अर्थशास्त्र के प्रोफेसर से महान संगीतकार के रूप में चित्रगुप्त

Article from - Arvind Chitransh 

चित्रगुप्त की पुण्य तिथि पर विशेष 

टूटी हुई चप्पल पहन कर रिकॉर्डिंग की 

      फ़िल्मी दुनिया में एक नहीं ऐसे कई लोग हैं जिनका सफर शुरू कहीं से हुआ था और पहुँच गए चकाचौंध भरी दुनिया में. लिखवा दिया अपना नाम सुहरे अक्षरों में, जो दुनिया के लिए एक मिसाल बन गया. आज हम बात कर  रहे हैं ऐसी ही एक कामयाब फ़िल्मी हस्ती की जिनके संगीत बद्ध गीत हम आज भी गुनगुनाते हैं. उनके गाने ज़माने गुजर जाने के बाद भी जवां हैं. जी हाँ उनका नाम हे चित्रगुप्त.  

     संगीतकारों के दुनिया में अमर हो चुके बिहार के गोपालगंज जिले के एक छोटे से गांव संवरेजी में जन्मे चित्रगुप्त श्रीवास्तव पटना के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर थे. इन्होंने जर्नलिज्म में भी MA  की डिग्री ली थी. दो-दो डिग्रियों के साथ प्रोफेसरी करते हुए चित्रगुप्त ने पंडित शिवप्रसाद त्रिपाठी से संगीत की दीक्षा ली थी और भातखंडे संगीत विद्यालय, लखनऊ से नोट्स लेकर रियाज़ भी किया करते थे. फिल्म संगीतकार चित्रगुप्त श्रीवास्तव का 14 जनवरी 1991 को निधन हो गया. 

     जिन्हें संगीतकार चित्रगुप्त नाम से प्रसिद्धी 1950 और 1960 के दशक की हिंदी फिल्मों के लिए महान संगीतकार के रूप में जाना जाता है. उनके पुत्र आनंद श्रीवास्तव व मिलिंद श्रीवास्तव की आनंद-मिलिंद के रूप में मशहूर संगीतकार की जोड़ी रही है.


     चित्रगुप्त ने अपने चालीस साल के फ़िल्मी कैरियर में करीब डेढ़ सौ फ़िल्मों में संगीत दिया। जिनमें प्रमुख फिल्में हैं – भाभी, बरखा, चांद मेरे आजा, जबक, पतंग, मैं चुप रहूंगी, ऊंचे लोग, ओपेरा हाउस, गंगा की लहरें, आकाशदीप, पूजा के फूल, औलाद, एक राज, मैं चुप रहूंगी, अफ़साना, मां, बिरादरी, ओपेरा हाउस, नया रास्ता, शादी, परदेशी, वासना, बारात, मेरा कसूर क्या है, किस्मत, हम मतवाले नौज़वां, नाचे नागिन बाजे बीन और काली टोपी लाल रूमाल। इसके अलावा बहुत सारे अमर गीतों में प्रमुख रूप से-  दगाबाज़ हो बांके पिया (लता-उषा, फ़िल्म-बर्मा रोड), एक बात है कहने की आँखों से कहने दो (लता-रफ़ी,फ़िल्म-सैमसन), आ जा रे मेरे प्यार के राही (लता-महेंद्र, फ़िल्म-ऊँचे लोग), दिल का दिया जला के गया (लता, फ़िल्म- आकाशदीप) जैसे गीत हैं। 

     जब 1962 में पहली भोजपुरी फिल्म ‘गंगा मईया तोहे पियरी चढ़बो’ बनी तो उसका संगीत निर्देशन भोजपुरिया चित्रगुप्त को ही सौंपा गया. इस फिल्म के गीतों ने इतिहास बनाया तो उन्होंने लागी नहीं छूटे राम, गंगा किनारे मोरा गांव, बलम परदेसिया और भैया दूज जैसी कुछ और भोजपुरी फिल्मों में भी बेहतरीन संगीत दिया।  1963 के फरवरी माह में देश के पहले राष्ट्रपति बाबू राजेंद्र प्रसाद की प्रेरणा से भोजपुरी की पहली फ़िल्म ‘गंगा मईया तोहे पियरी चढईबो’ के अमर संगीतकार चित्रगुप्त, भोजपुरी के संगीत दुनिया के भीष्म पितामह माने जाने लगे. सुनिये एक मजेदार किस्सा चित्रगुप्त जी का अरविन्द चित्रांश की ज़ुबानी ---

     एक बार की बात है कि संगीतकार चित्रगुप्त एक दिन लंगड़ा के चल रहे थे, लता जी ने उनसे पूछा, क्या उनके पैर में दिक्कत है? तो उन्होंने कहा - मैं टूटी हुई चप्पल पहनकर आया हूं. इस पर लता जी बोलीं, चलिए आपके लिए नई चप्पल ले आते हैं. चित्रगुप्त झेंपते हुए बोले, ये चप्पल मेरे लिए शुभ है. जिस दिन इसे पहनकर आते हैं, रिकार्डिंग अच्छी होती है. लता जी जोर से हंसने लगीं, उन्होंने कहा, चित्रगुप्त जी को अपनी चप्पल पर यकीन है हमारे गाने पर नहीं।