यदि मस्जिदों के इमामों और अज़ान देने वाले मौलवियों को मासिक मानदेय, तो मंदिरों के पुजारियों और मठाधीशों के आचार्यों को क्यों नहीं - अजीत सिन्हा

      राँची। प्रस्तावित नेताजी सुभाष पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक, सह प्रवक्ता अजीत सिन्हा ने ट्विटर और कू पर ट्वीट कर बिहार की सरकार से पूछा कि बिहार के 1057 मस्जिदों के इमामों को 15000/- रूपए और अज़ान देने वाले मौलवियों को मासिक मानदेय 10000/- रूपए फिक्स की गई है, तो बिहार के मंदिरों के पुजारियों और मठाधीशों के आचार्यों की मासिक मानदेय क्यों नहीं फिक्स की गई? सर्व धर्म समभाव के अंतर्गत गुरुद्वारों और अन्य धर्मों के धार्मिक प्रतिष्ठानों की देखभाल और पूजन करने वाले भक्तों की मानदेय क्यों नहीं फिक्स की गई? क्या इसका जवाब बिहार सरकार के पास है क्या? इस ट्वीट में अजीत सिन्हा ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र दास मोदी और बिहार भाजपा ऑफिस के साथ माननीय ओम प्रकाश माथुर को भी ध्यानाकर्षण हेतु टैग किया है।

(अजीत सिन्हा

आगे अजीत सिन्हा ने कहा कि विदित हो कि भाजपा की छवि हिन्दुत्ववादी रही है. यह ठीक है कि बिहार में जनता दल (यू) और भाजपा की संयुक्त सरकार है, तो क्या भाजपा ऐसा नहीं लगती की वह नीतीश जी के फैसलों के आगे नतमस्तक है? भाजपा की यह मजबूरी उसके हिन्दुत्ववाद के मुखौटे को उजागर करने के लिए क्या काफी नहीं है और यदि ऐसा नहीं तो भाजपा ने मंदिरों के पुजारियों और मठाधीशों के आचार्यों के लिए मासिक मानदेय को लागू करवाने में क्यों नहीं सफल हो सकी? मेरी समझ से इस फैसले की जानकारी बिहार की हिन्दू (सनातनी) समाज को अवश्य होगी। इस पर सत्य सनातन रक्षा सेना और राष्ट्रीय सनातन वाहिनी को छोड़कर अन्य हिंदूवादी संगठनों और अन्य राजनीतिक पार्टियों की चुप्पी उचित नहीं और संदेह के घेरे में है। 

अजीत सिन्हा ने कहा कि मुझे लगता है कि भाजपा भी मुस्लिम तुष्टीकरण की राह पर चल पड़ी है. बिहार में अपनी संयुक्त सत्ता को बनाये रखने हेतु और इस तरह से वे राष्ट्र को इस्लामीकरण की ओर ही ले जा रहे हैं. जो कि जेहादियों, गद्दारों और देशद्रोहियों का गुप्त एजेंडा पूरे विश्व के इस्लामीकरण का ही है। 

     उन्होंने कहा कि यह ठीक है कि भारतीय संविधान के अंतर्गत राज्य या देश के प्रत्येक नागरिक को सत्तासीन सरकार द्वारा सुविधाओं को देने का अधिकार है लेकिन यहां प्रश्न उठता है कि एक धर्म विशेष को ही क्यों? यदि सुविधाएं देनी ही थी तो सभी धर्मों के पुजारियों और आचार्यों को क्यों नहीं? यहां आचार्यों से मेरा तात्पर्य सभी धर्मों के धर्म की शिक्षा देने वाले गुरुओं से है। 

     अंत में उन्होंने कहा कि इस फैसले पर और मेरे सुझाव पर बिहार सरकार के साथ-साथ दोनों पार्टियों के अध्यक्षों और प्रधानमंत्री के साथ-साथ, भारत की सरकार को भी चिन्तन - मनन की जरूरत है. सारांश में यों कहें यदि कोई सुविधा किसी धर्म विशेष को दी जा रही है, तो सभी धर्मों के लोगों को मिलनी चाहिये। जय हिंद!