हमारी लोक संस्कृतियों की परंपरा में मुस्कुराने के अवसर बहुत है - अनिल मिश्र

News from - Arvind Chitransh 

विश्व मुस्कान दिवस के अवसर पर एडीएम प्रशासन अनिल मिश्र ने कहा कि हमारी लोक संस्कृतियों की परंपरा में मुस्कुराने  के अवसर बहुत है

     आजमगढ़। विश्व मुस्कान दिवस के अवसर पर एडीएम प्रशासन अनिल मिश्र ने अरविंद चित्रांश के कला और संस्कृति के विशेष योगदान और अमृत महोत्सव के रंगारंग कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि हमारे लोग संस्कृतियों में मुस्कुराने के बहुत ही अवसर आते हैं. 

(ADM Administration Anil Mishra & Arvind Chitransh) 
     शादी विवाह के अवसर पर हंसी, ठिठोली हमारी परंपरा रही है. जिससे लोग मुस्कुराते हैं, हंसते हैं और स्वस्थ रहते हैं. लोक संस्कृति का एक रूप हमें भाव अभिव्यक्ति की शैली में भी मिलता है. वह 'दीपक के बुझने' की कल्पना से सिहर उठता है। इसलिए वह 'दीपक बुझाने' की बात नहीं करता 'दीपक बढ़ाने' को कहता है। इसी प्रकार 'दूकान बन्द होने' की कल्पना से सहम जाता है। इसलिए 'दूकान बढ़ाने' को कहता है। 

     लोक साहित्य में लोक मानव का हृदय बोलता है। प्रकृति स्वयं गाती गुनगुनाती है। लोक जीवन में पग पग पर लोक संस्कृति के दर्शन होते हैं। लोक साहित्य उतना ही पुराना है जितना कि मानव। इसलिए उसमें जन जीवन की प्रत्येक अवस्था हमें आनंदित करती है. मुस्कुराने और हंसने को मजबूर करती है. विश्व मुस्कान दिवस पर बधाई के साथ आप मुस्कुराते रहिए और स्वस्थ रहिए - जय हिन्द।