DAP - मांग की तुलना में आपूर्ति कम होना ही कालाबाजारी का मुख्य कारण है

News from - Kisan Mahapanchayat

     Jaipur. अभी पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित राजस्थान के किसानों के लिए डी ए पी खाद संकट का कारण बना हुआ है I  सरसों, चना, जौ, गेहूं की बुवाई के लिए डी ए पी की आवश्यकता रहती है I जिसमें प्रति हेक्टेयर सामान्तय: सरसों के लिए 75, चना के लिए 78,  जो एवं गेहू के लिए 100-100 किग्रा की आवश्यकता रहती है  1 अप्रैल से 31 अक्टूबर तक अकेले राजस्थान की मांग की 8 लाख मेट्रिक टन डी ए पी की है जबकि आपूर्ति मात्र 3.83 लाख मेट्रिक टन की हुई है I यानि अभी तक डी ए पी की उपलब्धता उसकी मांग की तुलना में आधी भी नहीं हुई है I फिर ‘कोढ़ में खाज’ का काम जनता द्वारा चुने हुए जनप्रतिनिधि कर रहे है I 

     वे इस संकट के समय सामान्य किसानों को के साथ खड़ा होने के स्थान पर परिवार तथा अपने खासमखास के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं I वे अपनी आवश्यकता का डी ए पी माँगा कर स्वयं को “पहुंच-वाला” सिद्ध कर गौरव का अनुभव कर रहे हैं I वही प्राइवेट डीलरों को भी पैसा कमाने का अवसर दे रहे हैं I इससे डी ए पी की कालाबाजारी जोरों पर है I जिस किसान की अपने सांसद, विधायक, जिला प्रमुख, प्रधान तक पहुंच नहीं है वह सर्वाधिक पीड़ित है I अपनी खेती बचाने के लिए वह डीएपी को दोगुनी रकम तक चुका कर प्राप्त करने की जुगाड़ में लगा हुआ है I

     राजनीतिक दल और उसके छुट भैया नेता इस अवसर को भी उन सरकारों को बदनाम करने के लिए उपयोग में ला रहे हैं जो उसके दल की नहीं है I यथा - राजस्थान में डी ए पी की कमी के लिए भाजपा तथा उससे संबंधित किसान संगठन डी ए पी की कालाबाजारी को धार दे रहे हैं I कालाबाजारी रुके तथा वे स्वयं उसे बढ़ाने में कारक नहीं बने इसे वे अनदेखा कर रहे हैं Iरोचक तथ्य यह भी है कि डी ए पी की कुल मांग की आपूर्ति में लगभग 80% योगदान आयात का है I अभी यह कार्य केंद्र सरकार के जिम्मे है, वहां भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है I जिसमें लोकसभा सदस्य डी ए पी का वहां से लोकसभा सदस्य उसी दल के हैं जिसमे डी ए पी से संकटग्रस्त 6 राज्यों में 182 लोकसभा सदस्यों में 151 सदस्य सत्तारुड भाजपा के है I

     बजटीय प्रावधान द्वारा केन्द्र के वर्चस्व को कम करते हुए करके कोई भी राज्य डी ए पी खाद का आयात कर सकता है I इस प्रकार के संकट से निपटने के लिये पूर्व में राजस्थान राज्य ने 2 लाख मेट्रिक टन डी ए पी का आयात कर क्रय विक्रय सहकारी समितियों के माध्यम से किसानो को उपलब्ध कराया था, जिसका उल्लेख वर्ष 2008-09 के बजट में है I दलीय भावना से ऊपर उठकर आरोप प्रत्यारोप छोड़कर केंद्र और राज्य सरकारे मिलकर प्रयास करे तो भी इस प्रकार के संकटों से बचने का मार्ग सुलभ हो सकता है I वेसे भी कृषि उपजो का उत्पादन किसानो के साथ ही देशहित से जुड़ा हुआ विषय है I ऐसे विषयों के लिये तथाकथित राजनीति करने को किसी भी दृष्टि से उचित नही ठहराया जा सकता I काश ! देश के राजनेतिक दल इसे समझते’ हुए अपने अपने राजनैतिक कार्यकर्ताओ को उचित दिशा दे तो देश के लिये हितकारी रहेगा I