एक देश एक कानून समानता के आधार पर लागू हो - अजीत सिन्हा

      राँची। प्रस्तावित नेताजी सुभाष पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक, सह प्रवक्ता अजीत सिन्हा ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर राष्ट्र प्रहरी लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पत्रकारों द्वारा अपनी बात महामहिम राष्ट्रपति महोदय और भारत सरकार के प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी से अपील की कि जब मानव को परमात्मा ने शारीरिक रूप से स्त्री और पुरुष को समान रूप से धरती पर उत्पन्न किया है तो जातीय आधार पर या स्वर्ण और दलित वर्ग के आधार पर या मजहबी या धर्म के आधार पर कानून क्यों बने हैं? समानता के आधार पर पूरे देश में एक समान कानून लागू होना चाहिये। केसों के विवेचना का अधिकार भी निष्पक्षता के मापदंडों के आधार पर ही होना चाहिये ताकि प्रत्येक व्यक्ति को समयबद्ध सीमा के अंतर्गत उन्हें न्याय मिल सके।

(अजीत सिन्हा)
     भारतीय संविधान के अंतर्गत कानूनों की कमी नहीं है और अपराध के आधार पर सजा भी मुकर्रर की जाती है लेकिन उसी कानून का दुरूपयोग होने लगे तो आमजन इन्साफ की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? यह विचारणीय है कि कानून लोगों को सभ्य बनाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है लेकिन उसी कानून का दुरुपयोग समाज में अव्यवस्था उत्पन्न करता है. लोगों का कानून पर से भरोसा उठ जाता है. जिसका जीता जागता उदहारण विष्णु तिवारी नाम के व्यक्ति को हरिजन ऐक्ट और एसी. एसटी. के दुरूपयोग का मामला भोगना पड़ा। उसे बेवजह 20 साल तक कारावास की सजा भोगनी पडी, वो भी विवेचना अधिकारी के गलत रिपोर्ट देने की वज़ह से जो कि शर्मनाक और निंदनीय है।

     आगे अजीत सिन्हा ने कहा मैं माननीय राष्ट्रपति महोदय के साथ भारत की सरकार से अपील करता  हूँ कि इस तरह के कानून को निरस्त किया जाए. पूरे देश में समानता के आधार पर एक देश एक कानून की नीति को लागू की जाये ताकि कानून का दुरुपयोग न के बराबर हो सके. विवेचन के अधिकार को फुल प्रूफ बनाई जाये और विवेचक यदि गलत करे, तो उसे भी कठोर सजा के प्रावधान के अनुसार उन्हें भी दंड का भागी बनाया जाये।

     ईमानदार और दोष रहित मानव को दोषी ठहराने की गलती करने वालों को भी कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान भी न्याय के दायरे में लाने की आवश्यकता है,चाहे वह कितना भी छोटा या बड़ा पदाधिकारी - अधिकारी क्यों न हो? यदि न्यायपालिका के माननीयों से गलती होती है तो उन्हें भी सजा के अंतर्गत लाना होगा। क्योंकि कानून सबके लिये बराबर होना चाहिये। वंदे मातरम्, जय हिंद!