संस्मरण - प्रमोद इंटर कॉलेज

     आज मैं अपने स्कूल की दिनों की यादें ताजा कर रहा था. मेरी स्कूल की पढ़ाई उत्तर प्रदेश के छोटे से कस्बे सहसवान के प्रमोद इंटर कॉलेज से हुई है. एक समय था 1985 के आसपास, उस समय प्रमोद इंटर कॉलेज की गिनती उत्तर प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ कॉलेजों में होती थी. उत्तर प्रदेश के छोटे से कस्बे के किसी इंटर कॉलेज के प्रिसिंपल को उस समय राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित होना बहुत ही बड़े गर्व की बात थी. प्रमोद इंटर कॉलेज में पढ़ने वाले सभी छात्र छात्राएं संस्कारवान, आज्ञाकारी और नैतिक जिम्मेदारी युक्त थे. हमारे सभी अध्यापक हम सभी को बहुत ही मेहनत और लगन से पढ़ाते थे और संस्कृति और संस्कार की शिक्षा देते थे. उस समय हमारे प्रिसिंपल स्वर्गीय चतुर्वेद उपाध्याय जी थे. प्रिसिंपल साहब जितने सख्त थे उतने ही दयालू थे. आज के समय में सारे निजी स्कूल किताबों के नाम पर लूटते हैं लेकिन हमारा इंटर कॉलेज पूरे उत्तर प्रदेश में अकेला ऎसा इंटर कॉलेज था, जो छात्र और छात्राओं को सस्ते दामों में कॉपी उपलब्ध कराता था.



     पूरा इंटर कॉलेज पूर्णतया हरा भरा था. विभिन्न प्रकार के फूल, पेड़-पौधे कॉलेज की सुंदरता में चार चांद लगाते थे. उस समय पूरे प्रदेश में दो चार ही इंटर कॉलेज ऎसे थे जहां प्रत्येक कक्षा में लाउड स्पीकर थे और हमारे प्रिन्सिपल साहब और अध्यापक गण एक ही रूम से माइक पर बोल कर मुख्य सूचनाओं को सभी कक्षाओं तक पहुचा देते थे. सभी छात्र-छात्राएं सभी अध्यापकों का सम्मान आदर स्वरूप करते थे जबकि आज के समय में छात्र और छात्राएं अध्यापकों का सम्मान डर से करते हैं. यही अन्तर है हमारी शिक्षा मे और आज की शिक्षा मे. एक छोटे से कस्बे निकले मैं और मेरे सारे दोस्त बहुत ही अच्छी तरह से रोजगार के क्षेत्र में स्थापित हैं.


     मेरे प्रिन्सिपल हम लोगों को एक कहानी सुनाते थे और उस कहानी से जो प्रेरणा मिली उससे हम लोगो को कुछ अच्छा कर गुजरने की सीख मिली। आज मैं वो कहानी साझा कर रहा हूं ---


     एक गाव मे हुलसा और हुलासी नाम के पति पत्नी रहते थे. हुलसा का काम था चोरी करना और चोरी से आए हुए पैसे से अपना और अपनी पत्नी का जीवन यापन करना। उसकी पत्नी लोगों के घरों में काम करती थी लेकिन जब ये पता चलता कि उसका पति हुलसा चोरी करता है, तब उसकी पत्नी हुलासी को लोग काम से निकाल देते थे.


     हुलासी अपने पति हुलसा को बहुत समझाती कि ये चोरी छोड़ कर कोई मेहनत मजदूरी का काम करो. जिससे सम्मान मिले लेकिन हुलसा पर कोई असर नहीं होता था. बहुत दिनों तक पत्नी समझाती रही, तब एक दिन हुलसा ने अपनी पत्नी के सामने प्रण लिया कि वो अब चोरी नहीं करेगा एवं मेहनत मजदूरी से अपने परिवार का भरण पोषण करेगा। धीरे धीरे हुलसा की मेहनत काम लाई और वो गाँव लोग उसका सम्मान करने लगे.


     एक दिन गांव के प्रधान के घर एक दावत का आयोजन किया गया, इस आयोजन में हुलसा और उसकी पत्नी हुलासी को भी बुलाया गया. खुशी के माहौल में सभी लोग नाच गा रहे थे. हुलसा भी नाचने लगा. अचानक हुलसा की पत्नी ने हुलसा को देखा तब उसने देखा कि हुलसा की जेब से चावल के दाने निकल कर गिर रहे हैं तब उसकी पत्नी हुलसा से कहती है - धीरे धीरे नाच हुलासो,  तेरो करतब  दीखो जाए.


हुलासो ने चावल के दाने चुरा कर जेब में रख लिय थे। 


     हमारे प्रिसिंपल साहब फिर इस कहानी का मतलब बताते हैं कि चोर चोरी छोड़ सकता है हेरा फेरी नहीं, अगर अपने जीवन में सफल होना है तब चोरी के साथ साथ हेरा फेरी भी छोड़नी पड़ेगी, तभी एक सफल व्यक्ति बनोगे और तभी एक सफल राष्ट्र का निर्माण कर पाओगे।


     मै और मेरे सारे दोस्त एवं प्रमोद इंटर कॉलेज में पढ़ने वाले सभी छात्र छात्राएं अपने प्रिन्सिपल साहब और अध्यापकों के चिर ऋणी रहेगे कि उन्होंने हम सभी को मानव मूल्यों के साथ मार्गदर्शन करके हमारी नीव मजबूत की और हमारे उज्ज्वल भविष्य की शिलालेख रखी.


     "धन्य हैं मेरे सारे अध्यापक। सभी को ऎसे ही अध्यापक और प्रिसिंपल मिले भगवान से यही प्रार्थना है." 


द्वारा - अम्बुज सक्सेना


(प्रमोद इंटर कॉलेज का भूतपूर्व छात्र)
(संस्मरण 1984-85 का है)