देश में पहले से ऐसे तीन अंडरग्राउंड स्टोरेज फैसिलिटी मौजूद है। यहां 53 लाख टन कच्चा तेल हमेशा जमा रहता है। ये विखाखापत्तनम, मंगलौर और पडुर में है। ऑयल मार्केटिंग और प्रोडक्शन कंपनियां भी कच्चा तेल मंगाती हैं। हालांकि ये स्ट्रैटेजिक रिजर्व इन कंपनियों के पास तेल के भंडार से अलग है।
- अंडरग्राउंड ऑयल रिजर्व आपात स्थिति में काम आ सकते हैं। अभी 12 दिनों का रिजर्व रहता है।
- भारत में पांच जगहों पर गुफाओं में कच्चा तेेल जमा किया जा रहा है।
- अभी क्रूड ऑयल का दाम भी कम है। इसलिए भंडार जमा करने की लागत भी कम आएगी।
नरेंद्र मोदी सरकार का एक बड़ा सामरिक फैसला अब उपयोगी साबित होने वाला है। ओडिशा और कर्नाटक में जमीन के भीतर पथरीली गुफाओं में कच्चा तेल जमा किया जाएगा। नरेंद्र मोदी सरकार की कोशिश है कि आपात स्थिति में कच्चे तेल का भंडार खत्म न हो पाए। अभी 12 दिनों तक का स्ट्रैटेजिक रिजर्व हमारे पास है। नए अंडरग्राउंड स्टोरेज फैसिलटी बनने के बाद 22 दिनों तक का रिजर्व भारत के पास होगा। यहां 65 लाख टन कच्चा तेल जमा रहेगा।
अटल बिहारी वाजपेयी का आइडिया - 1990 के दशक में खाड़ी युद्ध के दौरान भारत लगभग दिवालिया हो गया था। तेल के दाम आसमान छू रहे थे। इससे पेमेंट संकट पैदा हो गया। भारत के पास सिर्फ तीन हफ्ते का स्टॉक बचा था। हालांकि मनमोहन सिंह सरकार ने स्थिति बखूबी संभाली। उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीति से अर्थव्यवस्था पटरी पर आई। इसके बाद भी तेल के दाम में उतार-चढ़ाव भारत को प्रभावित करता रहा। इस समस्या से निपटने के लिए 1998 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अंडरग्राउंड स्टोरेज बनाने का फैसला किया।
मई,2018 में मंगलौर अंडरग्राउंड स्टोरेज के लिए संयुक्त अरब अमीरात से कच्चे तेल की पहले खेप आई थी। ये संयोग ही है कि कोरोना वायरस के कारण इंटरनेशनल ऑयल मार्केट में मंदी है। सऊदी अरब से कच्चे तेल के दाम 30 परसेंट गिरा दिए हैं। क्रूड ऑयल 40 डॉलर प्रति बैरल के नीचे है। इससे इंडियन बास्केट भी सस्ता होगा। अभी सस्ते दाम पर तेल जमा करने का फायदा बाद में मिल सकता है।