अखंड भारत के पक्षकार वीर सावरकर

                                                  (आभार श्री आदित्य स्वरुप जी का) 


     आज अखंड भारत के महान क्रन्तिकारी वीर सावरकर की जयंती है. देश को स्वतंत्र कराने के लिए बहुत से देश प्रेमियों , क्रांति कारियों ने भाग लिया व् अपनी जान भी गवां दी. ना जाने कितनो का तो बलिदान भी याद नहीं. जिनको जानते हैं जैसे सुभाष चंद्र बोस, चंद्र शेखर आज़ाद, भगत सिंह, वीर सावरकर आदि के इतिहास को  गाँधी-नेहरू व कांग्रेस के आपसी ताल-मेल ने कभी भी उभर-कर आने नहीं दिया। मगर सच पर कब तक पर्दा पड़ा रहेगा?  कांग्रेस ने हमेशा से ही वीर सावरकर के बलिदान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया। दूसरे शब्दों में कहे सकते हैं कि उनको विलेन बना कर, खुद को महान बना दिया. हमें कुछ तथ्य महान क्रांति कारी वीर सावरकर के बारे में मिले हैं. जिन्हे यहाँ पेश क्र रहे हैं. इसके लिए हम आभारी हैं श्री आदित्य स्वरुप जी के. 


     विगत जनवरी में अण्डमान निकोबार जाने का अवसर मिला था । Cellular Jail जहाँ स्व. वीर सावरकर कैद थे. वह काल कोठरी देखी। बस एक छोटा सा रोशनदान। धन्य हैं ऐसे क्रांतिकारी।


     नेहरू -गांधी को जेल में 5 स्टार सुविधाएँ, लिखने के लिए कलम दवात दी जाती थी. अंग्रेजी सरकार से,लाईब्रेरी खुलवाई जाती थी डिस्कवरी ऑफ इंडिया लिखने के लिए, उधर सावरकर जी से कोल्हू में तेल पेराया जाता था, बावजूद इसके नाखूनों,कीलों से जेल की दीवारों पर हजारों उत्कृष्ट रचनाएं दी उन्होने... वामपंथी इतिहासकारों ने जिनके प्रति सर्वाधिक दुर्भावना दिखाई है... आज उनकी जन्म जयंती पर उनको याद करते हुए मन अत्यंत भावुक हो रहा है,नमन है आपको... स्वातंत्र्य वीर सावरकर...🙏



🔶 सावरकर जी ने कहा था...


      आ सिंधु-सिंधु पर्यन्ता, यस्य भारत भूमिका।
     पितृभू-पुण्यभू भुश्चेव सा वै हिंदू रीती स्मृता ।।


     अर्थात् – ‘हिन्दू वह है जो सिंधु नदी से समुद्र तक के भारतवर्ष को अपनी पितृभूमि और पुण्यभूमि माने. इस विचारधारा को ही हिन्दुत्व नाम दिया गया है. इसका अर्थ स्पष्ट है! हिन्दुत्व यह अंग्रेजी शब्द रिलिजन के सन्दर्भ में प्रयोग होने वाला पर्यायवाची शब्द नहीं है. उस अर्थ में हिन्दुत्व यह धर्म ही नहीं है. यह तो इस देश को पुण्यभूमि मानने वाले लोगों की जीवन पद्धति है...!!


     कुछ दिन पहले अपने मित्रों से मैंने वामपंथी और कांग्रेसी ग़ुलामों द्वारा दिए जाने वाले गए कुछ कुतर्क माँगे थे ताकि उनके सही जवाब दे सकूँ, जिनके आधार पर एक महान स्वतंत्रता सेनानी की छवि धूमिल करने का कुत्सित प्रयास हुआ!


🔶कुतर्क १- वीर सावरकर ने अंग्रेजो से माफ़ी माँगी!!!


