दुनिया एक रंग मंच है और हम सभी इस मंच के एक पात्र - अजीत सिन्हा

     राँची । परमात्मा ने इस दुनिया को बहुत ही सोंच - समझ कर बनाया है और हम सभी को इस दुनिया में अपने - अपने रोल निभाने हेतु भेजा है ताकि दुनिया की व्यवस्था ठीक ढंग से चल सके. इस हेतु मानव को बुद्धि - विवेक प्रदान की है लेकिन कौन कितना अपने विवेक का सही उपयोग करता है, यह व्यक्ति के ज्ञान और उसके अनुभव पर निर्भर करता करता है. अनुभव हमें अनवरत कार्यों के परिणामस्वरूप ही प्राप्त होता है. ये कार्य कैसे होने चाहिए? ये व्यक्ति के ज्ञान पर ही निर्भर करता है. कार्यो की श्रेणी मेरी समझ से दो ही है वह है सत्कर्म और दुष्कर्म।  मध्यम कर्म करने वालों की कहीं कोई गिनती नहीं है. यहां मध्यम कर्म से मेरा तात्पर्य यह है कि जो कभी सत्कर्म करते हैं और कभी दुष्कर्म। 

(अजीत सिन्हा)
     यह भी सही है कि इंसान गलतियों का पुतला है अर्थात्‌ गलतियां होती रहती हैं और कभी-कभी न चाहते हुए भी और अनजान और अज्ञानतावश की गई गलतियां क्षम्य तो हो सकती हैं लेकिन जानबूझकर की गई गलतियों की क्षमा परमात्मा के नजर में बिल्कुल नहीं है। जीवन को जीना भी एक कला से कम नहीं है. यह कला श्रेष्ठ जनों के संसर्ग, आध्यात्मिक चिंतन, प्रभु के शरणागत और ज्ञान के सही उपयोग से ही प्राप्त हो सकती है। ज्ञानी व्यक्ति के लिए अपने परिवार उत्थान के साथ-साथ समाज और राष्ट्र उत्थान ही प्रिय होता है लेकिन जिनका लक्ष्य राष्ट्र उत्थान की ओर होता है वहां परिवार व समाज उत्थान स्वतः हो जाता है।

      जैसा कि प्रस्तावित नेताजी सुभाष पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अजीत सिन्हा ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर आगे कहा कि दुनिया के रंग मंच के पात्र यदि राष्ट्र धर्म को सर्वोपरि मानते हुये देश के सर्वांगीण विकास हेतु देश वासियों के साथ मिलकर कार्य करें तो ये सर्वोत्तम कार्य होगा। यह व्यक्ति के राष्ट्र के कर्ज से मुक्ति का मार्ग प्रस्तत होगा क्योंकि मातृभूमि के कल्याणार्थ यह जीवन काम आ जाये तो इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है। वंदे मातरम्, जय हिंद!