"अभिभावकों की मांगों को दरकिनार करने का परिणाम भुगतेंगे स्कूल और सरकार" - संयुक्त अभिभावक संघ

News from - अभिषेक जैन बिट्टू

     स्कूल और सरकार को चेताया था अभी स्कूल ना खोले, जबर्दस्ती स्कूल खोलने के आदेश अभिभावकों और छात्रों पर थोपे गए, अब 10 फीसदी बच्चे भी नही पहुंच रहे स्कूल - संयुक्त अभिभावक संघ

     जयपुर। प्रदेश में 1 सितम्बर से कक्षा 9 से 12 वीं तक के स्कूल खुल चुके है उसके बावजूद 10 फीसदी भी बच्चे स्कूलों में नही पहुंच रहे है। स्कूल खोलने के निर्णय पर संयुक्त अभिभावक संघ लगातार सवाल खड़े कर रहा है संघ ने कहा " राज्य सरकार ने जब स्कूल खोलने का निर्णय लिया था, उसी दौरान राज्य सरकार को चेता दिया था कि अभी स्कूल खोलने के आदेश ना देंवे, 75 फीसदी से अधिक अभिभावक कोरोना की तीसरी लहर से डरे हुए है और बच्चों की जिंदगी से बिल्कुल भी समझौता नही कर सकते है। " संयुक्त अभिभावक संघ के दावे को दरकिनार कर चंद निजी स्कूल संचालकों के दबाव में आकर जबर्दस्ती स्कूल खोलने का निर्णय अभिभावकों पर थोपा गया। 


     संघ प्रदेश कोषाध्यक्ष सर्वेश मिश्रा ने कहा कि स्कूल खुलने के बावजूद बच्चों के स्कूल में ना पहुंचने का सबसे बड़ा कारण स्कूल संचालकों का व्यवहार है। जिन निजी स्कूल संचालकों ने बच्चों और पढ़ाई की दुहाई देकर स्कूल खुलवाए, अब वह अभिभावक संगठनों पर अभिभावकों को गुमराह करने का आरोप लगा रहे है जबकि सबसे पहले उन्हें अपनी गिरेबान में झांक लेना चाहिए था, क्योकि स्कूल खोलने को लेकर शिक्षा विभाग ने एसओपी जारी की थी, जिसमे स्पष्ट लिखा था कि माता-पिता की सहमति के बाद ही बच्चे स्कूल आ सकेंगे। किन्तु शिक्षा विभाग से जारी एसओपी की धज्जियां उड़ाते हुए निजी स्कूलों ने अपने स्तर पर स्वीकृति पत्र तैयार कर अभिभावकों के पास भेजे जिसे देखकर अभिभावकों ने अपने बच्चों को स्कूल नही भेजा।

     प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य चंद्रमोहन गुप्ता ने कहा कि इस कोरोना काल मे यह तो साबित हो गया है कि राज्य सरकार निजी स्कूलों के दबाव में आकर कार्य कर रही है इसके चलते अभिभावकों को विपरीत परिणाम देखने को मिल रहे है। इन्ही निजी स्कूलों के दबाव के चलते राज्य सरकार अभिभावकों की शिकायतों और मांगों को दरकिनार कर रहे है। अभी प्रदेश में 7 हजार से अधिक निजी स्कूल बंद हुए है जिससे प्रमाणित होता है कि प्रदेश का अभिभावक एकजुट है और वही राज्य सरकार के आदेश पर 1 सितम्बर से खुले स्कूलो में 10 फीसदी बच्चे भी शामिल नही हो पा रहे है यह अभिभावकों की दूसरी एकजुटता का प्रमाण है। अब भी अगर राज्य सरकार और स्कूल संचालकों ने अभिभावकों और उनकी मांगों को गंभीरता से नही लिया तो इसके विपरीत परिणाम स्कूल और राज्य सरकार को भुगतने होंगे।

निजी से सरकारी स्कूलों में दाखिल ले रहे बच्चे सरकार की उपलब्धता नही, अभिभावकों की मजबूरी

     प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने कहा कि पिछले दो वर्षों में प्रदेश की निजी शिक्षा प्रणाली पर लगातार सवाल खड़े हो रहे है और सरकारी शिक्षा व्यवस्था पहले ही कठघरे में खड़ी है उसके बावजूद इस कोरोना काल मे लाखों अभिभावकों ने अपने बच्चों को निजी स्कूलों से निकालकर सरकारी स्कूलों में दाखिला करवाया है, यह राज्य सरकार और शिक्षा विभाग की उपलब्धता नही बल्कि अभिभावकों की मजबूरी है। दो वर्षों से प्रदेश में शिक्षा का भट्टा बैठा हुआ है उसके बावजूद निजी स्कूल संचालकों ने पढ़ाई के नाम पर मनमर्जी करते हुए मनमाने तरीके से फीस वसूली जबकि इस कोरोना काल मे 70 फीसदी से अधिक अभिभावक अपने काम/धंधे और रोजगार को लेकर प्रताड़ित हुए जिसमे से आज भी 50 फीसदी से अधिक अभिभावकों के परिवार प्रभावित है। कोरोना काल मे जहां देश और प्रदेश की जनता ने एक-दूसरे का साथ दिया तो निजी स्कूलों ने अभिभावकों पर पूरी फीस वसलूने के षड्यंत्र रचे। जिसके चलते अभिभावकों का निजी स्कूलों से मन उठ गया और सरकारी स्कूलों की ओर चल दिये। अब भी अगर निजी स्कूल संचालक अभिभावकों को गंभीरता से नही लेंगे तो वह दिन दूर नही जब निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या समाप्त हो जाएगी।