कोविड-19 से लड़ाई में मोदी ने तेजी से संभाले हालात, असफल हुए लोक-लुभावनवादी नेता

     कोविड-19 वैश्विक महामारी से जिन देशों में सबसे अधिक मौतें हुई हैं उनमें जरूरी नहीं कि वे सबसे गरीब, सबसे अमीर या सबसे घनी आबादी वाले देश हों, लेकिन उनमें एक समानता जरूर है और वह यह कि इन देशों के नेता लोकलुभावनवादी और परंपरागत ढर्रे से अलग हट कर चलने वाले रहे लेकिन महामारी से निपटने में काफी हद तक विफल साबित हुए। लेकिन इसी के बीच , भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बहुत तेजी से लॉकडाउन और अन्य उपायों से हालात को संभाला।



     राजनीति में लोकलुभावनवादी का मतलब ऐसी नीतियों से होता है जो आमजन में तो लोकप्रिय हों लेकिन प्रबुद्ध वर्ग और विशेषज्ञों में नहीं। अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप, ब्रिटेन के बोरिस जॉनसन और ब्राजील के जेयर बोलसोनारो के साथ ही भारत के नरेंद्र मोदी और मैक्सिको के आंद्रेस मैनुअल लोपेज ओब्राडोर जनता को सामाजिक फायदों का वादा कर पुरानी व्यवस्था को चुनौती देते हुए लोकतांत्रिक देशों में सत्ता में आए थे। लेकिन जब कोविड-19 जैसी नयी बीमारी से लड़ने की बात आती है तो लोकलुभावनवादी नीतियों के बजाय यूरोप में जर्मनी, फ्रांस और आयरलैंड या एशिया में दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देशों में उदार लोकतांत्रिक नीतियां फायदेमंद साबित हुई हैं।


     विद्वान लगातार इस पर विचार कर रहे हैं कि वह उदारवादी लोकतंत्र, वह राजनीतिक प्रणाली जिसने दूसरे विश्व युद्ध को बंद कराने में मदद की, विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की स्थापना की, और तीन दशक पहले शीत युद्ध के दौरान सभी पर भारी पड़ी, क्या वह इस नए लोकलुभावनवादी तंत्र और 21वीं सदी की जटिल चुनौतियों का सामना कर सकेगी। इसी सोच विचार के बीच आए कोविड-19 ने इसे और गहरा और ठोस बना दिया है।