{कविता}
लेखक:- नरेन्द्र सिंह बबल
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हाल क्या हैं आपके ?
रोज पूछना भूल जाता हूँ !
दुनिया की आपाधापी में
औपचारिकता भी भूल जाता हूँ |
कश-म-कश यह नहीं
कि बूढ़ा हो चला,
मैं तो शुरू से ही
रोज़
जीना भूल जाता हूँ |
हथेलियों को रोज़ देखकर
यह इरादा करता हूँ
कि तुम मिलोगे
तो
भर लूँगा अपनी बाँहों में,
नहीं छोड़ूंगा यह रिश्ता दिलों का
पर ना जाने क्यों ?
इस रिश्ते से
हर बार की तरह
और टूट जाता हूँ |
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