आज अजीत सिन्हा ने सनातन धर्म के मंथन की कोशिशों के उपरांत दुनिया में व्याप्त अशांति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि जहां विश्व के सभी देश शांति हेतु हथियारों की अंधी दौड में शामिल हैं और आयुध शक्ति के जखीरा के इस्तेमाल, अन्वेषण, जमाखोरी इत्यादि में हम आगे, हम आगे की दौड़ में शामिल हैं. वहीं अशांति बढ़ती जा रही है और समझ रहे हैं कि इस बूते पूरी पृथ्वी पर राज करेंगे। हथियारों का भय दिखाकर शांति लाएँगे जो कि सर्वथा गलत है जबकि शांति हथियारों की मोहताज नहीं। अपितु शांति लाने हेतु सनातन धर्म ज्ञान की प्रसार और प्रहार से ही आ सकती है.
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(अजीत सिन्हा) |
क्योंकि हथियारों के प्रसार और प्रहार से मानवीय और जीवीय व्यवस्था विलुप्ति की ओर बढ़ रही है और दुनिया में स्थित कई जीव प्रजाति विलुप्त हो चुकी है. कई विलुप्ति की ओर अग्रसर है. इसलिए सनातन धर्म ज्ञान सभी को ग्रहण करना चाहिए जो कि वेद, पुराण, उपनिषद् और अन्य पौराणिक ग्रंथों से ही प्राप्त हो सकता है. आध्यात्मिक चिंतकों, शोधकों के संसर्ग और उनके द्वारा लिखे गये लेखों व किताबों से प्राप्त हो सकती है. मेरा यह मानना है कि ज्यों-ज्यों धर्म ज्ञान का प्रसार होगा, त्यों-त्यों मानव के विचारों का शुद्धिकरण होगा और उनमें मानवीय संवेदनाएं बढ़ेंगी और वे मानव और विश्व की भलाई हेतु हथियारों का परित्याग करेंगे। आपसी प्रेम उत्पन्न होने पर दिलों के बीच की दीवार गिरेगी और प्रेम से ही आतंकवाद जड़ से समाप्त हो सकता है. अति दुष्टों के लिए ही हथियार के प्रयोग उचित होंगे।
बुद्धिजीवियों का कहना है कि जिस प्रकार शरीर और प्राण मिलकर मानव प्राणी बनता है. उसी प्रकार मानवीय आचार - विचार मिलकर सुदृढ़ और सुसंस्कृत समाज बनता है। वैदिक परंपराओं का प्रचलन हो सकता भ्रमित कर दे परंतु बौद्धिकता का आश्रय लेने वाला मानव कभी भी विचलित नहीं हो सकता है। अतः समस्त प्राणियों के प्रति प्रेम और उनकी सेवा ही धर्म का प्राण है। अतः धर्म की पूर्णता जीवन को प्रेममय और सेवामय बनाने से ही हो सकती है l जो व्यक्ति धनी, निर्धन, छोटे - बड़े ऊंच - नीच, का भेदभाव भूलकर प्रत्येक प्राणी को प्रेम की दृष्टि से देखते हैं, उनको ही सच्चा धर्मपरायण कहा जा सकता है. ऐसे ही धर्मपरायण लोगों को वृक्ष - वनस्पति, जीव - जंतु, विभिन्न वर्ण, वर्ग, जाति और लिंग के समुदाय में परमात्मा के दर्शन होते रहते हैं। प्रेम की सीमा असीम एवं अनंत है इसलिए धर्मपरायण मानव प्रत्येक को परमात्मा की पूजा के रूप में प्रेम करता है अर्थात् वही उसकी सेवा और साधना है। इस तरह से उसका अहंकार समाप्त हो जाता है और उसको पूर्णता की अनुभूति होने लगती है।
कहने का तात्पर्य यह है कि प्रेम ही शांति ला सकता है न कि हथियारों की अंधी दौड़। इस बात को पूरे विश्व को समझना होगा लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि हथियारों के दुष्प्रभाव देखने के बाद भी मानव नहीं चेत रहा और अपने मानवीय धर्म को नहीं निभा रहे हैं अर्थात् अपनी बुनियाद को मानव स्वयं कमजोर कर रहा है इसलिए धर्म ज्ञानियों को धर्म ज्ञान का प्रकाश फैलाने हेतु प्रयास करते रहने चाहिए ताकि लोगों को सत्य की राह पर ले जाया जा सके. जय हिंद!
अजीत सिन्हा - (राष्ट्रीय महासचिव (धर्म प्रकोष्ठ), राष्ट्रीय सनातन वाहिनी व राष्ट्रीय संयोजक, सत्य सनातन रक्षा सेना)