संस्मरण - प्रमोद इंटर कॉलेज

 लेखक अम्बुज सक्सेना के संस्मरण (भाग - 2)


     मुझे अपना कॉलेज छोड़े हुए लगभग 33 साल हो गए हैं. आप लोग ध्यान दीजिये मैं अपना कॉलेज लिख रहा हूँ न कि प्रमोद इंटर कॉलेज क्योंकि इस कॉलेज को मैंने हमेशा अपने आस-पास ही पाया है. दिल और दिमाग के एक कोने में बिल्कुल घर सा बना लिया है. इतने साल कब पंख लगा कर उड़ गय पता ही नहीं चला. सही कहते हैं लोग समय बहुत तेजी से भागता है इसको पकड़ा नहीं जा सकता. इतनी यादे हैं अपने कॉलेज की, सहसवान की कि अगर प्रत्येक दिन एक लेख लिखू तब भी 365 दिन में पूरा नहीं होगा. अभी तो मैं अपने कॉलेज को ही लिखूँगा इसके बाद सहसवान के बारे में अपनी प्राथमिक विद्यालय के बारे में लिखूँगा। देखते हैं कितना लिख पाता हूं, कितना याद है सहसवान के बारे में.


     उस मेरे कॉलेज में पढ़ाई का स्तर बहुत ही अच्छा था. सभी अध्यापक बहुत ही मेहनती थे. लगन से पढ़ाते थे. श्री ओम प्रकाश सर जी, जो कि 8 वी तक भूगोल और संस्कृत पढ़ाते थे. उनके पढ़ाने की जो तन्मयता थी उससे कक्षा में ही पूरा पाठ समझ मे आ जाता था. श्रीं लखपत सिंह सर जी 8 वी तक गणित पढ़ाते थे. उस समय 12 वी तक संस्कृत सभी बच्चों के लिए एक अनिवार्य विषय होता था. चाहे वो विज्ञान का विद्यार्थी हो या कला का. विज्ञान के विद्यार्थी के पास संस्कृत के चयन का अवसर नहीं था, इसलिए सभी विद्यार्थियों को संस्कृत अनिवार्य था. 9 वी से किस विद्यार्थी को विज्ञान लेना है, किसे कला लेना है, ये निर्णय लिया जाता था. मैं विज्ञान का विद्यार्थी था. उस समय विज्ञान श्री सुरेश सक्सेना सर जी पढ़ाते थे. उस समय भौतिक विज्ञान श्री सुरेश जी जैसा अच्छा पढ़ाने वाले कुछ गिने चुने ही अध्यापक रहे होगे. गणित के एक अध्यापक थे श्री विपिन सर जी लेकिन ये 1982 के आसपास कॉलेज छोड़ चुके थे. लोग बताते थे कि वो बहुत ही कुशाग्र थे गणित में. कहते हैं कि उनको गणित उँगलियों पर याद थी.


     मेरे समय में श्री दिनेश अग्रवाल जी का आगमन हुआ था गणित पढ़ाने के लिए. कोई भी समय रहा हो विद्यार्थी हमेशा गणित से डरता था और डरता है लेकिन जब श्री अग्रवाल सर ने कॉलेज जॉइन किया और उन्होंने जो गणित को पढ़ाना शुरू किया बच्चों के मन से गणित का डर भागने लगा. उनके पढ़ाने का ढंग, समझाने की जो कला उनके पास थी. शायद आज तक मैंने किसी भी अध्यापक के पास नहीं देखी. एक-एक बारीक से बारीक आधार (concept) को वो बताते थे. हम सभी मंत्र मुग्ध होकर उनके लेक्चर को सुनते थे. पता नहीं क्या जादू था उनके बोल ने मे, पढ़ाने मे, कि गणित का डर ही दूर हो गया. ऎसा अध्यापक गणित का मैंने आज तक नहीं देखा। मैं खुद आज गणित का अध्यापक हूं. कोशिश करता हूं कि श्री दिनेश सर जी जैसा बच्चों को पढ़ा पाऊं समझा पाऊं लेकिन...


