लेखक:- तपतेश कुमार मेवाल
नहीं रही खुशहाली ,फिर ये कैसे मनें दिवाली
1 कोरोना व्याधि द्वार खड़ी है, बूढ़ी मां बीमार पड़ी है |
मिट्टी के दिये बिक नहीं पाये ,सपनें हमने बहुत सजाय ||
सेठ महाजन आज सभी , दे रहें हमको गाली......
नहीं रही खुशहाली, फिर ये कैसे मनें दिवाली
2 वीर जवान की माँ कह रही ,सारी पीड़ा मैं सह रही |
दिल मेरा टूटा है डर से , अनाथ हो गये बच्चे घर से ||
माँ शहीद की कहलायी ,पर कोख हो गई खाली….
नहीं रही खुशहाली फिर ये कैसे मनें दिवाली
3 बेटी कहती पापा से, अब जिद किससे मनवाउंगी |
जब उठेगी डोली मेरी, मै तन्हा ही रह जाऊँगी ||
बिन आपके पिता श्री, यह लगती दुनिया खाली.....
नहीं रही खुशहाली फिर ये कैसे मनें दिवाली
4 दर्द से अब मैं मरा हुआ हूँ , कर्ज तले मैं दबा हुआ हूँ |
पापा इंसाफ दिलाऊँगा, दुश्मनो को सबक सिखाऊंगा ||
प्राण जाए पर आपका, वचन ना जाय खाली......
नहीं रही खुशहाली फिर ये कैसे मनें दिवाली
5 पति के विरोह में पत्नी कहती ,सारे संकट दुविधा सहती |
घर कोअब मैं कैसे सजाऊँ, पति बिना मैं किसे रिझाऊं ||
बिन साजन के एक पल, मैं नहीं जीने वाली......
नहीं रही खुशहाली फिर ये कैसे मनें दिवाली
6 हमें सुरक्षा देने वाले ,सीमा की रक्षा करने वाले |
वीर जवान ये रण बाँकुरे , देश का संकट हरने वाले ||
तूफानों टकरायेँ पर, वार ना जाता खाली......
नहीं रही खुशहाली फिर ये कैसे मनें दिवाली