     जवाब - यह पूरी तरह झूठ है ! वीर सावरकर एक मात्र ऐसे क्रांतिकारी थे जिनको ११ वर्ष काला पानी की सज़ा हुई और दो दो उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई गई, जिस पर हँसते हुए माँ भारती के पावन सपूत ने कहा था की चलो ईसाईयों की सरकार ने दो उम्र क़ैद देकर यह मान लिया की हिंदुओं में पुनर्जन्म होता है !


     साथ ही सज़ा के दौरान उनको कठोर शारीरिक श्रम और भीषण यातनायें दी जाती थी जिनमे बैल की जगह ख़ुद कोल्हू में पेलकर तेल निकालना, नारियल के छिलके निकालना और रस्सी बनाना, ख़राब खाना, पानी इत्यादि जिसकी वजह से उनको कई बीमारियों ने जकड़ लिया। उस समय अंग्रेज़ और भारत में तमाम बड़े नेता चाहते थे की यह जेल में ही रहे लेकिन अंग्रेज़ जानते थे की अगर सावरकर की मृत्यु हो गई तो आज़ादी का आंदोलन इतना गति पकड़ेगा की रोकना असम्भव हो जाएगा।
इन सब से बचने के लिए ब्रिटिश सरकार ने १९१३ में समझौता पत्र तैयार किया जिसमें लिखा था " मैं (सावरकर) जेल से छूटने के बाद राज्य क्रांति और राजनीति से दूर रहूँगा " सावरकर भी जेल से बाहर निकालकर आना चाहते थे ताकि क्रांति को हवा दे सकें। इसलिए उन्होंने इस पर सहमति रखी और हस्ताक्षर किया और अपने साथ तमाम क्रांतिकारियों को बाहर निकाला, हालाँकि उनको जेल से छोड़ा नहीं गया बाक़ी लोगों को रिहा कर दिया गया और उनका इलाज सुरु हो गया. तमाम तकलीफ़ों का सामना कर अंततः उन्हें १९२१ में रिहा किया गया, लेकिन भारत पहुँचते ही दुबारा बंदी बना लिया गया।  तीन वर्ष वह फिर जेल में रहे और उसके बाद निकले भी तो उन्हें १९३७ तक हाउस अरेस्ट रखा गया. कड़े पहरे में ताकि वह किसी से मिल न सकें। क्यूँ की गोरे जानते थे की यह आदमी बाहर निकलेगा तो आंदोलन को तेज़ करेगा !
     इसी तरह का एक पत्र अश्फ़ाकउल्लाह खान ने भी साइन किया था लेकिन उन्हें फाँसी दे दी गई तो क्या इरफ़ान हबीब जैसे वामपंथी इतिहासकार क्षमा चाहूँगा कथाकार उनको भी ग़द्दार या अंगरेजो को चाटुकार कहेंगे ?? इसी को आधार बनाकर उन्हें बदनाम किया गया इरफ़ान हबीब ने इस बात का कोई प्रमाण नहीं दिया क्यूँ की है ही नहीं। आज भी अंडमान की जेल के दस्तावेज़ों में वह रखा हुआ है अगर हिम्मत है तो ग़लत साबित करके दिखाओ !


((Photo - Cellular Jail का front view जहां वीर सावरकर को रखा गया)



