यहां लाल चींटी को पीसकर, चटनी बनाकर खाते हैं लोग

र‍िपोर्ट - अनूप स‍िन्‍‍‍‍हा (जमशेदपुर)

ठंड से बचाव और भूख बढ़ाने के लिए करते हैं इस्‍तेमाल 

     जिंदगी में कई तरह की चटनी खाई होगी जैसे टमाटर की चटनी, खजूर की चटनी, धनिया पत्‍ते की चटनी, लेकिन आज हमको एक अलग ही तरह की चटनी के बारे बताते हैं, वह है जंगल के पेड़ों में ठंड के दिनों पाई जाने वाली लाल चींटी की चटनी. आदिवासी समाज के लोगों की मान्यता है कि ठंड के दिनों में अगर इस चींटी की चटनी खाई जाए तो ठंड भी नहीं लगेगी और भूख भी अच्छे से लगेगी. इसमें टेटर‍िक एसिड होता है जो शरीर के लिए काफी लाभदायक होता है. जमशेदपुर से करीबन 70 किलोमीटर दूर चाकुलिया प्रखंड का मटकुरवा गांव, जहां अधिकतर आदिवासी समाज के लोग रहते हैं. घने जंगलों के बीच बसा यह गांव आम सुविधा से काफी दूर है. 

    यहां के आदिवासी लोगों का कहना है कि ठंड पड़ते ही यहां के साल और करंज के पेड़ों पर लाल चींटी अपना घर बना लेती है. इनका घर चारों तरफ पत्‍तों से ढका होता है जो पेड़ पर काफी ऊंचाई पर बनता है. ग्रामीणों को जब पता चलता है जब पेड़ पर चींटी का आना-जाना शुरू हो जाता है. फिर गांव के लड़के पेड़ पर चढ़ कर इनके घर को टहनी के साथ तोड़ कर लाते हैं, फिर इसको एक बड़ी से हांडी में झाड़ते हैं ताकि सभी चींटियों को एक जगह किया जा सके. फिर उसको मिलते हैं. जब वो मिल जाता है तब घर की महिलाएं उसे पत्थर की बड़ी सी सि‍ल पर रखती हैं और उसमें नमक, मिर्चा, अदरक, लहसुन को मिलकर काफी बारीक पिसाई करती हैं. 

     करीबन 30 मिनट की पिसाई के बाद सारी लाल चींटी मिक्स्ड हो जाती हैं, फिर सभी लोग अपने-अपने घरों से साल का पत्‍ता लाकर उसमें चटनी को रखते हैं और बांट कर खाते हैं. एक साल के बच्चे से लेकर 50 साल तक के बुजुर्ग भी इसको खाते हैं. इनका कहना है कि यह की यह लाल चींटी पेड़ों पर साल में एक बार ही आती हैं और इस चींटी की चटनी को हमारे पूर्वज भी खाया करते थे. इस लिए हम लोग अपने को स्‍वस्‍थ रखने के लिए लाल चींटी की चटनी खाते हैं. इसको लोग कुरकु भी कहते हैं.