निजी स्कूलों की फीस का मामला : .. सुप्रीम कोर्ट के आदेश और फीस एक्ट 2016 की पालना सुनिश्चित नही होने पर अभिभावकों में आक्रोश

News from - अभिषेक जैन बिट्टू

संयुक्त अभिभावक संघ ने जयपुर में बाल आयोग सदस्य से की मुलाकात, अजमेर में जिला कलेक्टर और शिक्षा अधिकारी को दिया ज्ञापन

     जयपुर। प्रदेश में एक बार फिर निजी स्कूलों की फीस का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. अभिभावकों का आरोप है कि प्रदेश के 90 % से अधिक निजी स्कूल ना सुप्रीम कोर्ट के आदेश की पालना कर रहे है और ना ही फीस एक्ट 2016 की पालना सुनिश्चित कर रहे है। इसके उल्ट निजी स्कूल तानाशाही रवैया अपना कर फीस वसूली के लिए अभिभावकों और छात्र-छात्राओं को प्रताड़ित व अपमानित कर ना केवल ऑनलाइन क्लास रोक रहे है बल्कि फीस के चलते बच्चों के नाम काटने तक कि धमकियां दे रहे है। गुरुवार को संयुक्त अभिभावक संघ के पदाधिकारियों ने प्रदेश अध्यक्ष अरविंद अग्रवाल के नेतृत्व में राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग सदस्य डॉ वीरेंद्र सिंह से मुलाकात की और अजमेर के पदाधिकारियों ने अजमेर जिलाधीश एवं जिला शिक्षा अधिकारी को ज्ञापन भेंट कर "सुप्रीम कोर्ट के आदेश और फीस एक्ट 2016" की पालना सुनिश्चित करने सहित चेतावनी के साथ आठ सूत्रीय मांग पत्र दिया। 


     प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने कहा कि जबसे देश मे स्कूलो का निजीकरण किया गया है तब से लेकर आज दिनांक तक शिक्षा के नाम पर अभिभावकों का शोषण किया गया. साथ ही उनको उनके अधिकारों की जानकारी से वंचित रखा गया। किन्तु अब अभिभावक जागरूक हो चुका है और अपने अधिकारों के संरक्षण को लेकर संघर्षरत है। जितना अभिभावकों राज्य सरकार और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के लिए बाध्य है उतना ही बाध्य राज्य सरकार और निजी स्कूलों को भी होना होगा तभी शिक्षा में सुधार सम्पन्न होगा। इतने वर्षों में शिक्षा को लेकर जो भी कानून बनाये गए उन सभी कानूनों में कभी भी अभिभावकों की राय नही ली गई उसके बावजूद अभिभावक इन कानूनों को सहर्ष स्वीकार कर रहे है किंतु निजी स्कूल चंदे और फंड की ताकत पर अपनी हठधर्मिता दिखाते हुए कानूनों को ठेंगा दिखाते हुए अपने बनाये कानूनों को थोप रहे है। जिसे कोई भी जागरूक अभिभावक कभी भी स्वीकार नही करेंगे। 

     जयपुर जिला अध्यक्ष युवराज हसीजा ने कहा कि कानून को लेकर एक समानता होनी चाहिए, जो कानून अभिभावकों को बाध्य करता है उस कानून के प्रति स्कूल, प्रशासन और सरकार को भी बाध्य होना पड़ेगा तभी तर्कसंगत न्याय में एक समानता आएगी। पिछले डेढ़ वर्षो में देखा गया है कि प्रदेश में कानून केवल अभिभावकों पर थोपने के लिए अभिभावकों की शिकायतों पर कार्यवाही करने के लिए बनाए गए। सरकार और प्रशासन के दोगले रवैये के चलते निजी स्कूल ना केवल अभिभावकों को ठेंगा दिखा रहे है बल्कि वह शिक्षक, सरकार और सुप्रीम कोर्ट तक को ठेंगा दिखाकर जनमानस का अपमान कर रहे है। अगले कुछ दिनों में अगर अभिभावकों को न्याय नही मिलता है तो इसका आक्रोश राज्य सरकार को जल्द सड़को पर देखने को मिलेगा।