सोते-सोते बेचैन हो जाते हैं, सांस नहीं ले पाते, तो ये ख़बर है आपके लिए

     दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं, जो सोते समय सांस नहीं ले पाते हैं और रात भर बेचैन रहते हैं.आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि दुनिया भर में क़रीब एक अरब लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं. ये इतनी गंभीर बीमारी है कि इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि सांस न ले पाने से जान जाने का भी डर रहता है. अगर ऐसा नहीं होता है तो भी इस बीमारी के शिकार लोग दिल की और सांस लेने की कई बीमारियों के शिकार हो सकते हैं. उन्हें टाइप-2 डायबिटीज़ हो सकता है.



     सोते समय हमारी नींद कई चरणों से गुज़रती है. सोते समय ब्लड प्रेशर और सांस लेने में भी उतार-चढ़ाव आता रहता है. सोते समय हमारी ज़्यादातर मांसपेशियां आराम की मुद्रा में रहती हैं. लेकिन अगर आपकी गले की पेशी कुछ अधिक ही तनावमुक्त हो जाती है, तो आपके अंदर हवा जाने वाला रास्ता बंद हो जाता है. आप सांस लेने के लिए संघर्ष करने लगते हैं. इसे ही नींद में सांस न लेने की बीमारी या Sleep apnoea कहते हैं. ये शब्द यूनानी भाषा के लफ़्ज़ 'apnoia' से आया है, जिसका मतलब है सांस न ले पाना.


   अमरीका में हुई रिसर्च बताती है कि वहां हर साल क़रीब 38 हज़ार लोग इस बीमारी से मर जाते हैं. स्वीडन में एक अध्ययन में पता चला कि जिन ट्रक ड्राइवरों को ये बीमारी है, उनके सड़क हादसे के शिकार होने की आशंका ढाई गुना तक बढ़ जाती है. भयंकर 'स्लीप एपनिया' के शिकार लोगों के 18 साल की समय सीमा के भीतर मर जाने की आशंका ज़्यादा होती है.


   असल में जब लोग सांस नहीं ले पाते हैं, तो शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है. फिर दिल और रक्त प्रवाह बढ़ाने के लिए तेज़ी से ख़ून पंप करना पड़ता है. इससे दिल पर दबाव बढ़ता है. फिर ख़ून की नलियों में थक्के जमने की आशंका बढ़ जाती है. मोटापे, बड़ी गर्दन और लंबी नाक से भी ये समस्या और बढ़ जाती है. इसके अलावा अगर जबड़े छोटे हैं तो भी नींद में सांस न ले पाने की दिक़्क़त बढ़ जाती है.


     डॉक्टरों का कहना है कि भयंकर रूप से स्लीप एपनिया के शिकार लोगों के लिए पहला विकल्प मास्क है और दूसरा तरीक़ा है सर्जरी. सर्जरी में अब जबड़े को बढ़ाने वाला तरीक़ा भी काम में लाया जा रहा है. जिससे लोगों के जबड़े को दो हिस्सों में तोड़ कर सर्जरी के बाद उसमें एक तार डाल दी जाती है.


   हाल के दिनों में स्लीप एपनिया के मरीज़ों के लिए एक और नुस्खा इजाद किया गया है. बिजली के झटके से जीभ को लगातार हिलाते रहने का उपकरण, जिससे जीभ, सांस लेने के द्वार को बंद न करे. इसे हाइपोग्लॉसल नर्व स्टिमुलेशन (HNS) कहते हैं. हालांकि, अब डॉक्टर और वैज्ञानिक इसके लिए दवाओं पर रिसर्च कर रहे हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि ये समस्या न्यूरोकेमिकल है. यानी ये शरीर से निकलने वाले कुछ हॉरमोन की वजह से होने वाली बीमारी है. इसलिए इसका इलाज भी केमिकल नुस्खे हो सकते हैं.