★हर बार★

   {कविता}

लेखक:- नरेन्द्र सिंह बबल

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हाल क्या हैं आपके ?

रोज पूछना भूल जाता हूँ  !

दुनिया की आपाधापी में 

औपचारिकता भी भूल जाता हूँ |

कश-म-कश यह नहीं 

कि बूढ़ा हो चला,

मैं तो शुरू से ही 

रोज़

जीना भूल जाता हूँ |

   हथेलियों को रोज़ देखकर 

    यह इरादा करता हूँ 

     कि तुम मिलोगे 

      तो

       भर लूँगा अपनी बाँहों में,

        नहीं छोड़ूंगा यह रिश्ता दिलों का 

         पर ना जाने क्यों ?

         इस रिश्ते से

         हर बार की तरह

         और टूट जाता हूँ |

 ●✍️●