द्वारा - रवि आनंद (वरिष्ठ पत्रकार) पटना
पटना - आज 11 अक्टूबर 2020 को बिहार की राजधानी पटना के जमाल रोड स्थित होटल कुणाल इंटरनेशनल के सभागार भवन में भारत रत्न लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती के अवसर पर भारत रत्न लाल बहादुर शास्त्री सम्मान से समाज के विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाले लोगों के सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता वंदे मातरम फाउंडेशन के अध्यक्ष एवं पत्रकार राजन कुमार सिन्हा, संचालन दूरदर्शन पटना की एंकर श्रीमती रूपम त्रिविक्रम ने किया। कार्यक्रम के प्रारंभ गणेश वंदना एवं भारत रत्न लोकनायक जयप्रकाश नारायण एवं लाल बहादुर शास्त्री के तैल चित्र पर माल्यार्पण करते हुए प्रारंभ किया गया. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारतीय डेमोक्रेटिक एलाइंस के राष्ट्रीय संयोजक संजय रघुवर ने इस अवसर पर कहा कि लोकनायक जयप्रकाश के बारे में आज की पीढ़ी को जो जानकारी दी जानी चाहिए थी नहीं दी गई है. लोकनायक जयप्रकाश एक ऐसे व्यक्तित्व का नाम है जिन्होंने अपने जीवन में सभी चीजों का परित्याग किया और एक सूफी संत के तरह अपने जीवन को व्यतीत किया।
इन्होंने आगे कहा 1942 अगस्त क्रांति के लोकनायक जयप्रकाश वास्तविक रुप से राष्ट्रीय स्तर पर अविभाजित भारत के नायक थे. उन्होंने आगे कहा बिहार के सुप्रसिद्ध अधिवक्ता ब्रजकिशोर प्रसाद की पुत्री प्रभावती देवी से इनकी शादी हुई थी. जयप्रकाश भारतीय स्वतंत्रता के आंदोलन में कूद पड़े थे. इसी बीच शिक्षा अध्ययन के लिए विदेश गए और वहां से एक मार्क्सवादी होकर भारत लौटे। इसी क्रम में संजय रघुवर ने कहा की राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जब बिहार की धरती पर पहली मर्तबा आए तो यहां डॉ राजेंद्र प्रसाद, सुप्रसिद्ध अधिवक्ता ब्रजकिशोर प्रसाद एवं बिहार विभूति अनुग्रह नारायण सिंह इत्यादि उनके अभियान से जुड़ गए और ब्रजकिशोर बाबू से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का व्यक्तिगत संबंध इतने प्रगाढ़ हो गए कि राष्ट्रपिता ने ब्रजकिशोर बाबू से कहा कि उनकी कोई पुत्री नहीं है, वह उनके साथ प्रभावती को उनके आश्रम साबरमती जाने दे. ब्रजकिशोर बाबू ने अपनी पुत्री को राष्ट्रपिता को सुपुर्द कर दिया, जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एवं उनकी धर्मपत्नी कस्तूरबा ने इन्हें पुत्री मान लिया। जब जयप्रकाश शिक्षा पूरी कर और मार्क्सवादी बंद कर भारत आए, जब साबरमती आश्रम गए तो उन्हें यह जानकारी मिली उनकी पत्नी प्रभावती देवी ने आजीवन ब्रह्मचर्य रहने का व्रत ले लिया है.
