देश में अपनी तरह की अनोखी मिसाल...तीन बहनें, तीनों आईएएस अफसर और तीनों ही बनीं हरियाणा की मुख्य सचिव, सबसे छोटी केशनी अभी भी हैं पद पर.
(Photo -केशनी आनंद अरोड़ा(बाएं) मीनाक्षी आनंद चौधरी(बीच) उर्वशी गुलाटी )
पंजाब विश्वविद्यालय के दिवंगत प्रोफेसर जेसी आनंद की तीन बेटियां एक-एक कर आईएएस अधिकारी बनीं और फिर हरियाणा प्रशासन के सर्वोच्च पद पर पहुंचीं। तीनों ही राज्य की मुख्य सचिव बनीं। ऐसा अनोखा उदाहरण भारत में कहीं देखने को नहीं मिला...प्रदेश के 33 मुख्य सचिवों में इन बहनों के अलावा एक ही और महिला अधिकारी शामिल हैं। 1972 बैच की प्रोमिला इस्सर इस पद पर रहीं। इन तीनों बहनों की उपलब्धियां हर उस परिवार के लिए प्रेरणा है जहां बेटियां हैं।
दूसरे घरों में भेदभाव देखते थे, हमारे यहां ऐसा कुछ नहीं था
- मीनाक्षी आनंद चौधरी: 1969 बैच की आईएएस : नवंबर 2005 से अप्रैल 2006 तक मुख्य सचिव रहीं
अपने घर में मैंने कभी नहीं सुना कि हम लड़कियां हैं और किसी से कुछ कम हैं। आसपास के घरों में हमें भेदभाव होता दिखता था। शायद यह भी एक वजह थी कि हम अपने लक्ष्य की ओर आसानी से बढ़ सके। फिर हम क्यों रुकतीं? हमें रोकने वाली कोई बाधा तो सामने हो?
संदेश : लड़कियां आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए जब अपनी भूमिका, समाज व परिवार का योगदान समझें और खुद को महत्व दें।
संदेश : लड़कियां आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए जब अपनी भूमिका, समाज व परिवार का योगदान समझें और खुद को महत्व दें।
पुरुषों से ज्यादा खुद को साबित करना होता है
- उर्वशी गुलाटी : 1975 बैच की आईएएस : अक्तूबर 2009 से मार्च 2012 तक हरियाणा की मुख्य सचिव थीं
हमारे माता-पिता कोई भेदभाव नहीं करते थे और मानते थे कि शिक्षा मिले तो कोई भी आत्मनिर्भर हो सकता है। हालांकि प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर मैंने भेदभाव महसूस किया। दरअसल अगर अधिकारी एक महिला है तो उसके हर काम पर नजर रखी जाती है। आपको हर काम में पुरुष आईएएस अधिकारियों से ज्यादा अपनी प्रतिभा और काबिलियत साबित करनी होती है।
कामकाजी महिलाओं को क्या चाहिए?
‘सुरक्षा’: महिलाएं घर से निकलकर अपनी पूरी क्षमता से आज भी काम नहीं कर पा रही हैं तो इसकी प्रमुख वजह सुरक्षा की कमी है।
संदेश : इसमें शक नहीं कि समाज का दृष्टिकोण बदला है। मौजूदा पीढ़ी आत्मविश्वास से लबरेज है, लेकिन मुझे यह कहने में हिचक नहीं है कि समाज में लड़कियों से भेदभाव होते रहे हैं।
संदेश : इसमें शक नहीं कि समाज का दृष्टिकोण बदला है। मौजूदा पीढ़ी आत्मविश्वास से लबरेज है, लेकिन मुझे यह कहने में हिचक नहीं है कि समाज में लड़कियों से भेदभाव होते रहे हैं।
ऐसा भी कोई काम है जो लड़कियां नहीं कर सकतीं?
- केशनी आनंद अरोड़ा: 1983 बैच की आईएएस : जून 2019 में मुख्य सचिव बनीं, 30 सितंबर 2020 तक इस पद पर रहेंगी
उन्होंने कहा कि हम तीनों ही बहनों ने ऐसे प्रदेश में उपलब्धि हासिल की, जिसकी लैंगिक अनुपात के पैमाने पर देश में स्थिति खराब है। हालांकि अब इसमें सुधार आया है। लेकिन घरों में सुधार के लिए वह मानसिकता बदलनी होगी, जिसमें लड़कियों को बोझ समझा जा रहा है। मेरा कोई भाई नहीं था, लेकिन बड़ी बहनों की शानदार प्रतिभा ने मुझे प्रेरित किया।
तीनों बहनों के लिए कोई काम असंभव नहीं रहा। माता-पिता ने किसी काम को लड़के और लड़की की सोच के साथ हमें नहीं सौंपा। अपने कॅरिअर में भेदभाव हुआ भी होगा तो मैंने उसे कभी इतनी तवज्जाे नहीं दी कि उसका कोई असर हो।
संदेश : ऐसा कोई लक्ष्य नहीं, जो असंभव है। महिलाओं से यही कहूंगी कि अगर वे देश और समाज के लिए कोई योगदान देना चाहती हैं तो पूरे प्रयास करें, महिला होने की वजह से झिझकें नहीं।
तीनों बहनों के लिए कोई काम असंभव नहीं रहा। माता-पिता ने किसी काम को लड़के और लड़की की सोच के साथ हमें नहीं सौंपा। अपने कॅरिअर में भेदभाव हुआ भी होगा तो मैंने उसे कभी इतनी तवज्जाे नहीं दी कि उसका कोई असर हो।
संदेश : ऐसा कोई लक्ष्य नहीं, जो असंभव है। महिलाओं से यही कहूंगी कि अगर वे देश और समाज के लिए कोई योगदान देना चाहती हैं तो पूरे प्रयास करें, महिला होने की वजह से झिझकें नहीं।