कहानी - मजबूर

Story from -  डॉ संजय श्रीवास्तव (तहसील महू, जिला इंदौर)

     जैसे उसने लॉक डाऊन की घोषणा सुनी उसके पैरों के नीचे से जमीन घिसक गई। वह हतप्रभ थी उसकी आँखों के सामने एक एक करके घर के सभी सदस्यों का चेहरा सामने आ रहा था।उसके अलावा उसके घर में उसके माँ बाप और तीन छोटे भाई बहन थे। उसके कंधों पर ही सबके पालन पोषण की जिम्मेदारी थी। जबसे उसके पिताजी जो लकवा मारा तबसे वे अपाहिज़ होकर घर पर ही रहते थे। जिस कंपनी में काम करते थे वहाँ की नौकरी छूट गई।इसलिये रेखा के कंधे पर घर की सारी जिम्मेदारी आ गई। उसकी माँ कोई पढ़ी लिखी नही थी, इसलिये वह कोई नौकरी नही कर सकती थी और दूसरा वह घरेलू महिला रही इसलिए उसके लिए बाहर निकलना बहुत मुश्किल था। इसलिये रेखा जो हाल में ही अपना इंटरमीडिएट पास किया था उसके लिए नौकरी ढूंढना आसान था। उसने उसके पापा के अपाहिज़ हो जाने के बाद अपनी घर की स्थिति को यथावत बनाये रखना चाहती थी। 

     एक तो उसके सारे रिस्तेदार अच्छे खासे पैसे वाले थे इसलिये अपनी दयनीय स्थिति वह किसी से बताना नही चाहती थी। वह चाहती थी कि उसके भाई बहन अच्छे स्कूलों में ही पढ़ें। इसलिए जब घर में पैसे की दिक्कत होने लगी तो वह ख़ुद नौकरी की तलाश में निकल पड़ी। लेकिन आज के दौर में केवल इंटरमीडिएट पास लड़की को नौकरी कौन दे। ये तो अच्छा था कि उसे कम्प्यूटर का ज्ञान था इसलिए बहुत जद्दोजहद के बाद एक होटल में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी मिल गई। लेकिन तनख्वाह सिर्फ़ चार हजार रुपये और एक समय का खाना होटल की तरफ़ से। मरता क्या ना करता उसे वह नौकरी स्वीकार करनी पड़ी। सुबह आठ बजे से रात आठ बजे तक उसे होटल में ड्यूटी देनी पड़ती थी। उसके माँ बाप तो नही चाहते थे कि लड़की होकर वह होटल में काम करे परंतु हालात को देखते हुए उन्हें भी परिस्थितियों से समझौता करना पड़ा। किसी तरह उसकी घर की गाड़ी चल रही थी परंतु इतने कम पैसों से घर का खर्चा और उसके भाई बहनों की पढ़ाई होना संभव नही हो पा रहा था। 

     उसने अपने भाई बहनों का नाम प्राइवेट स्कूलों से कटवा कर सरकारी स्कूलों में लिखा दिया। फ़िर भी घर की स्तिथि में कोई ख़ास सुधार नही हो रहा था। आये दिन कुछ ना कुछ नए खर्चे निकल ही आते थे। समय तेज रफ्तार से बीतता जा रहा था. देखते देखते रेखा को उस होटल में काम करते छह महीने बीत गए। तभी एक दिन रात के शिफ्ट में काम करने वाले रिसेप्शनिस्ट के पिताजी का देहांत हो गया इसलिए उसे छुट्टी लेकर जाना पड़ा।होटल के मालिक ने रेखा को बुलाकर उसे रात के शिफ़्ट के लिए काम करने को कहा। चूँकि चंद दिनों की बात थी इसलिए उसनें हामी भर दी। रात के शिफ़्ट के लिए उसके घरवाले राजी नही थे लेकिन रेखा उन्हें मनाने में सफ़ल रही। 