ऐसी स्थिति में वहां काफी करुणा एवं उदासी का वातावरण का निर्माण हो गया. यद्यपि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एवं उनकी पत्नी कस्तूरबा ने जयप्रकाश नारायण का सम्मान एवं स्नेह एक दमाद के तौर पर किया। बापू ने प्रस्ताव रखा कि तुम चाहो तो सांसारिक जीवन जीने के लिए दूसरी शादी कर सकते हो. तब जयप्रकाश जी ने कहा कि प्रभावती ने यदि ब्रह्मचर्य का व्रत लिया है तो मैं भी ब्रह्मचर्य का व्रत लेता हूं. इस तरह से वासना का परित्याग किया। ऐसे उदाहरण इतिहास में और दूसरा नहीं मिलता है. देश को जब आजादी मिलती है उसके पहले भारत विभाजन के मामले पर हुई बैठक में मात्र जयप्रकाश नारायण एवं डॉ राम मनोहर लोहिया ने विभाजन का पुरजोर शब्दों में विरोध किया। भारत विभाजन के विरोध अब्दुल गफ्फार खान जिन्हें सीमांत गांधी कहा जाता है ने भी काफी किया लेकिन भारत का विभाजन हो गया. जब पंडित जवाहरलाल नेहरु की सरकार बनी तो सरकार में उप प्रधानमंत्री के तौर पर जयप्रकाश नारायण को मंत्रिमंडल में शामिल होने हेतु नेहरू ने आमंत्रित किया लेकिन जयप्रकाश और लोहिया ने इस प्रस्ताव को नामंजूर करते हुए आचार्य नरेंद्र देव अच्युत पटवर्धन, एनजी गोरे, युसूफ मेहर अली, अरूणा आसफ अली इत्यादि कई प्रख्यात क्रांतिकारियों के साथ व्यवस्था परिवर्तन के लिए सोशलिस्ट पार्टी का गठन करने का निर्णय लिया।
याद आती सोशलिस्ट पार्टी के विभाजन के बाद जयप्रकाश राजनीति से उदासीन होकर सर्वोदय में जाने का निर्णय लिया और विनोबा के साथ महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्यों को भूदान आंदोलन को आगे बढ़ाने का काम किया। किंतु तत्कालीन कांग्रेस पार्टी एवं उसकी नेत्री देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जब तानाशाही की ओर कदम बढ़ा दी तो जयप्रकाश नारायण ने एक सशक्त आंदोलन किया। वैसे तो आंदोलन बिहार के छात्रों के सवालों पर प्रारंभ हुए थे लेकिन वह पूरे देश में फैला और उन दिनों कांग्रेश के युवा तुर्क कहे जाने वाले सर्व चंद्रशेखर मोहन धारिया, रामधन कृष्णकांत जैसे लोगों ने इस आंदोलन में कूद पड़े और अपनी गिरफ्तारी दी. देश के सैकड़ों लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए मिले सम्मान को भी लौट दिया और लोकसभा कार्यकाल बढ़ाए जाने के विरुद्ध मधु लिमए सहित अनेक सांसदों ने और बिहार विधानसभा के समाजवादी विधायकों ने इस्तीफा दिया। आज जब विपरीत परिस्थिति में कोरोना के लिए बिहार विधानसभा चुनाव कराए जा रहे हैं और सन 74 से हजार गुना परिस्थितियां बदतर हुई हैं और ऐसा लगता है कि सारी व्यवस्था फेल हो गई है.
उस आंदोलन से निकले लोग केंद्र एवं राज्य के सत्ता में भी हैं और विपक्ष में भी हैं. यदि आज वह होते और आंदोलन के लिए निकलते तो पता नहीं आज कितने लोग साथ देते। क्योंकि आज तो उस आंदोलन से निकले लोग लोकतंत्र सेनानी के नाम पर पेंशन पाने के लिए केंद्र एवं राज्य की सरकार के सामने कटोरा लेकर खड़े। इसके अतिरिक्त प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो काफी गिरावट हुई है. अब तो चुनाव में विज्ञापन के आधार पर न्यूज़ छाप रहे हैं या दिखाए जा रहे हैं. इसके लिए मैं पत्रकारों को दोष नहीं देता क्योंकि समाचार पत्रों एवं चैनलों के प्राय सभी मालिक कारपोरेट घराने के लोग हैं. जिनका राजनीतिक दलों पर भी कब्जा है और प्रचार तंत्र पर भी कब्जा है. निश्चित रूप से आज लोकतंत्र खतरे में है या गिरवी रख ली गई है या रख दी गई है फिर से एक बार लोकनायक जयप्रकाश के रास्ते पर एक बड़ा जन आंदोलन खड़ा किए जाने की आवश्यकता है. हम सभी को आज संकल्प लेना चाहिए लोकनायक जयप्रकाश के आदर्शों को मरने नहीं देंगे,चाहे जो भी अपनी कुर्बानी देनी पड़े। समय की मांग है देने के लिए तत्पर होना चाहिए। तमाम आयोजन कर्ताओं को इस तरह के आयोजन के लिए मैं अपनी ओर से हार्दिक बधाई देता हूं और आशा करता हूं एक जन आंदोलन की दिशा में हम सभी आगे बढ़ेंगे।