खरीद नीति में भेद-भाव को समाप्त करने पर ही न्यूनतम मूल्य हो सकेंगे सार्थक - रामपाल जाट

News from - किसान महापंचायत

जयपुर/दिल्ली। किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा कि भारत सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य संपूर्ण लागत का डेढ़ गुना तो नहीं किंतु इस दिशा में सार्थक पहल अवश्य है । गत वर्ष की लागत (C-2) के अनुसार मूंग का न्यूनतम समर्थन मूल्य 10,720 रुपय प्रति क्विंटल होना चाहिए था । इस वर्ष 8,558 रुपय प्रति क्विंटल घोषित किया गया हैं । 

     पिछले वर्ष की तुलना में मूंग पर 803 रुपय प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई है, जो इस वर्ष की अन्य उपजों की तुलना में सर्वाधिक है । इस बढ़ोतरी का लाभ किसानों को तभी प्राप्त हो सकता है, जब मूंग के दाने दाने की खरीद गेहूं और धान की तरह हो । 

     अभी तो ‘प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान’ के अंतर्गत मूंग के कुल उत्पादन में से 75% उत्पादों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की परिधि से बाहर किया हुआ है । इस योजना के अंतर्गत मूंग के कुल उत्पादन में से 25% से अधिक की खरीद प्रतिबंधित है । इस प्रतिबंध के कारण मूंग उत्पादक किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पाएगा । देश के कुल उत्पादन में से आधा उत्पादन करने वाला राजस्थान इससे वंचित रहेगा । 

     भारत सरकार ने अरहर, उड़द एवं मसूर पर इस योजना के अंतर्गत आरोपित किए इस प्रकार के प्रतिबंधों को समाप्त कर उनके दाने दाने की खरीद का मार्ग प्रशस्त कर दिया है । किंतु इसमें मूंग को छोड़ दिया गया है, जो मूंग उत्पादक किसानों के साथ भेदभाव है । यह भेदभाव समाप्त होने पर ही मूंग उत्पादक किसानों को प्रोत्साहन मिल पाएगा । इसी से ही भारत सरकार की फसलों में विविधता लाने की घोषणा साकार हो पाएगी ।

     इस वर्ष बाजरा, ज्वार, रागी, मक्का जैसे मोटे अनाजों में पिछले वर्ष की तुलना में बढ़ोतरी 128 से लेकर 268 रुपय प्रति क्विंटल दर्शाई गई है । भारत सरकार ने प्रयास कर अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित कराया हुआ है, इसकी सार्थकता भी तभी है, जब इन के दाने दाने की खरीद हो । घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्यों की प्राप्ति के लिए खरीद की गारंटी का कानून अपरिहार्य है, अन्यथा ‘हाथी के दांत खाने के ओर दिखाने के ओर’ की कहावत ही सदा की तरह चरितार्थ होती रहेगी ।

     भारत सरकार ने घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्यों की लागत पर लाभांश 50 से लेकर 82% तक दर्शाया है किंतु यह लाभांश संपूर्ण लागत (C-2) के आधार पर नहीं है बल्कि ‘A2 + एफ एल’ के आधार पर ही है । कृषि लागत एवं मूल्य आयोग द्वारा (C-2) लागत की गणना का उल्लेख किया जाता है,  जिसे ही संपूर्ण लागत कहा जा सकता है ।

     कृषि प्रधान भारत में कृषि की समृद्धि ही देश की समृद्धि का प्रतीक है । इसी के आधार पर वर्ष 2018-19 के बजट में उल्लेख किया गया था, उसके के अनुरूप नीतियां तैयार की जाये, तभी कृषि एवं किसान की समृद्धि संभव है । इस दिशा में खरीद नीति में भेदभाव को समाप्त कर ही घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य को सार्थकता प्रदान की जा सकती है ।