     उस रोज़ जब वह रात के शिफ़्ट के लिए होटल पहुँची तो उसके मैनेजर ने उसे अपने केबिन में बुलाया और बोला - रेखा देखो, आज तुम्हारा नाईट शिफ्ट का पहला दिन है इसलिए तुमको कुछ बातें समझा देता हूँ। रात में होटल में कई तरह के लोग आते हैं जिनमें ज्यादातर बढ़े घराने के लोग रहते हैं। वे क्या करते हैं और किसके साथ आते हैं इसपर तुम्हें ज्यादा ध्यान देने की जरूरत नही है। जैसा मुर्गा देखो उसी हिसाब से रूम का किराया बता देना। रात में दो रजिस्टर रहेगा। एक में तो वही किराया लिखना जो होटल के टैरिफ में है और दूसरे रजिस्टर में वह किराया लिखना जो तुम उनसे चार्ज करोगी। दूसरा रजिस्टर केवल मुझे देना। तुमको भी कुछ कमीशन मिल जाएगा।जितना अधिक किराया वसूलोगी उतना ही ज्यादा तुम्हारा कमीशन होगा और ये बातें हमारे और तुम्हारे बीच ही रहनी चाहिए। रेखा मंत्रमुग्ध मैनेजर की बातें सुनती रही। उसके पास मैनेजर के बात मानने के अलावा कोई रास्ता भी नहीं था क्योंकि मैनेजर के एक इशारे पर उसकी नौकरी जा सकती थी। 

      पर उसे आश्चर्य इस बात का था कि रात में लोग मनमानी किराया क्यूँ दे देंगे? आने वाले समय में उसे इस बात का उत्तर मिलने वाला था। वह मैनेजर के केबिन से निकलकर अपने काउंटर पर आ गई। आठ बजे से रात ग्यारह बजे तक तो सब नॉर्मल ही चल रहा था। अचानक उसे सामने से एक अधेड़ उम्र का आदमी एक खूबसूरत जवान लड़की के साथ आता दिखाई दिया। पहले तो वह समझी कि वह लड़की उस अधेड़ उम्र के आदमी की बेटी है परंतु जिस तरह वह आदमी उस लड़की के कमर में हाथ डाले चला आ रहा था, उससे उसका वह भ्रम दूर हो गया कि वह उसकी लड़की है। पत्नी तो हो नही सकती थी, तो वह कौन थी? उसके मन में यह सवाल कौंधा। उसके काउन्टर पर आते ही वह आदमी ने पूछा मैडम कोई डबल बेडरूम खाली है क्या। जी सर खाली है, वह बोली। क्या रेंट है वह आदमी पूछा। तभी उसे मैनेजर की बात याद आई उसने झट से रूम का किराया दुगना बता दिया। ऐसा बोलते वक़्त वह झिझक रही थी कि कहीं वह वहाँ से चला नही जाए, पर उस आदमी ने पर्स से पूरे रुपये निकालकर दिए और रूम की चाबी मांगी। 

     उसने रुपये लेकर उस आदमी से रजिस्टर में एंट्री करवाकर उसे रूम बॉय के साथ भेज दिया। अब रेखा के मन में सैकड़ों सवाल खड़े हो रहे थे? कुछ सवालों का जबाब उसे मन ही मन में मिल भी रहा था पर उन जबाबों को स्वीकार करने का उसका मन नही हो रहा था। तभी उसे एक और जोड़ी आता दिखाई दिया परंतु अब स्थिति ठीक पहले वाले की विपरीत थी। अब लड़का नौजवान था पर साथ में उसके उससे ज़्यादा उम्र की औरत थी। उन्होंने भी मनमानी किराया दे दिया। उसके बाद दो और जोड़ी आये। सुबह पौ फटते ही वे लोग होटल छोड़ कर चले गए। सुबह घर आने के पहले वह दूसरा रजिस्टर और पैसा मैनेजर को दे आई। मैनेजर ने उसे बतौर कमीशन एक हजार दिया। इतना पैसा पाकर वह बहुत खुश हुई। पहले तो उसने सोचा घर में माँ को बता दे पर किसी वजह से चुप रहना ही उचित समझा। क्योंकि अगर इतने पैसे एक साथ मिलने की बात करती तो घर वाले सौ सवाल करते और सबको सच्चाई बताना सम्भव नही था क्योंकि सच जानने के बाद कोई उसे काम पर आने नहीं देता और रेखा यह भी जानती थी कि अगर पुराना वाला रिसेप्शनिस्ट लौट कर आएगा तो उसे पुनः अपने पुराने काम पर ही लौटना पड़ेगा। लेकिन बग़ैर किसी मेहनत के अगर इतनी कमाई होती है तो यह रात वाली शिफ़्ट ही अच्छी है परंतु उसे इस शिफ़्ट में काम करने को मिलेगा कैसे? 

