केंद्रीय बजट से जनसाधारण की अपेक्षाएं - रामपाल जाट

 

News from -  किसान महापंचायत

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      जयपुर। किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने आज केंद्रीय बजट से जनसाधारण की अपेक्षाओं पर विभिन्न मदों पर अपने विचार रखकर सरकार का ध्यान निम्न बिन्दूओं पर आकृषित करने का प्रयास किया है. 

आय में असमानता- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 38(2) के अनुसार आय की असमानता को कम करने के लिए प्रयास बजट में परिलिक्षित होने चाहिए जिसके परिणाम स्वरूप अनुच्छेद 38 (1)के अनुसार ऐसी सामाजिक व्यवस्था बने, जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्राणित करते हुए, उसकी प्रभावी स्थापना और संरक्षण द्वारा लोक कल्याण की अभिवृद्धि के प्रयास दृष्टिगोचर हो

अभी देश में गरीब, अधिक गरीब तथा अमीर, अधिक अमीर हो रहे हैं आय की विषमता अराजकता, अशांति, आतंकवाद, नक्सलवाद को पनपाने के लिए अनुकूलता प्रदान करती है जिससे अपराध बढ़ते जाते हैं सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी द्वारा जून तक प्रसारित आंकड़ों से स्पष्ट है कि वर्ष 2015-16 के बाद 5 वर्षों में 20% सबसे गरीब परिवारों की आय 53% घटी और इसी अवधि में सबसे अधिक अमीर वर्ग की आय में 39% की बढ़ोतरी हुई

अवसरों की समानता - फार्मा और वैक्सीन कंपनियों का लाभांश एक वर्ष में 124% तक पहुच गया जिनमे फाइजर, बायोएनटेक और मोर्डना कम्पनियाँ प्रति सेकंड 75,000 रुपये उपार्जित कर रही है । वर्ष 2020 तक 3750 करोड़ डॉलर घाटे वाले कम्पनी अपना घाटा पूरा कर 700 करोड़ डॉलर आय अर्जित करने वाली बन गयी । इसी प्रकार फाइजर 9000 करोड़ डॉलर, बायोएनटेक61,000 करोड़ डॉलर, जॉनसन 120 करोड़ डॉलर तथा सीरम 3,890 करोड़ डॉलर उपार्जन कर रही है ।पेटेंट कानून की आढ़ में लूट चालु है । यह सरकारों के बिना संरक्षण एवं सहयोग के संभव नहीं है । यह अवसरों की समानता का उपहास हैअसमानता को दूर करने के लिए अवसरों की समान रूप से उपलब्धता अपरिहार्य है । जिसे बजट में परिलक्षित होना चाहिए इसके लिए सरकार को आर्थिक रुप से कमजोरों के साथ खड़े रहने की दिशा का संकेत बजट में देना चाहिए

“गरीब को छप्पर नहीं”, गरीब को छप्पर बनाने में सक्षम बनाने के सार्थक प्रयासों की आवश्यकता है राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के 2003 से 2005 के मध्य किये गए सर्वेक्षण के अनुसार किसानों की आय मजदूरों से भी कम थी सरकारी नीतियों एवं उपेक्षा के कारण किसानों की ऋण चुकाने की क्षमता समाप्ति की ओर है 1995 के बाद आत्महत्याओं में बढ़ोतरी उसका सूचक है किसानों को उनकी उपजों के दामों की प्राप्तिकी सुनिश्चितता के लिए कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी के कानून बनाने की अनुशंसा को गंभीरता से लेकर पूरा करना चाहिए कृषि मजदूरों की स्थिति सुधारने की दिशा में भी यह सार्थक पहल होगी । कृषि उत्पादों का खर्च कम करने के लिए खाद, बीज, कीटनाशक जैसी सामग्री का उत्पादन एवं उसका प्रशिक्षण ग्रामस्तर पर करना, डीजल को कृषि कार्य हेतु बिना लाभ-हानि के आधार पर उपलब्ध करवाना, हर खेत को पानी के लिए योजनाओं का निर्माण एवं क्रियान्वयन प्राथमिकता पर करना और इसी दिशा में समानता के लिए बिजली की नि:शुल्क उपलब्धता जैसे अपरिहार्य कदम उठाने चाहिए ।

बेरोजगारी के कारण युवा वर्ग का तनाव में है उनके परिजन चिंता ग्रस्त हैं इसके लिए प्रत्येक गांव को औद्योगिक क्षेत्र घोषित कर, शहरों के पड़ोस में निर्मित औद्योगिक क्षेत्रों जैसी सुविधाएं एवं प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए जब से यह सुविधा एवं प्रोत्साहन आरंभ हुई तब से ही इसे लागू कर बैकलॉग देने की घोषणा करनी चाहिए

उपनिवेशवादी मानसिकताकी समाप्ति - उपनिवेशवादी व्यवस्था पर प्रहार कर अवसरों की समानता का परिवेश निर्माण करना चाहिए इससे गांवों का धन गांव में रहेगा, गांव से पलायन रुकेगा, गांव की प्रतिभा गांव में रहेगी,शहरों में झुग्गी-झोपड़ियों के दृश्यों से मुक्ति मिलेगी

इस हेतु से बजट की दिशा में कृषि में स्वावलंबन एवं गांव में स्वायतताको प्राथमिकता दी जानी चाहिए इसके लिए किसानो/ग्रामीणों की संख्या के अनुपात में बजट राशि का आवंटन ग्रामीण क्षेत्रों के लिए होना चाहिए सत्तारूढ़ दल की घोषणा के अनुसारकृषि के लिए पृथक से बजट” श्रेयस्कर मार्ग है

अपवित्र गठजोड़ को तोड़ने की बने योजना- राजनीतिक दलों की अघोषित आय एवं काला धन की चर्चा छोड़ दे तो भी एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के अनुसार सात राष्ट्रीय दलों के पास 6986.57 करोड रुपए का कोष है इस कोष में अंशदान करने वाले दानदाता तो नहीं है, ये तो अपना धन बढाने के लिए निवेश करने वाले ही धनपति है इस कोष के एकत्रीकरण में भाजपा, बसपा के साथ साधारण मतदाताओं तथा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी एवं कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के जनप्रतिनिधियों के अंशदान के होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकतासाधारण मतदाताओं के आधार पर दलों के पास ऐसी भारी-भरकम कोष बनना संभव नहीं दिखता इन सभी दलों की लंबे समय राज में भागीदारी रही है इनके कोष कीस्थिति सुदृढ़ होने का यह प्रमुख कारक है राज के आधार पर अंशदान करने वाले तथाकथित निवेशक तो अपने धन की बढ़ोतरी को ही लक्ष्य रखते हैं इन दलों के सहयोग में ही अधिकारी तंत्र सम्मिलित हो जाता हैं और वे अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर लेते हैं इस प्रकार राजनेता, धनपति एवं अधिकारी तंत्र का अपवित्र गठजोड़ बन जाता है साधारण जनता की जेब पर डाके डाले जाते रहते हैंइसमें गाँधी का वह दर्शन, जिसमें योजनायें बनाते समय सबसे गरीब को केंद्र में रखा जाना चाहिए, कहीं दिखाई नहीं देताफिर गरीबों के नाम पर निवेशकों को अवसरों का उपलब्धता प्राप्त हो जाती है बजट में इस गठजोड़ को तोड़ने की शुरुआत होनी चाहिए