🔶 वीर सावरकर ने गांधी- नेहरु और अम्बेडकर की तरह ही लंदन से वकालत पास की थी लेकिन उस समय की प्रथा अनुसार वहाँ एक सपथ पत्र साइन करना पड़ता था की " मैं आजीवन ब्रिटिश साम्राज्य और राजा का वफ़ादार रहूँगा " जिसको पढ़ने के बाद सावरकर ने साइन करने से मना कर दिया इसलिए उन्हें कभी बैरिस्टर की डिग्री न मिल सकी , बाक़ी लोगों को मिली थी मतलब इन्होंने साइन किया और वफ़ादारी तो छुपी नहीं है किसी से की यह किसके वफ़ादार थे..?
     क्या ऐसा व्यक्ति अंग्रेज़ी हुकूमत के सामने घुटने टेकेगा और अगर वह अंग्रेज़ी हुकूमत के वफ़ादार हो ही गए थे तो रिहा करने के बाद भी हाउस अरेस्ट ??? उनकी इच्छा मृत्यु के बाद उनको बदनाम करने का काम नेहरु और बाक़ी लोगों के इशारे पर वामपंथी सत्ता पोषित इतिहासकारों द्वारा जानबूझकर किया गया ताकि गाँधी - नेहरु ख़ानदान के अलावा कोई और नाम न रहे!


🔶 1857 की क्रान्ति की असफलता के बाद जो देश गुलामी को अपनी किस्मत मानकर पचास साल खामोश पडा रहा, उस देश के निराश नागरिकों को जाग्रत करने वाले व्यक्ति के खिलाफ अपशब्द बोलना देशद्रोह माना जाना चाहिए. "सावरकर" ने 1904 में "अभिनव भारत" नामक एक क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना की, 1905 में उन्होने पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई (गांधीजी से बहुत पहले) . 


🔶 10 मई, 1907 को इन्होंने इंडिया हाउस, लन्दन में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्ण जयन्ती मनाई और "गदर" को "भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम" सिद्ध किया. उन्होंने "1857 - प्रथम स्वातंत्र समर" नाम का ग्रन्थ लिखकर देशवाशियों में क्रान्ति की ज्वाला को भड़का दिया. जिसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें दोहरे कालापानी की सजा सुनाकर अंडमान की सेल्युलर जेल में भेज दिया. जहाँ उन्हें किसी राजनैतिक कैदी की तरह नहीं रखा गया बल्कि वहां  उनपर खूंखार कैदियों की तरह अमानवीय अत्याचार किये जाते थे.


🔶सावरकर 4- जुलाई, 1911 से लेकर 21 मई, 1921 तक दस साल पोर्ट ब्लेयर की "कालापानी" जेल में रहकर अमानवीय यातनाएं झेलते रहे. लेकिन नीचता की पराकाष्ठा को पार करने वाले कांग्रेसी 1913 में अंग्रेजों को लिखे गए उनके एक पत्र को उनका "माफीनामा" बताकर, भ्रामक प्रचार के सहारे उनका चरित्र हनन करने का प्रयास करते हैं.


🔶सावरकर ने अक्तूबर 1913 में, चार अन्य कैदियों के साथ एक खुली याचिका दी थी, जिसमे उन्होंने उन पर किए जा रहे नृशंस अत्याचारों का वर्णन किया था. उन्होंने जेलर से सभ्य बर्ताव की मांग की थी और लिखा था कि - या तो उन्हें रिहा कर दिया जाए अन्यथा कालापानी से निकालकर भारत की किसी अन्य जेल में रख दिया जाए.
     वे एक कवि और लेखक थे. उन्होंने लुभावनी शैली में लिखा था कि -यदि उन्हें रिहा किया जाता है तो वे सरकार के आभारी रहेंगे और किसी भी आतंकी कार्यवाही में हिस्सा नहीं लेंगे. यह एक राजनैतिक कैदी का मानवीय व्यवहार का मांगपत्र था कोई माफीनामा नहीं और न ही अंग्रेजों ने उसे स्वीकार किया. वे उसके आठ साल बाद तक कालापानी रहे.
     गवर्नर जनरल के प्रतिनिध "आर.एच. क्रेडोक" ने उनकी याचिका के बारे में टिप्पणी लिखी कि - ‘सावरकर को अपने किए पर पश्चाताप या खेद नहीं है और वह अपने हृदय परिवर्तन का सिर्फ ढोंग कर रहा है." क्रेडोक ने यह भी लिखा कि - सावरकर को यदि किसी भारतीय जेल में रखा गया तो यूरोप के अराजकतावादी उस जेल को तोड़कर उसे फरार कर देंगे. सावरकर की उस याचिका को 1913 में ही खारिज कर दिया गया था और उन्हें 1921 तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में ही रखा गया...!!


