From - R.K.Saxena
(26 फ़रवरी 1966/ पुण्य-तिथि)
विनायक दामोदर सावरकर को प्रायः स्वातंत्र्यवीर , वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित किया जाता है. हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा हिन्दुत्व को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय सावरकर को जाता है. वे एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार भी थे. उन्होंने परिवर्तित हिन्दूओं के हिन्दू धर्म को वापस लौटाने हेतु सतत् प्रयास किये एवं इसके लिए आन्दोलन चलाये. 1921 में सावरकर को काला-पानी से रत्नागिरी (महाराष्ट्र) लाकर नज़रबन्द कर दिया गया. जहाँ उन्होंने सामाजिक सुधार के कार्य जारी रखे. सावरकर का दृढ़ विशवास था कि धर्म परिवर्तन का स्पष्ट अर्थ राष्ट्र-निष्ठा में परिवर्तित होता है.
हिन्दू महासभा के अध्यक्ष पद से भाषण देते हुए उन्होंने कहा था - हमारे देश में शिक्षा, औषधि, धन आदि का लालच देकर अब ईसाई मिशनरियों द्वारा मतांतरण का कुचक्र चलाया जा रहा है. किन्तु यह समझ लेना चाहिए कि मत परिवर्तन का अर्थ राष्ट्रीयता का परिवर्तन है. यदि हिन्दू सहिष्णुता तथा उदारवाद में उलझकर इस षड्यंत्र को अनदेखा करते रहे तो हमारी भावी पीढ़ी को उसका भयंकर परिणाम भोगना होगा. फरवरी, 1931 में इनके प्रयासों से बम्बई में पतित पावन मन्दिर की स्थापना हुई, जो सभी हिन्दुओं के लिए समान रूप से खुला था. 25 फ़रवरी 1931 को सावरकर ने बम्बई प्रेसीडेंसी में हुए अस्पृश्यता उन्मूलन सम्मेलन की अध्यक्षता की.
13 दिसम्बर 1937 को नागपुर की एक जन-सभा में उन्होंने अलग पाकिस्तान के लिये चल रहे प्रयासों को असफल करने की प्रेरणा दी थी. 22 जून 1941 को उनकी भेंट नेताजी सुभाष चंद्र बोस से हुई. 9 अक्टूबर 1942 को भारत की स्वतन्त्रता के निवेदन सहित उन्होंने चर्चिल को तार भेज कर सूचित किया. सावरकर जीवन भर अखण्ड भारत के पक्ष में रहे. स्वतन्त्रता प्राप्ति के माध्यमों के बारे में गान्धी और सावरकर का एकदम अलग दृष्टिकोण था. सावरकर भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के केन्द्र लन्दन में उसके विरुद्ध क्रान्तिकारी आन्दोलन सङ्गठित किया.
वे भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सन् 1905 के बंग-भंग के बाद सन् 1906 में स्वदेशी का नारा दिया और विदेशी कपड़ों की होली जलाई. वे भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्हें अपने विचारों के कारण बैरिस्टर की डिग्री खोनी पड़ी. वे पहले भारतीय थे जिन्होंने पूर्ण स्वतन्त्रता की मांग की. वे भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सन् 1857 की लड़ाई को भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम बताते हुए 1907 में लगभग एक हज़ार पृष्ठों का इतिहास लिखा. वे दुनिया के पहले राजनीतिक कैदी थे जिनका मामला हेग के अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय में चला था.
सावरकर को दो-दो आजन्म की सजा दी गई जो विश्व के इतिहास में पहली एवं अनोखी सजा थी. वे पहले भारतीय राजनीतिक कैदी थे जिसने एक अछूत को मन्दिर का पुजारी बनाया था. उन्होने बौद्ध धर्म द्वारा सिखायी गयी अतिरेकी अहिंसा की आलोचना करते हुए केसरी में बौद्धों की अतिरेकी अहिंसा का शिरच्छेद नाम से शृंखलाबद्ध लेख लिखे थे. सावरकर, महात्मा गांधी के कटु आलोचक थे. उन्होने अंग्रेजों द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जर्मनी के विरुद्ध हिंसा को गांधीजी द्वारा समर्थन किए जाने को पाखण्ड करार दिया.
सावरकर ने अपने ग्रन्थ हिन्दुत्व के पृष्ठ 81 पर लिखा है कि – कोई भी व्यक्ति बिना वेद में विश्वास किए भी सच्चा हिन्दू हो सकता है. उनके अनुसार केवल जातीय सम्बन्ध या पहचान हिन्दुत्व को परिभाषित नहीं कर सकता है बल्कि किसी भी राष्ट्र की पहचान के तीन आधार होते हैं – भौगोलिक एकता, जातीय गुण और साझा संस्कृति. सावरकर ने ही वह पहला भारतीय झंडा बनाया था, जिसे जर्मनी में 1907 की अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम कामा ने फहराया था.
वे प्रथम क्रान्तिकारी थे जिन पर स्वतंत्र भारत की सरकार ने झूठा मुकदमा चलाया और बाद में उनके निर्दोष साबित होने पर उनसे माफी मांगी. सावरकर ने भारत की आज की सभी राष्ट्रीय सुरक्षा सम्बन्धी समस्याओं को बहुत पहले ही भाँप लिया था. 1962 में चीन द्वारा भारत पर आक्रमण करने के लगभग दस वर्ष पहले ही कह दिया था कि चीन भारत पर आक्रमण करने वाला है. भारत के स्वतंत्र हो जाने के बाद गोवा की मुक्ति की आवाज सबसे पहले सावरकर ने ही उठायी थी.