संतान को दोष न दें

 Article from - LAL SINGH (Mumbai)

संतान को दोष न दें.

     बालक को *'इंग्लिश मीडियम' में पढ़ाया...  'अंग्रेजी' बोलना सिखाया...'बर्थ डे' और 'मैरिज एनिवर्सरी' जैसे जीवन के 'शुभ प्रसंगों' को 'अंग्रेजी कल्चर' के अनुसार जीने को ही 'श्रेष्ठ' मानकर...माता-पिता को 'मम्मा' और 'डैड' कहना सिखाया... जब 'अंग्रेजी कल्चर' से परिपूर्ण बालक बड़ा होकर, आपको 'समय' नहीं देता, आपकी 'भावनाओं' को नहीं समझता, आप को 'तुच्छ' मानकर 'जुबान लड़ाता' है और आप को बच्चों में कोई 'संस्कार' नजर नहीं आता है, तब घर के वातावरण को 'गमगीन किए बिना'... या... 'संतान को दोष दिए बिना'... कहीं 'एकान्त' में जाकर 'रो लें'...

क्योंकि...

     पुत्र की पहली वर्षगांठ से ही, 'भारतीय संस्कारों' के बजाय 'केक' कैसे काटा जाता है ? सिखाने वाले आप ही हैं... 'मंदिर, मंत्र, पूजा-पाठ, आदर-सत्कार के संस्कार देने के बदले,'...केवल 'फर्राटेदार अंग्रेजी' बोलने को ही, अपनी 'शान' समझने वाले आप...बच्चा जब पहली बार घर से बाहर निकला तो उसे 'प्रणाम-आशीर्वाद' के बदले 'बाय-बाय' कहना सिखाने वाले आप...परीक्षा देने जाते समय 'इष्टदेव/बड़ों के पैर छूने' के बदले 'Best of Luck' कह कर परीक्षा भवन तक छोड़ने वाले आप...

     बालक के 'सफल' होने पर, घर में परिवार के साथ बैठ कर 'खुशियाँ' मनाने के बदले...'होटल में पार्टी मनाने' की 'प्रथा' को बढ़ावा देने वाले आप...बालक के विवाह के पश्चात्...'कुल देवता / देव दर्शन' को भेजने से पहले...'हनीमून' के लिए 'फाॅरेन/टूरिस्ट स्पॉट' भेजने की तैयारी करने वाले आप...

     ऐसी ही ढेर सारी 'अंग्रेजी कल्चर्स' को हमने जाने-अनजाने 'स्वीकार' कर लिया है...अब तो बड़े-बुजुर्गों और श्रेष्ठों के 'पैर छूने' में भी 'शर्म' आती है...

गलती किसकी...?? 

मात्र आपकी '(माँ-बाप की)'...अंग्रेजी International 'भाषा' है... इसे 'सीखना' है...इसकी 'संस्कृति' को, 'जीवन में उतारना' नहीं है...मानो तो ठीक...नहीं तो भगवान ने जिंदगी दी है......चल रही है, चलती रहेगी। सोच कर अपने और अपने परिवार, समाज, संस्कृति और देश को बचाने का प्रयास करें।