🔶 सावरकर द्वारा "1857 - प्रथम स्वातंत्र समर" ग्रन्थ लिखने के कारण अंग्रेज नाराज थे और उन्हें बड़ी और कड़ी सजा देना चाहते थे. लेकिन किताब लिखना कोई इतना बड़ा गुनाह नहीं था कि उन्हें फांसी या उम्रकैद दी जा सके. इसके अलावा सरकार को तब उन्हें राजनैतिक कैदी का दर्जा देकर, सारी सुबिधायें भी देनी पड़ती इसलिए उन्हें नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के षडयंत्र का आरोप लगाकर कालापानी की सजा सुनाई गई थी लेकिन अंग्रेजी सरकार लम्बे समय तक केस चलाने के बाबजूद उन्हें गुनाहगार साबित नही कर सकी और रिहा करना पडा.
     ऐसी याचिकाए न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा होती थी. राम प्रसाद विस्मिल और अशफाक उल्ला खान द्वारा भी ऐसी दया याचिकाए दी गई थी. अशफाक के परिवार ने यहाँ तक लिखा था कि - उनका लड़का निर्दोष था और विस्मिल के चक्कर में पड़कर फंस गया था. लेकिन इससे उनकी महानता कोई कम नहीं हो जाती...🙏


(Photo - Cellular Jail का सप्ताकार design)



🔶 नासिक षड्यंत्र में बेगुनाह साबित होने के कारण , अंग्रेजी सरकार को उन्हें 1921 में रिहा करना पडा, लेकिन वहा से आने के बाद भी उन्हें नजरबंद रखा गया. उनकी हर गतिबिधि पर कड़ी नजर रखी जाती थी.1921-24 में मालावार, कोहाट, मुल्तान, में हुए दंगे हिन्दुओं पर हुए अत्याचार ने उनकी सोंच की दिशा ही बदल दी थी.


🔶 1921 ई. में अंग्रेजो ने तुर्की के सुल्तान को गद्दी से उतार दिया था. इस घटना के खिलाफ भारत के मुसलमानों ने जगह-जगह आन्दोलन किए. अंग्रेजों के सामने तो उनकी चली नहीं परन्तु उनका कहर टूटा देश की निर्दोष और असहाय हिंदू जनता पर. इस हिंसक बबाल में बड़ी संख्या में हिंदुओं का कत्ल हुआ और स्त्रियों की इज्जत लूटी गई. हिन्दुओं का सबसे ज्यादा बुरा हाल किया गया था केरल के मालाबार जिले में. मालाबार के दंगे, जिन्नाह द्वारा अलग पाकीस्तान की मांग, अपने को महात्मा साबित करने की खातिर गांधी द्वारा हिन्दुओं के अधिकार लुटवाने ने की घटनाओं ने उनकी ने उनकी सोंच का रुख हिन्दुओं की सुरक्षा और अधिकार की और कर दिया...!!


🔶 गांधीजी द्वारा हिन्दुओं के अधिकार लुटवाने पर सावरकर गांधी से नाराज थे और गांधी भी सावरकर हिंदुत्ववादी विचारों से घबराते थे. सावरकर अखंड भारत के पक्षधर थे लेकिन उनका यह भी मानना था कि - अंग्रेजों के जाने और मुसलमानों को मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान दिए जाने के बाद शेष भारत को हिन्दुराष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए था...!!


     जिसके नाम से आज भी हिन्दुराष्ट्र के शत्रुओं में भय का संचार होता है, वह वीर सावरकर चिरंजीवी हों, प्रत्येक हिन्दू युवा के हृदय में अवतरित हों...🙏🚩