चंद्र ग्रहण के दिन है गुरु पूर्णिमा - कैसे करें पूजा और सूतक से जुड़ी सारी विधि

     आषाढ़ महीने की पूर्णिमा यानी कि गुरु पूर्णिमा 2020 को चंद्र ग्रहण भी है. यह लगातार तीसरा साल है, जब चंद्र ग्रहण, गुरु पूर्णिमा के दिन लगने वाला है. दरअसल, इससे पहले साल 2018 और 2019 में भी गुरु पूर्णिमा के ही दिन चंद्र ग्रहण लगा था. बता दें, हिंदू मान्यता में गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है और हर साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन ही गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है. हिंदु धर्म में लोग अधिक महत्व अपने गुरुओं को देते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि गुरु ही हमें दुनिया में सही गलत का ज्ञान देते हैं. इस वजह से हिंदु धर्म में गुरु पूर्णिमा की विशेष मान्यता है. 



     हिंदू धर्म के मुताबिक महर्षि वेद व्यास का जन्म गुरु पूर्णिमा के दिन हुआ था. इस वजह से गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है. इस साल चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई देगा या नहीं. साथ ही ग्रहण और गुरु पूर्णिमा एक ही दिन होने के चलते किस तरह से बिना सूतक काल की सोचे अपने गुरुओं की पूजा कर सकते हैं. 


क्या भारत में दिखेगा चंद्र ग्रहण? - 5 जुलाई को लगने वाले चंद्र ग्रहण का भारतानुसार समय सुबह 8 बजकर 37 मिनट पर शुरू होगा और इसके बाद यह 9 बजकर 59 मिनट पर अपने अधिकतम प्रभाव में होगा और सुबह 11 बजकर 22 मिनट पर खत्म हो जाएगा. यह ग्रहण लगभग 2 घंटे 45 मिनट तक रहेगा. ऐसे में भारत में सूर्योदय हो जाने के कारण भारतवासी इस ग्रहण को नहीं देख सकेंगे और इसी वजह से चंद्र ग्रहण के दौरान सूतक काल भी नहीं लगेगा. 


गुरु पूर्णिमा की पूजा विधि - हिंदू धर्म में गुरुओं को ऊपर का दर्जा प्राप्त है. गुरु के जरिए ही मनुष्य ईश्वर तक पहुंच सकता है. ऐसे में गुरुओं की पूजा भी भगवान रूपी की जानी चाहिए. गुरु पूर्णिमा पर किस तरह से अपने गुरु की पूजा कर सकते हैं.



  • गुरु पूर्णिमा पर सवेरे जल्दी उठ कर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
    - इसके बाद घर के मंदिर में किसी चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाएं और फिर व्यास पीठ बनाएं.
    - इसके बाद ''गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये'' मंत्र का जाप करें. 
    जा के बाद अपने गुरु या उनके फोटो की पूजा करें. 
    - अगर गुरु सामने ही हैं तो सबसे पहले उनके चरण धोएं. उन्‍हें तिलक लगाएं और फूल अर्पण करें. 
    - अब उन्‍हें भोजन कराएं. 
    - इसके बाद दक्षिण दें और पैर छूकर विदा करें.