सनातन धर्म की प्रकाश वसुधा पर जितनी तेजी से फैलेगी, अधर्म नाश की गति को प्राप्त करेगा - अजीत सिन्हा (राष्ट्रीय संयोजक, सत्य सनातन रक्षा सेना)

     सनातन धर्म अपने आप में पूर्ण और प्राणियों को सद्गति प्रदान करने वाला है और इसकी लौ से पूरी वसुधा प्रकाशमान होती है. इसके धारण करने से जीवन संस्कारवान, अनुशासित और गौरवशाली बनता है इसलिए सबसे पहले सभी सनातनी को अपने धर्म को धारण करने की कला को सीखना चाहिये और इस हेतु उन्हें वेद, पुराण, उपनिषद् और अन्य पौराणिक ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए। उसे अपने जीवन में उतारने हेतु प्रयासरत रहना  चाहिए क्योंकि जब वे स्वयं प्रकाशित होंगे, तभी दूसरों या अन्य धर्म के लोंगो को प्रकाशित कर पाएँगे।

     जीवन के गुढ और मूल रहस्यों को समझाने और समझने के लिए अध्ययन और अनुभव दोनों की आवश्यकता पड़ती है और इसके लिए ज्ञान होना बहुत जरूरी है जो कि अध्ययन और अनुभव दोनों से प्राप्त होता है और इसमें सबसे पौराणिक धर्म "सनातन" का अध्ययन सभी के लिए लाभकारी है।  जिस तरह से बिना पानी के मछली नहीं रह सकती ठीक उसी तरह से जिज्ञासु और ज्ञान पिपाशु व्यक्ति बिना अध्ययन के नही रह सकता। अनुभव भविष्य की पीढ़ी को सही राह दिखाता  है. साथ में इंसान के स्वयं के जीवन को सुचारू रूप से चलाने में मदद करता है.

     सनातन सत्य का आचरण करना तो सिखाता ही है और साथ में असत्य पर विजय प्राप्त करने हेतु बलशाली भी मानसिक और शारीरिक रूप से बनाता है. इसलिए सनातन का धारण मानवीय सभ्यता के लिए श्रेष्यस्कर है और सनातन धर्म में जन्म होना उससे भी श्रेष्ठ।  जीवन की सद्गति और दुर्गति व्यक्ति के आचरण और उनके कर्मों पर ही निर्भर है, इसलिये यह कहना सर्वथा सही है कि जो जैसा कर्म करता है उसे वैसे ही फल की प्राप्ति होती है. यह अपवाद की बातें हैं कि आज के युग में दुष्कर्मी ज्यादा फलते - फूलते हैं बल्कि वे पूर्व जन्मों की कमाई की वजह से ही ऐसे दिखाई देते हैं. इसलिये व्यक्ति को सनातन धारण कर सत्य कर्म करते रहना चाहिए।