लेखिका-वन्दना
इस देश की धरती अमर रहे,
अमर रहे हम सबका हिन्दुस्तान।
यहीं कृष्ण ने क्रीड़ा की है,
यहीं पले हैं श्री राम।
(कवयित्री, लेखिका-वन्दना) |
यहाँ की मिट्टी में सुगंध इत्र सी,
यहाँ की मिट्टी में हरियाली।
धन्य धरा यह भारत की,
अग्निहोत्री धरती समिधा वाली।
अमर रहे हम सबका हिन्दुस्तान।
यहाँ पे रितुऐं चार शोभा है न्यारी न्यारी
यहाँ पे भँवरे मडराते और महकती है फुलवारी
चार अनूठे धर्म यहीं पर,
और धूल की सुगंध भी केसर वाली।
हवाऐं भी तो चार बहें,
और फल-फूल मिलेंगे क्यारी -क्यारी।
इस देश की नदियाँ अमर रहें,
अमर रहे हम सबका हिन्दुस्तान।
यहीं मिलेंगे भगत सिंह जैसे जवान
यही नेहरू, गाँधी जैसे बुजुर्ग।
यहीं मिलेगी सीता, अनुसुईया जैसी सती
और यहीं मिलेगे लक्ष्मीबाई के दुर्ग।
यहीं मिलेगी बच्चे-बच्चे में ज्वाला,
और मिलेंगे मुट्ठी में तूफ़ान।
यहाँ कलम में आग मिलेगी,
और मिलेगे शीतलता के उफान।
प्राणों से प्यारा तिरंगा अमर रहे,
अमर रहे हम सबका हिन्दुस्तान।