     रसायन विज्ञान (केमिस्ट्री) श्री खान सर जी पढ़ाते थे इन तीन अध्यापकों का जो संयोजन (combination) था, बहुत ही अच्छा था. तीनों ही अध्यापकों की पकड़ अपने विषय में इतनी अच्छी थी कि बिना किताब के ही पढ़ाते थे. कुछ सालो पहले श्री अग्रवाल जी इस दुनिया से दूर चले गए. श्री अग्रवाल जी  गणित के लिए हमेशा मेरे आदर्श रहेगे. गणित में जो भी कुछ सीखा है, पढ़ा है वो सब अग्रवाल जी से ही सीखा है. अंग्रेज़ी मे दद्दा सर जी (सक्सेना सर जी) और श्री श्याम जी थे, दद्दा सर जी का पढ़ाने और बोलने का जो लहजा था वो बहुत ही अलग था. बोलने का जो स्टाइल था वो स्टाइल आज भी कान मे गूँजता है. वो एक कविता समझाते थे.. Lucy grey... Live long day...श्री श्याम जी अँग्रेजी सीनियर कक्षाओं में पढ़ाते थे. उनका एक वाक्य आज भी याद है जब वो भरत नामक पाठ को पढ़ाते थे वाक्य है.. Word like a jevalin.


     सुबह सुबह प्रार्थना होती थी हमारे प्रिन्सिपल साहब भी होते थे. आज फिर मैं उनके द्वारा सुनाई हुई कहानी से अपना लेख समाप्त करूगा ... एक जमीदार साहब थे, जो परिस्थितियों बस बहुत गरीब अवस्था में पहुंच गए. रामू नाई एक दिन उनके यहां बाल काटने पहुंचा। जमीदार ने बाल काटने के बाद कहा की थोड़ी चंपी कर दो. रामू नाई चंपी के बाद उसने उनकी सिर पर दो टोले मार दी. जमीदार को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन उन्होंने अपनी स्थिति को देखते हुए कुछ नहीं कहा लेकिन बाद में उन्होंने उसको अठन्नी दी. रामू ने बोला मेरे हजामत के और बाल काटने के सिर्फ 25 पैसे हुए. आप अठन्नी क्यों दे रहे हैं? जमीदार ने कहा कि तुमने जो मालिश चंपी करी थी और उसके बाद जो टोले मारी उससे तो मजा आ गया. रामू मन ही मन बहुत खुश हुआ कि मैंने तो इसके जानबूझकर टोले मारी थी और यह मुझे इनाम दे रहा है.


     दूसरे दिन रामू नाई को एक बड़े जमीदार ने अपने घर बुलवा लिया और उससे अपनी हजामत और बाल काटने के लिए कहा…रामू ने जमीदार साहब के बाल और हजामत बनाई और उसके बाद उनके सर की चंपी करने के बाद उनके सर पर 7-8 टोले दनादन मार दी. जमीदार आग बबूला हो उठे और उन्होंने अपने पहलवानों को बुलाकर रामू  नाई की मरम्मत करने के लिए बोला। पहलवानों ने रामू नाई को जमकर ठोका। एक दिन रामू नाई गरीब जमीदार को बाजार में मिला, उसके हाथ पैरों पर पट्टियां बंधी हुई थी. गरीब जमीदार ने उससे पूछा क्या हुआ? उसने कहा कि आपने तो डोले मारने पर इनाम दिया था जबकि जमीदार के टोले मारी तो उसने मेरा यह हाल किया है. जमीदार ने कहा तुम्हें पैसे इसीलिए दिए थे कि तुम यही हरकत किसी और बड़े व्यक्ति के साथ करोगे तब तुम्हें इसका फल खुद मिल जाएगा।


     ..... और इसके बाद हमारे प्रिसिंपल साहब कहते हैं कि इस कहानी से प्रेरणा मिलती है कि कभी भी असहाय को, गरीब को, लाचार को तंग मत करो. वरना तुमको भी शेर का सवा शेर मिलेगा। जैसे नाई को मिला। सभी को समान समझो सभी की इज्जत करो. आज के लिय इतना ही. आप लोग मेरे कॉलेज, अपने कॉलेज के ये संस्मरण लोगों तक जरूर पहुंचाये. आप सभी से अपेक्षित है. कुछ किताबों के चित्र भेज रहा हूं जो अभी भी मेरे पास रखी हुई हैं।