खरीद की गारंटी के कानून से ही संभव है न्यूनतम समर्थन मूल्य की सार्थकता - रामपाल जाट

News from - Kisan Mahapanchayt 

     जयपुर - चने का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5230 रुपये प्रति क्विंटल होते हुए भी किसानों को अपना चना 4300 रुपये प्रति क्विंटल तक बेचने को विवश होना पड़ा. जिससे किसानो को एक क्विंटल पर 900 रुपये तक का घाटा हुआ . इसी प्रकार बाजरे का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2250 रुपये प्रति क्विंटल  था फिर भी किसानो को एक क्विंटल बाजरे का मूल्य 1100-1300 रुपये प्राप्त हुआ. इसमें  भी एक क्विंटल पर घाटा 1000 रुपये तक था .  

     कमोबेश यही स्थिति सभी उपजो की रहती है . न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने के लिये मंडियों में नीलामी बोली का आरम्भ न्यूनतम समर्थन मूल्य से हो . यह तब ही संभव है जब न्यूनतम समर्थन मूल्य की खरीद का कानून हो. न्यूनतम समर्थन मूल्यों की सार्थकता के लिये खरीद की गारंटी का कानून केंद्र या राज्य या दोनों मिलकर भी बना सकते है. किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने ये सुझाव आज कृषि लागत एवं मूल्य आयोग द्वारा किसान संगठनों की ऑनलाइन मीटिंग में व्यक्त किये. 

     ज्ञात रहे कि रवी एवं खरीफ की 22 उपजो के न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारण हेतु किसान संगठनों के सुझाव मांगे जाते हैं. इसी के लिए कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के अध्यक्ष डॉ. नवीन प्रकाश सिंह की अध्यक्षता में ऑनलाइन मीटिंग आयोजित की गई. जिसमें किसान महापंचायत, भारतीय किसान यूनियन, भारतीय किसान संघ, भारतीय किसान यूनियन अंबावता, गन्ना उत्पादक संघ, भारतीय किसान पंचायत, जैसे संगठनों के प्रतिनिधियों प्रमोद कुमार-मध्यप्रदेश, रघुनाथ दादा एवं मदन देश पण्डे, - महाराष्ट्र, के. वी राजकुमार- तेलंगाना, इन्दर स्वामी-हरियाणा, फ़तेह चन्द बागला-राजस्थान ने भी भाग लेकर अपने सुझाव दिए. 

     इसका संचालन कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के सदस्य सचिव अनुपम मित्रा ने किया. जिन्होंने सभी किसान संगठन के प्रतिनिधियों को उनके लिए धन्यवाद ज्ञापित किया. आयोग के अध्यक्ष की और से किसान संगठनो के प्रतिनिधियों द्वारा दिये गये सुझावों पर गंभीरता से विचार करने का आश्वासन दिया.

बैठक में आयात निर्यात नीति को उत्पादक किसानो के अनुकूल बनाने, उपजो के लागत मूल्यों को घटाने, ओसत उचित गुणवक्ता के मापदंडों के निर्धारण में किसान प्रतिनिधियों की भागीदारी सुनिश्चित करने, फसल विविधिकरण के लिये तिलहन, दलहन एवं बाजरा मक्का जैसे सभी मोटे अनाजो की खरीद की नीति गेहू और धान जैसी बनाने,  किसानो की खुशहाली के लिये "हर किसान का यही पैगाम-खेत को पानी फसल को दाम" को मंत्र के रूप में उपयोग में लेने, उत्पादक को लाभकारी मूल्य एवं उपभोक्ताओ को कम दामो पर कृषि उपजोकी उपलब्धता को सुलभ करते हुए लूट से बचाने जैसे सुझावों पर भी चर्चा हुई.