर्थन की सूची सौंप दी. यानी पायलट के तीन समर्थक विधायकों का वापस आ जाना भी उनकी कमजोरी साबित हो गया.
इसके अलावा पायलट के साथ मौजूद कुछ विधायकों में भी भविष्य को लेकर संशय पैदा होने लगा था. इस बदलाव में अशोक गहलोत के खुले खत के जरिए विधायकों से अपील का भी असर माना जा रहा है. कांग्रेस के एक नेता ने बताया है कि भंवरलाल शर्मा और अन्य विधायकों के गहलोत को समर्थन के बाद सचिन पायलट के पास कोई विकल्प नहीं बचा था. तीन निर्दलीय विधायक भी अब पायलट खेमे से गहलोत के पास आ गए हैं.