मातृभाषा हिंदी समाप्ति की ओर

     साथियों, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार भारत की राजभाषा हिंदी होगी लेकिन संविधान की स्थापना के 15 वर्ष तक शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग किया जाता रहेगा। अनुच्छेद 348 के अनुसार जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध ना कर दे तब तक सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालयों में कार्यवाहियां अंग्रेजी में होंगी तथा संसद व विधानसभा में कानून अंग्रेजी में बनेंगे।



     अनुच्छेद 351 में कहा गया है कि भारत सरकार का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए। लेकिन धीरे-धीरे हिंदी भाषा को समाप्त किया जा रहा है और अंग्रेजी भाषा का प्रभाव बढ़ता जा रहा है और यदि हम नहीं जागे तो वह दिन दूर नहीं जब हिन्दी भाषा गौण हो जाएगी। आजकल नौकरियों में भी अंग्रेजी माध्यम वालों को ज्यादा पास किया जा रहा है। पिछली बार मैने देखा कि आरजेएस में अंग्रेजी माध्यम वालों को ज्यादा नियुक्तियां दी गई् है और इसी प्रकार आरएएस, आरपीएस व अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में अंग्रेजी माध्यम वालों को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है और एक ऐसा वातावरण बनाया जा रहा है कि हिन्दी माध्यम वालों को हेय दृष्टि से देखा जाता है इसलिए मजबूर होकर लोग अंग्रेजी माध्यम की ओर आकर्षित हो रहे हैं और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों का महत्व बढ़ता जा रहा है।


     इसलिए हमारा राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत साहब से निवेदन है कि हमारी मातृभाषा हिंदी को बढ़ावा देवें और प्रतियोगी परीक्षाओं में हिन्दी भाषा का प्रयोग करने वालों को 5% बोनस अंक अतिरिक्त दिए जांय तथा किसी भी कार्यालय में अंग्रेजी में कोई काम ना हो सारे परिपत्र हिन्दी में जारी हों. पत्र व्यवहार हिंदी में हों, सारे साइन बोर्ड हिन्दी में हों ताकि हिंदी भाषा का विकास हो। इसलिए हम सबको एकजुट होकर हिन्दी के विकास के लिए कमर कस लेनी चाहिए।


     आज 14 सितंबर को हिंदी दिवस है, इसलिए इस बार सब एकजुट होकर हिन्दी दिवस मनाएं  प्रधानमंत्री जी से निवेदन करें कि पूरे देश में हिन्दी भाषा को लागू करें. सारे कानून हिंदी में बनें तथा सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालयों में हिन्दी में सारी कार्यवाही हो। इसको जन-जन का आंदोलन बनाएं.


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पूनमचंद भंडारी (एडवोकेट)


महासचिव, पब्लिक अगेंस्ट करप्शन संस्था।