     वह मन ही मन में दुआ करने लगी कि पुराना वाला रिसेप्शनिस्ट आये ही नहीं पर यह सम्भव नही था। इसी तरह दस रोज़ निकल गए। हमेशा उसे एक हजार से ज़्यादा ही कमीशन मिले। घर में उसने बताया कि रात के शिफ़्ट के लिए उसे दुगनी तन्खाह मिलेगी। घरवाले भी खुश थे। उस रोज़ उसके काउन्टर पर एक हैंडसम व्यक्ति आया और एक रूम बुक करवाया जो किसी और के लिए था जो थोड़ी देर में आने वाले थे।अचानक उस व्यक्ति ने बातों का सिलसिला शुरू करते हुए रेखा से पूछ बैठा मैडम ये होटल वाले आपको क्या सैलरी देते हैं? इस सवाल से वह थोड़ी असहज महसूस की पर उसने बताया कि उसे चार हजार मिलती है. यह सुनते ही वह तपाक से बोल पड़ा क्या मैडम आप इतनी खूबसूरत और स्मार्ट हैं आपको तो बहुत अधिक सैलरी मिल सकती है। इसपर रेखा बोली बहुत जगह कोशिश करने के बाद यह नौकरी मिली है। इसपर वह व्यक्ति बोला अगर आप चाहें तो मैं अच्छा काम दिला सकता हूँ। यह कहकर उसने अपने पॉकेट से अपना एक विजिटिंग कार्ड निकालकर रेखा को दिया और बोला अगर आपको कभी नौकरी की जरूरत पड़े तो मुझे फ़ोन कर लेना। 

     रेखा ने उसका विजिटिंग कार्ड लेकर अपने पर्स में रख लिया। कुछ रोज़ बाद पुराना रिसेप्शनिस्ट लौट आया और रेखा को अपने पुराने रूटीन में काम करना पड़ा। लेकिन वह रोज़ होने वाली कमाई से वंचित रह गई थी। पैसे की लत सबसे खराब लत होती है अगर किसी को लग गई तो वह उसे कतई नहीं छोड़ना चाहता है। अचानक पैसे आने लगे तो रेखा कई सपने सजाने लगी। वह चाहती थी कि उसके भाई बहन फिर से अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में पढ़े। घर की आर्थिक स्थिति सुधर जाए। पर यह इस छोटे से तनख्वाह में संभव नही था। रेखा इसी उधेड़बुन में पड़ी रहती। अचानक उसे एक दिन उस व्यक्ति का ख़्याल आया जो उसे अपना विजिटिंग कार्ड दे गया था। उसने सोचा क्यूँ ना एक बार उस व्यक्ति से बात करके देखे कहीं वास्तव में कहीं वह अच्छी नौकरी दिलवा दे। उसने विजिटिंग कार्ड से उस आदमी का नंबर मिलाया जिसका नाम विजिटिंग कार्ड पर विशाल भारद्वाज लिखा था। उसने नंबर मिलाया तो उधर से उसने इसके बारे में पूछा तो इसने बताया कि वह इसे अपना कार्ड दिया था और एक अच्छी नौकरी दिलवाने के वादा किया था। इसपर उसने रेखा को एक रेस्टोरेंट में मिलने को बुलाया। दूसरे रोज़ तय समय पर रेखा उस रेस्टोरेंट में विशाल से मिलने पहुँची। 

