अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल के एक मैटरनिटी वॉर्ड में मंगलवार को हुए बम धमाके और गोलीबारी में 24 लोग मारे गए हैं. मरने वालों में नवजात बच्चे हैं, माएं हैं और नर्सें हैं. फ़िरूज़ा उमर कहती हैं, "मैं अपने बच्चे को ब्रेस्टफीड करा रही थी तभी मैं दूसरे बच्चों के बारे में सोचकर भावुक हो गई. मैं दूसरे बच्चों की तक़लीफ़ देखकर परेशान थी."
(Photo - फ़िरूज़ा कुछ वक़्त पहले ही एक बेटे की मां बनी हैं)
27 साल की फ़िरूज़ा ने टीवी पर इस हमले के बारे में सुना. अपने दोस्तों के ज़रिए और सोशल मीडिया पर आ रही विचलित करने वाली तस्वीरों के ज़रिए उन्हें हालात की गंभीरता का अंदाज़ा हुआ. जब वह बच्चे को अपना दूध पिला रही थीं, तब उनका मन उन बच्चों की फ़िक्र से भर गया जो जन्म के तुरंत बाद ही अनाथ हो गए थे.
वह बताती हैं, "जब दिन का रोज़ा तोड़ने का वक़्त नज़दीक आया तो मैंने ऐसे अनाथ हुए बच्चों की मदद करने की मंशा अपने पति से ज़ाहिर की. यह हमला इस्लाम में पवित्र माने जाने वाले रमज़ान के दौरान हुआ था. मेरे पति ने अनाथ बच्चों की मदद करने की मेरी ख्वाहिश पर तुरंत ही अपनी रजामंदी दे दी." उनके पति ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह घर पर बच्चे की देखभाल कर लेंगे.
फ़िरूज़ा बताती हैं, "जब मैं अस्पताल पहुंची तो मैंने क़रीब 20 बच्चे देखे. इनमें से कुछ घायल थे. मैंने नर्सों से बात की. उन्होंने मुझे ऐसे बच्चों को दूध पिलाने के लिए कहा जो बहुत बुरी तरह से रो रहे थे." इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक चार बच्चों को अपना दूध पिलाया.