देश का सपना " विश्व गुरु " बनने का, किन्तु सबसे बड़ी बाधा " शिक्षा " का बढ़ता व्यवसायीकरण - संयुक्त अभिभावक संघ

News from - अभिषेक जैन बिट्टू 

अभिभावकों को शिक्षा क्रांति के लिए करना होगा एकजुटता का शंखनाद - अभिषेक जैन बिट्टू

     जयपुर। राज्य हो या देश शिक्षा को लेकर सिस्टम पूरी तरह से बेबस और असहाय नजर आता है। इसका जीता जागता उदाहरण निजी स्कूलों द्वारा बरती जा रही हठधर्मिता है जो अभिभावकों को खुले आम लूट के रूप में देखी जा सकती है। कहने को तो शिक्षा के संरक्षण को लेकर एवं निजी स्कूलों पर लगाम लगाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने कानून बनाये हुए है किंतु वह कानून मात्र दिखावटी बनकर रह गए है जिसके चलते केंद्र और राज्य सरकार का निजी स्कूलों पर से नियंत्रण लगभग पूरी तरह से समाप्त हो चुका है। आज शिक्षा पर पूंजीपतियों, नेताओं और उद्योगपतियों का प्रभाव और साम्राज्य पूरी तरह से स्थापित हो चुका है। यही सबसे बड़ा कारण है कि शिक्षा दिन प्रतिदिन महंगी होती जा रही है, जिसके चलते अब शिक्षा की दूरी आम आदमी से बढ़ती जा रही है।

     संयुक्त अभिभावक संघ प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने बताया कि अभिभावक बच्चों के उज्ज्वल और बेहतर भविष्य के नाम पर निजी स्कूलों की मनमानी और सरकार व प्रशासन की बेरुखी की त्रासदी झेलने पर मजबूर हो रहा है। इसका प्रमुख काऱण सरकारी स्कूलों की बदहाली है जिसके कारण अभिभावकों के पास निजी स्कूलों की तरफ रुख करने पर पर मजबूर होना पड़ रहा है। अभिभावकों के पास सरकारी स्कूलों का विकल्प खुला हो तो निजी स्कूलों की हठधर्मिता पर पूरी तरह से लगाम लगाई जा सकती है। देश का सपना " विश्व गुरु " बनने का जरूर है किंतु देश विश्व गुरु तभी बन सकता है जब तक शिक्षा का व्यवसायीकरण बन्द ना हो जाये, देश को विश्व गुरु बनने में अगर कोई सबसे बड़ी बाधा है तो वह केवल शिक्षा का व्यवसायीकरण है। जिस प्रकार देश और प्रदेश में सारे माफिया एकजुट है ठीक उसी प्रकार अभिभावकों को शिक्षा क्रांति के लिए एकजुटता का शंखनाद करना चाहिए, अभिभावकों की एकजुटता ही एक मात्र वह हथियार है जो शिक्षा के माफियाओं पर लगाम लगा सकती है। 

     प्रदेश अध्यक्ष अरविंद अग्रवाल ने कहा कि देश मे शिक्षा को मां सरस्वती के रूप में पूजा जाता है और कल्याणकारी विषय है। शिक्षा आज प्रत्येक घर की जरूरत है और मूलभूत सुविधाओं में इसे शामिल किया गया है किंतु लोगों की जरूरत पर माफियाओं ने अपना कब्जा कर लिया है। जिसके चलते स्कूल में प्रवेश शुल्क से लेकर यूनिफार्म, किताब, कॉपी सहित प्रत्येक वर्ष फीस में वृद्धि के नाम पर अभिभावकों को खुलेआम ठगा जा रहा है। निजी स्कूलों के हालात ऐसे है कि अब संचालक अभिभावकों के व्यवहार और हैसियत को देखकर उनके बच्चों को स्कूलों में दाखिला दे रहे, वही दूसरी तरफ शिक्षा के अधिकार को लेकर बनाये गए आरटीई कानून तक को ठेंगा दिखा रहे है। जिसके चलते गरीब परिवारों के बच्चें शिक्षा से वंचित होने पर मजबूर हो रहे है। सरकार, प्रशासन और विपक्ष पूरी तरह से मूकदर्शक बने बैठे है जिसके चलते माफियाओं को अघोषित संरक्षण के चलते बल मिला हुआ है। 

     अनाप-सनाप मुद्दों, धर्म-जाति पर कोहराम मचाने वाले तमाम सियासी दल और सरकार की पैरवी करने वाला एक बड़ा बुद्धिजीवी वर्ग भी शिक्षा के नाम पर मौन साधकर बैठे है। स्कूलो में बच्चों के दाखिले को लेकर अभिभावकों में गहरी चिंता है, केंद्रीय विद्यालयों, नवोदय विद्यालयों में सीट न के बराबर है साथ ही राज्य सरकार पिछले दो बजटों में महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यमिक स्कूलों को खोलने की घोषणा तो कर रही है किंतु वह अभी तक धरातल पर नही आई, ठीक ऐसे ही केंद्र सरकार हर बजट में सैनिक स्कूलो को बढाने की घोषणा करती है वह भी घोषणाओं तक सीमित होकर रह जाते है। स्कूलों में दाखिले को लेकर अभिभावकों को सांसदों, विधायकों और मंत्री व अधिकारियों के चक्कर लगाने पड़ते है। जो शिक्षा व्यवस्था को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के खोखले दावों और वादों की पोल खोल रहे है।