     उस व्यक्ति ने कुछ स्नैक्स का ऑडर दिया और रेखा से पूछा कि वह किस तरह का जॉब करना चाहती है? रेखा ने जब बताया कि वह अच्छी सैलरी वाली जॉब चाहती है तो उस शख्स ने उससे कहा कि देखो जो तुम्हारा क्वालिफिकेसन है उसमें अधिक सैलरी वाली जॉब मिलना मुश्किल है लेकिन अगर तुम चाहो तो किसी और जरिये से ढेर सारा पैसा कमा सकती हो. और जरिये से का आपका क्या मतलब है रेखा पूछी। इस पर उसने कहा कि तुम तो होटल में बतौर रिसेप्शनिस्ट काम करती हो और तुमने देखा है कि रात में कितनी लड़कियाँ मर्दों के साथ होटल में आती हैं। वे सारी लड़कियाँ कॉलगर्ल हैं. जो सिर्फ़ चंद घंटे के लिए हजारों रुपये ग्राहकों से वसूलती हैं. यह सुनते ही रेखा भड़क उठी। क्या आप मुझे ऐसी वैसी लडक़ी समझते हैं. आपने मेरे बारे में ऐसा सोच भी कैसे लिया? वह आदमी रेखा की बातों को सुनकर बोला। देखिए मैडम मैंने सिर्फ़ आपको एक रास्ता बताया, चलना या ना चलना आपकी मर्जी। मेरी बात अगर आपको बुरी लगी हो तो मैं माफी मांगता हूँ। परंतु आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि इस धंधे में सभ्रांत परिवार की ढेर सारी महिलाएं और लड़कियां शामिल हैं अगर आप चाहें तो मैं सबके नाम पता दे देता हूँ. आप ख़ुद तहकीकात कर लीजिए। इस हमाम में सब नंगे हैं। 

     तभी वेटर उनके ऑडर का सामान ले आया। रेखा अनमने ढंग से कुछ खाई। टेबल पर एक खामोशी व्याप्त थी।रेखा के मन में अजीब सी कश्मकश चल रही थी. उसे समझ में नही आ रहा था कि वह आने वाले परिस्थितियों का कैसे सामना करे? गरीबी से जूझते परिवार को दलदल से निकालने के लिए वह ख़ुद किसी दलदल में तो नही फसने जा रही थी। वह विशाल से सोचकर बताने को कहकर उस रेस्टोरेंट से बाहर आई। उस रात, वह रात भर बिस्तर पर करवट बदलती रही। परिवार के लिए उसे ख़ुद को नर्क की आग में झोंकना होगा। वह फैसला कर चुकी थी। सुबह उसने विशाल को अपनी सहमति दे दी। 

     उस रोज़ से उसकी जिंदगी बदल चुकी थी। घर से वह होटल में नाईट शिफ़्ट काम का बहाना करके निकलती और विशाल के भेजे हुए ग्राहकों के साथ रात गुजारती। उसे रोज़ अच्छी कमाई होने लगी थी। उसने अपने भाई बहनों का अच्छे स्कूल में दाखिला करवा दिया। घर की स्थिति भी सुधर गई लेकिन सबसे बुरी बात थी कि वह जो भी कमाती सब घर वालों पर खर्च कर देती। वह एक पैसा भी नहीं बचाती। उसे लगता कि रोज रात में कुछ ना कुछ तो मिल ही जायेगा। आज जब लॉक डाऊन की घोषणा हुई तो उसका घबराना स्वाभाविक था। उसके पर्स में पिछले रात का मिला हुआ सिर्फ़ हजार रुपया ही था। अब उन पैसों से वह इकीस दिन कैसे निकालेगी?