आश्विन शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से नवमी तक मां भगवती के नौ रूपों की पूजा होती है। आश्विन मास में पड़ने वाले इस नवरात्र को शारदीय नवरात्र कहा जाता है। मां दुर्गा के भक्तगण नौ दिनों का व्रत रखते हैं और पूरे मन से देवी के नौ रूपों की पूजा करते हैं। इस नवरात्र की विशेषता है कि हम घरों में कलश स्थापना के साथ-साथ पूजा पंडालों में भी स्थापित करके मां भगवती की आराधना करते हैं। इन नामों और रूपों की उपासना नवरात्रि में की जाती है।
इस शारदीय नवरात्र आश्विन शुक्ल पक्ष की उदय कालिक प्रतिपदा तिथि 17 अक्टूबर दिन शनिवार से शुरू हो रहे हैं। प्रतिपदा तिथि को माता के प्रथम स्वरूप शैल पुत्री के साथ ही कलश स्थापना के लिए भी अति महत्त्वपूर्ण दिन होता है। नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा की जाती है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या थीं, तब इनका नाम सती था। इस दिन कलश स्थापना कर नौ दिनों तक माता की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इसलिए यह स्थापना सही और उत्तम समय में की जानी चाहिए।
अभिजीत मुहूर्त सभी शुभ कार्यों के लिए अति उत्तम होता है। जो मध्यान्ह 11:36 से 12:24 तक होगा।
स्थिर लग्न कुम्भ दोपहर 2:30 से 3:55 तक होगा, साथ ही शुभ चौघड़िया भी इस समय प्राप्त होगी। अतः यह अवधि कलश स्थापना हेतु अतिउत्तम है।
दूसरा स्थिर लग्न वृष 07:06 से 09:02 बजे तक होगा, परंतु चौघड़िया 07:30 तक ही शुभ है, अतः 07:08 से 07:30 बजे के बीच मे कलश स्थापना किया जा सकता है।