किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट के नेतृत्व में चल रहे सरसों सत्याग्रह का दिखने लगा प्रभाव

 News from - Gopal Seny

आज प्रातः ग्राम डोडवाडी के किसानों ने सभा आयोजित कर पारित किया प्रस्ताव, जिला टोंक के ग्राम डोड़वाड़ी मे 5 दिन तक अपनी उपज मंडी में नहीं ले जाने का  निर्णय कर देश में दिया नया संदेश

Jaipur. एक ही वर्ष में 1 क्विंटल पर 3000 रूपये के दाम गिरने से आक्रोशित देश के किसानों ने किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट के नेतृत्व में जयपुर में 22 मार्च को सरसों सत्याग्रह का आगाज किया। उसी के क्रम में 8 राज्यों के 101 किसानों ने दिल्ली जंतर-मंतर पर पहुंचकर 5 घंटे का उपवास रखा। उसी उपवास के समय किसानों ने सरसों न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों पर नहीं बेचने के संबंध में प्रस्ताव पारित कर देश के किसानों से आग्रह किया।

इसी का परिणाम है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों पर सरसों विक्रय का किसानों ने विरोध आरंभ किया *देश में अपने प्रकार की पहली घटना है*। इसी दिशा में टोंक कृषि उपज मंडी में ग्राम डोडवाड़ी के गोपीलाल ने अपनी सरसों  बोरियों में वापस भरकर ले जाने से उसे परिवहन एवं पल्लेदारों पर 350 रुपये खर्च करने पड़े । 

इससे गांव में गुस्सा उत्पन्न हुआ। गुस्साए किसानों ने आज डोडवाडी गांव की सभा रखी। जिसे किसान महापंचायत के युवा प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर चौधरी ने संबोधित करते हुए किसानों को एकजुट रहते हुए *गांव बंद* रखने का आह्वान किया, तब उपस्थित सभी ग्राम वासियों ने सर्वसम्मति से 5 दिन तक अपनी उपजे मंडियों में नहीं ले जाने का निर्णय लिया।

ज्ञात रहे कि पाम नाम के पेड़ों से रंगहीन , स्वादहीन एवं सुगंधहीन तरल पदार्थ को खाद्य तेलों की श्रेणी में रख दिया, विदेशी आयातित खाद्य तेलों पर आयात शुल्क को 45 %से घटाकर शून्य पर ला दिया। जिससे सरसों के दाम धड़ाम से गिर गए ।

यह भी उल्लेखनीय है कि विदेशी आयातित तेल पर 80% तक आयात शुल्क रह चुका है । देश के किसानों ने पाम आयल को खाद्य तेलों की श्रेणी से बाहर रखा जाकर उसके लिए आयात शुल्क कम से कम 100% करने का सरकार से आग्रह किया हुआ है।

सरकार तिलहन विकास के नाम पर पाम जैसे पेड़ों के तरल पदार्थ को विकसित करने के लिए ही राष्ट्रीय पाम मिशन बनाकर 11,040 करोड़ रुपए खर्च करने की दिशा में बढ़ रही है । जबकि सरकार को परंपरागत सरसों, मूंगफली, रामतिल, जैसी तिलहनों के विकास के लिए काम करना चाहिए था।

 यानि सरकार को जो काम नहीं करना चाहिए, वह तो कर रहीं हैं और जो काम करना चाहिए था उसे कर नहीं रही है। इस उल्टी चाल की नीति के कारण ही तिलहन उत्पादन में देश आत्मनिर्भर नहीं बन सका है। जबकि सरकार ने देश को तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए घोषणा तो की हुई है, किंतु आचरण उसके विपरीत है। इसी नीति के कारण एक वर्ष में ही 1लाख 41 हजार करोड़ से अधिक राशि विदेशों में आयात के नाम पर खर्च हों रहीं हैं।